‘सांड की आंख’ फिल्म में भूमि-तापसी को बूढ़ी औरतें बनाने को लेकर कंट्रोवर्सी छिड़ी है. नीना गुप्ता और सोनी राजदान जैसी ऐक्ट्रेस कह रही हैं, हमारी इंडस्ट्री बूढ़ी औरतों के रोल्स में भी यंग लड़कियों को कास्ट करना पसंद करती है. यह कहना गलत नहीं है. ऐक्ट्रेस की उम्र बढ़ती जाती है, तो उसे हीरोइन नहीं बनाया जाता. फिर धीरे-धीरे वह किनारे लगा दी जाती हैं. ऐसे में नीना गुप्ता का कहना सही है- हमारी उम्र के रोल तो कम से कम हमसे करा लो भाई. इस एक कमेंट से उम्रदराज अभिनेत्रियों की तकलीफ को समझा जा सकता है. तकलीफ इसलिए क्योंकि उन्हें अच्छे रोल्स क्या, रोल्स ही नहीं मिलते. आखिर ‘बधाई हो’ जैसी कितनी फिल्में बनती हैं, जिनमें नीना गुप्ता सरीखी अभिनेत्रियों को मौका मिलता है. बड़ी उम्र के हीरो की मां के रोल में भी उससे छोटी उम्र की ऐक्ट्रेस को कास्ट किया जाता है.


तापसी ने इस कंट्रोवर्सी पर अपनी बात रखी है. वह यंग हैं. तरह-तरह के रोल्स करती हैं, तारीफ भी बटोरती हैं. ‘सांड की आंख’ फिल्म में एक चुनौतीपूर्ण भूमिका मिलने पर वह कैसे इनकार कर सकती हैं. फिल्म 60 प्लस की मशहूर निशान्ची बहनों प्रकाशी और चंद्रो तोमर पर आधारित है. तापसी ने भूमि के साथ इन्हें रुपहले परदे पर उतारा है. तापसी ने सोशल मीडिया पर सवाल किए हैं- क्या ‘कमिंग टू अमेरिका’ में यहूदी बनने वाले एडी मर्फी से हम सवाल करते हैं? क्या आमिर खान के ‘3 इडियट्स’ में कॉलेज किड बनने पर सवाल किए जाते हैं? क्या आयुष्मान खुराना से सवाल किया जाएंगे, जब वह ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में गे बनने वाले हैं?


यह सवाल पूछे नही जाते, लेकिन पूछे जरूर जाने चाहिए. अक्सर ऐक्टर के ऊंचे कद के कारण उसे फिल्म में कास्ट किया जाता है. आमिर ‘3 इडियट्स’ में इसीलिए कास्ट किए जाते हैं, क्योंकि वह टिकट खिड़की पर ज्यादा दर्शक बटोर सकते हैं. इसीलिए ‘मैरी कॉम’ जैसी फिल्म में नॉर्थ ईस्ट की किसी हीरोइन को कास्ट करने की बजाय ग्लैमरस प्रियंका चोपड़ा को लिया जाता है. आयुष्मान खुराना किसी फिल्म में गे इसीलिए बनाए जाते हैं, क्योंकि उनका अच्छा खासा मार्केट है. यहां रिप्रेजेंटेशन के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा जाता. प्रतिनिधित्व का सारा मामला वहीं खत्म हो जाता है, जब अनुराग कश्यप अपनी वेब सीरिज ‘सेक्रेड गेम्स’ में एक ट्रांसजेंडर की भूमिका के लिए एक यंग लड़की को कास्ट करते हैं, किसी ट्रांसजेंडर को नहीं.


यंग लड़कियां मीडिया और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की चाहत होती हैं. कई साल पहले अमेरिका की मशहूर पत्रिका ‘द रैप’ को इंटरव्यू देते समय ऐक्ट्रेस मैगी गिलेनहाल ने एक दिलचस्प किस्सा सुनाया था. उन्होंने बताया था कि उन्हें एक फिल्म में 55 साल के ऐक्टर के अपोजिट कास्ट करने से मना कर दिया गया था. डायरेक्टर-प्रोड्यूसर ने उनसे कहा था कि हीरो के मुकाबले उनकी उम्र ज्यादा है. तब वह 37 साल की थीं. कहावत भी है ना कि मर्द साठे पर पाठा होता है. इसीलिए फिल्मों में पचास पार के अक्षय कुमार, सलमान खान, आमिर और शाहरुख खान राज करते हैं. उनकी साथ की हीरोइनों करीना कपूर, रवीना टंडन, शिल्पा शेट्टी को टीवी पर टैलेंट हंट शोज जज करके ही संतोष करना पड़ता है.


यूं यह सिर्फ फिल्मों का सच नहीं. ग्लैमर जिस भी पेशे में है, वहां तीस-चालीस पार की औरतों के लिए जगह नहीं है. टीवी शोज़ में हर बार नई लड़की को कास्ट किया जाता है. अमेरिकन ऑथर बॉनी मार्केस ने अपनी किताब ‘द पॉलिटिक्स ऑफ प्रमोशन’ में लिखा है कि पचास पार की औरतों को काम करने वाली जगहों पर दोहरे भेदभाव का सामना करना प़ड़ता है - सेक्सिज्म और एजिज्म. उन्हें मर्दों के साथ-साथ यंग लड़कियों से भी मुकाबला करना होता है. इसके लिए वे लगातार खुद को युवा रखने की कोशिश करती हैं. एजिज्म की लेखिका एस्टन एप्पलव्हाइट ने खूब व्याख्या की है. उनका कहना है कि बुढ़ाते मर्दों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होता. पुरुष उम्र के साथ ज्यादा अनुभववान और मूल्यवान माने जाते हैं. औरतों के सथ उलटा होता है, इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री उन्हें घर बैठा देना चाहती है.


हिंदी फिल्मों में हीरोइनों की स्थिति क्या है, इसे समझने के लिए आईबीएम और दिल्ली के दो रिसर्च इंस्टीट्यूट्स ने सर्वेक्षण किया था. उसमें 1970 से 2017 के बीच की 4,000 फिल्मों के विकीपीडिया पेजों को छांटा गया था. शोधकर्ताओं का कहना था कि महिला कैरेक्टर्स को अधिकतर आकर्षक, सुंदर कहा जाता है. उन्हें शादीशुदा या प्रेमिका के तौर पर दिखाया जाता है. 70 के दशक में सिर्फ 7% फिल्मों में सेंट्रल कैरेक्टर औरतें होती थीं. 2015 से 2017 के बीच यह बढ़कर 11.9% हो गया है. ऐसे में साठ पार की औरतों को लिए गुंजाइश कहां बचती है.


एप्पलवाइट ने एक बार ‘टेड टॉक’ में कहा था- मैं उम्र को खारिज नहीं करना चाहती. बस, अपनी तरह जीना चाहती हूं. हमारे यहां नीना गुप्ता भी इसकी मिसाल हैं. अपने समय से आगे, और अपनी तरह की जिंदगी जीने वाली. अक्सर वह इंटरव्यूज़ में कह चुकी हैं कि हमारी इंडस्ट्री में भी बोल्ड औरतों को नेगेटिव औरत माना जाता है. सालों मुझे काम के लिए परेशान होना पड़ा. मेरे दोस्तों तक ने मेरा साथ नहीं दिया. यह स्थिति उनके साथ अब भी कायम है. एक ‘बधाई हो’ के बाद करियर पर पूर्ण विराम नहीं लग सकता. नीना गुप्ता, सोनी राजदान जैसी ऐक्ट्रेस के सवाल जायज हैं. हर क्षेत्र में काम करने वाली बड़ी उम्र की औरतों के ऐसे सवाल जायज हैं. उन्हें हक है कि अपने हक के लिए सवाल उठाएं.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)