28 सितंबर को पीएम मोदी की दिनचर्या में कुछ भी अलग या अनोखा नहीं दिख रहा था. उरी हमले के बाद से पीएम के सीने में आग लगातार सुलग ही रही थी, जिसकी तपिश उनके बेहद क़रीबी लोग भी ठीक से शायद ही महसूस कर सके हों.
पाकिस्तान की नापाक हरकतों के लिए सबक़ सिखाने की मुकम्मल तैयारियों के बीच भी मोदी का सुशासन और विकास का एजेंडा अपने रास्ते पर बदस्तूर जारी रहा. यही कारण है कि 28 सितंबर को साउथ ब्लाक में सवेरे कैबिनेट की बैठक से लेकर जिस तरह प्रगति की बैठक पीएम पूरी तन्मयता से कर रहे थे, उससे किसी को मोदी के इस्पाती इरादों का अंदाज़ा तक नहीं था कि वो इतिहास बदलने के लिए सीमा पार कर सर्जिकल स्ट्राइका ताना-बाना बुन चुके थे.
पाकिस्तान को इस दफ़ा न बख़्शने का इरादा बना चुके मोदी उरी हमले के बाद से ही कई रातों से ठीक से नहीं सोए हैं. 28-29 सितंबर की पूरा रात पीएम अपनी कोर टीम के साथ सात लोक कल्याण मार्ग से पूरे आपरेशन की मानाटरिंग करते रहे. सूत्रों के मुताबिक़ आपरेशन सफल होने की जानकारी न आने तक उन्होंने पानी का घूंट भी गले से नीचे नहीं उतारा. राजनाथ, पर्रिकर, सुषमा और जेटली के अलावा एनएसए अजीत डोभाल और सेनाओं के उच्चाधिकारियों से उनका सतत संपर्क बना रहा. जब सफल आपरेशन की तस्दीक़ हो गई तो ही पीएम 29 सितंबर की सुबह को अपनी कुर्सी से उठे और आराम करने के बजाय इसके बाद की तैयारियों में लग गए.
दरअसल, बीते 18 सितंबर को उरी में सेना हुए आतंकी हमले के बाद से प्रतिकार को लेकर उठ रही आवाज़ों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने जिस रणनीतिक धैर्य का परिचय दिया है वह अनूठा है. देश मे प्रतिकार की उठती मांग और विपक्ष के तानों के बीच प्रधान मंत्री ने बेहद नपे तुले शब्दों में जब कहा की 'जवानों की शहादत व्यर्थ नही जाएगी' या ' सेना कहती नही पराक्रम करती है' तो ज़्यादातर लोगों को लगा की यह लगभग वही जुमले हैं जो ऐसे हमलों पर हमारे सत्ता शीर्ष के द्वारा दोहराए जाते हैं.
वहीं, खुद प्रधानमंत्री मोदी उरी हमले के बाद भी जिस तरह से सामान्य रूप से पूर्वनियोजित कार्यक्रमों मे फेर बदल किए बिना उसमे भागीदारी कर रहे थे उससे भी भारत के कुछ अलग करने को लेकर कुछ लोग सवाल उठा रहे थे. हालांकि, पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अलग थलग करने के लिए प्रधानमंत्री के निर्देश को लेकर विदेश मंत्रालय ना केवल सक्रिय हो गया था, बल्कि इस पर भारत ने उरी हमले के दिन से बढ़त भी बना ली थी.
इसका असर यूएन मे देखने को मिला जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भद्द पीटी. वहीं पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन में भारत ने हिस्सा लेने वाले दूसरे देशो को राज़ी कर इसमे ना जाने का निर्णय लिया. हालांकि इस सब के बीच इस सब में प्रधान मंत्री मोदी गहरे दबाव में थे, एक तरफ जहां उनकी छवि को लेकर सवाल उठ रहे थे वहीं, विपक्ष के राजनीतिक दल उनपर कमजोर होने आरोप चस्पा कर रहे थे. लेकिन मोदी इस सबसे इतर बेहद खामोश लेकिन कुशल नेता की तरह शांत भाव से योजना के अंजाम पर पहुचने का इंतज़ार कर रहे थे.
जब सार्क में पाक अलग थलग पड गया और यूएनजीए में भी शरीफ को भाव नहीं मिला तो चौतरफ़ा शिकंजा कसने के बाद मोदी ने सीधा हमला बोला और भारत सरकार ने इसकी ज़िम्मेदारी भी ली.
वहीं कभी सिंधु समझौते तो कभी मोस्ट फवर्ड नेशन को लेकर बैठक में लगे रहे. मोदी के धैर्य को इससे समझा जा सकता है की, भारतीय जनता पार्टी के केरल मे हुई रैली में भी मोदी ने पाकिस्तान को ग़रीबी और बेरोज़गारी की लड़ाई पर मुकाबले के लिए ललकारा.
यह बात भाजपा के काडर को नागवार तो गुज़री ही, कांग्रेस ने भी चुटकी लेते हुए कहा मोदी अगला चुनाव पाकिस्तान से लड़ेंगें. लेकिन कार्रवाई को लेकर सेना को राजनीतिक मंजूरी दे चुके मोदी ने समय के इंतज़ार के लिए शब्दों पर संतुलन रखते हुए कुछ भी गैर ज़िम्मेदारी से नही कहा. यहां तक की पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की रात से पहले मोदी बेहद सामान्य ढंग से पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में भाग लेते रहे.
सवेरे साउथ ब्लाक में कैबिनेट की बैठक में अहम फ़ैसले लिए गए. इसके बाद हर माह के अंतिम बुधवार को विकास कार्यों के लिए होने वाली प्रगति की बैठक मैं वे 3.30 से 5 बजे तक रहे. अपने आवास वह 6.30 पर पहुंचे जहां रूटीन दो और बैठकें लीं. इन बैठकों के बीच में इनकी इस आपरेशन को लेकर बातचीत होती रही.
पीओके में लांचिंग पैड में फिर हरकत की जानकारी होते ही पीएम ने हल्ला बोल की इजाज़त दे दी. साथ ही यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया कि हमारे जवानों को ख़तरा नहीं होना चाहिये. इसके बाद पूरी रात आपरेशन पर नज़र रखी गई.
आपरेशन सफल होने के बाद सीमा पर हालात के मद्देनजर आज पीएम नरेंद्र मोदी ने सीसीएस की बैठक बुलाई जिसमें गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, एनएसए अजीत डोवाल, आर्मी चीफ दलबीर सुहाग, विदेश सचिव एस जयशंकर सहित कई अधिकारी शामिल हुए.
इसमें एलओसी पर मौजूदा हालात पर चर्चा हुई. इसके साथ ही राजनीतिक व अंतराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के मोर्चों पर भी उनकी टीम और शिद्दत से लग गई है. कुल मिलाकर मोदी ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी है कि सुशासन और विकास से कोई समझौता न करते हुए भी भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किसी भा हद तक जाएगी और दोषी बख्शे नहीं जाएंगे. सबसे बड़ी बात दुश्मनी निभाने में भारत सरकार जनता के प्रति अपनी प्राथमिकताओं को भी नहीं बदलेगी.