अयोध्या जन्मभूमि विवाद पर चल रही दलीलों की आखिरी तारीख तय कर दी गई हैं... 18 अक्टूबर के बाद इस मसले पर कोई जिरह नहीं होगी...इसके बाद सुप्रीम कोर्ट फैसला लिखेगा... सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि जरूरत पड़ी तो वो शनिवार को भी सुनवाई कर सकता है और इसी मसले पर रोजाना तकरीबन एक घंटा अधिक... कोर्ट का रुख साफ है कि सालों पुराने इस विवाद को अब वो लंबा खींचने को तैयार नहीं है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई इस मसले को अपने रिटायरमेंट से पहले निपटाना चाहते हैं ऐसी चर्चा है। करोड़ों हिंदुओं के साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड इस फैसले के इंतजार में है। साथ ही भाजपा सरकार भी, जिसके संकल्प पत्र में राम मंदिर शामिल रहा है।
अयोध्या का फैसला कई मायनों में बड़ा साबित होने वाला है। फैसला किसी के हक में भी हो...देश पर इसका असर लंबे समय तक रहेगा...अयोध्या को लेकर किसके दावों में कितना दम है ये तो फैसले से पता चलेगा लेकिन अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के रूख से दिवाली जरूर भव्य होने वाली है। हिंदू संगठनों में उम्मीद जगी है कि रामलला को उनका स्थान मिलेगा। माना जा रहा है कि मोदीराज में राम का ये वनवास खत्म होगा।
माना जा रहा है कि 17 नवंबर से पहले अयोध्या पर फैसला आ सकता है सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा है कि 18 अक्टूबर तक मामले की सुनवाई पूरी हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम और हिंदू दोनों पक्षों से तारीख मांगी थी जिसमें दोनों से जिरह पूरी कर लेने की बात पूछी गई थी । हालंकि निर्मोही अखाड़े ने कोई तारीख नहीं दी है। इसके पीछे अटकलें लगाने की वजह 17 नवंबर को चीफ जस्टिस गोगोई रिटायर हो जाने की बात कही जा रही है। तो साफ है कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर अपना फैसला सुनाने में वक्त नहीं लेगा..
अयोध्या में विवादित जमीन को लेकर मालिकाना हक की लड़ाई है, निर्मोही अखाड़ा, रामलला और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच स्वामित्व की जंग चल रही है...अयोध्या को लेकर 14 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थीं...लेकिन जहां तक बात इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की है..तो कुल 2.77 एकड़ की जमीन पर उसने फैसला सुनाया था..अयोध्या की कुल 67.703 एकड़ जमीन अधिग्रहण के बाद सरकार के पास है..इसमें से भी दशमलव 313 एकड़ पर विवादित ढांचा था...जिसे गिरा दिया गया था...खास बात ये है कि इस पूरी जमीन के 67.390 एकड़ हिस्से को सरकार गैर विवादित मानती है।
अयोध्या विवाद को कोर्ट की चौखट पर एक लंबा अरसा गुजर चुका है...और इस वक्त में कई बार हिंदूओं के पक्ष में फैसला आया..लेकिन कभी सियासत और कभी सामाजिक वजहों से किसी फैसले पर अमल नहीं हो पाया...लंबे वक्त बाद 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया. फैसला हुआ कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाए. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।
अयोध्या विवाद पर लगातार सुनवाई चल रही है...16 दिन हिंदू पक्षकारों के पक्ष रखने के बाद 17 वें दिन से मुस्लिम पक्षकार अपनी दलील रखते आ रहे हैं... हिंदू पक्ष खास कर निर्मोही अखाड़े की तरफ से दावा किया है कि गर्भ गृह, सीता रसोई, चबूतरा, भंडार गृह जन्मस्थान के सबूत उनके पास है... इसके जवाब में मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वैदिक काल में मंदिर नहीं थे। मूर्ति पूजा भी नहीं होती थी। हिंदू पक्ष ने 2010 के फैसले का हवाला दिया जिसमें हाईकोर्ट ने भी माना था, मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद बनाई गई। मुस्लिम पक्ष ने धार्मिक ग्रंथ का हवाला दिया...जिसमें कहा गया कि रामचरित मानस में भी भगवान राम के जन्मस्थान के बारे में सही जगह नहीं बताई गई। सिर्फ अयोध्या में जन्म की बात कही गई। हिंदू पक्ष की तरफ से आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला दिया गया...जिसमें विशाल मंदिर का ढांचा मिलने की बात कही गई।
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ये रुख बेहद अहम है...और इसे लेकर हिंदू संगठनों के साथ भाजपा भी खासी उत्साहित दिख रही है...क्या कहना है भाजपा नेता विनय कटियार और संतों का आपको सुनवाते हैं... इन तमाम परिस्थितियों के बीच कई अहम सवाल है...जो सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या विवाद पर सुनवाई और उससे जुड़े कमिटमेंट को देखते हुए लोगों के सामने हैं...
मसलन क्या इस बार अयोध्या के साथ पूरा देश रामलला की दीवाली मनाएगा?
चीफ जस्टिस गोगोई नवंबर से पहले अयोध्या पर फैसला सुना सालों पुराने विवाद को खत्म करेंगे?
और सवाल ये भी कि मोदी राज में ही कोर्ट से रामलला का वनवास खत्म होगा?
इस चर्चा में ये बात साफ है कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला सुनाए। उसे किसी भी तरह सियासत के दायरे नहीं लाना चाहिए, लेकिन अभी के माहौल से ऐसा होता दिखता नहीं है। करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास से इस मसले को अब लंबा खींचना शायद किसी के हित में नहीं है। अच्छी बात ये है कि जब ये फैसला आने को है तो कम से कम समाज में ऐसी कटुता और वैमनस्यता का माहौल नहीं है, जिससे प्रदेश या देश दो हिस्सों में बंटा नजर आता हो। सियासतदानों ने से बस गुजारिश यही है कि फैसला जो भी लेकिन माहौल में समरसता बनी रहनी चाहिए।