प्रियंका-निक और दीपिका-रणवीर की शादियों की खबरों के बीच एक खबर और है. तलाक की. तलाक, राजद सुप्रीमो के बेटे तेज प्रताप और उनकी बीवी ऐश्वर्या के बीच. तेज प्रताप-ऐश्वर्या की शादी कुछ छह महीने पहले ही हुई थी. बड़े जोरों-शोरों से. लेकिन अब दोनों के अलग होने की खबर आई है. किसी ने कहा, कपल सेलिब्रिटी न होता, तो इतना बवाल भी न होता. तलाक कौन सी बड़ी बात है. पिछली जनगणना कहती है कि देश में 13.60 लाख लोग तलाकशुदा थे. 1980 में हमारे यहां तलाक की दर 5% थी, जो हाल के सालों में 14% हो गई है. ऐसे में एक कपल और बढ़ जाए तो क्या है.
तलाक पर किसी को ऐतराज भी क्यों होना चाहिए. ये अपनी मर्जी की बात है. नहीं बनती, तो अलग हो जाइए. मुसीबत कटे. रोज-रोज की चिक-चिक भी. बताते हैं कि तेज प्रताप और ऐश्वर्या के बीच शुरुआत से ही खटपट चालू हो गई थी. घर वाले, ट्रेडीशनल परिवारों की तरह दोनों के बीच की दूरियों को कम करने में लगे थे. चाहते थे, कि शादी ‘बच’ जाए. पर आखिर नौबत तलाक तक पहुंच भी गई. कारण किसी को पता नहीं. 1955 के मैरिज एक्ट के सेक्शन 14 (1) के तहत तलाक शादी के एक साल बाद ही दायर किया जा सकता है. अगर विशेष परिस्थितियां हों तो अलग बात है. पर तेज प्रताप ने किसी विशेष परिस्थिति का जिक्र नहीं किया है. बस, यही कहा है कि वह कृष्ण हैं, और राधा की तलाश में हैं. हां, ऐश्वर्या उनकी राधा नहीं हैं. हल्के से एक इशारा भी दिया है कि बीवी उनके साथ क्रूरता कर रही थी. पर उस क्रूरता का कोई खुलासा नहीं किया गया है.
बीवी की क्रूरता के किस्से अक्सर लोग सुनाया करते हैं- मजाक में. कभी-कभी सीरियसली भी. बीवी ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी. वरना, मैं बड़े काम का था- टाइप. कुछेक लोग तो क्रूर बीवियों से तलाक लेकर बनारस में पिशाचनी मुक्ति पूजा तक कर आए हैं. यहां चूल्हे-चौके, ससुरालियों की सेवा-पानी में लगी बीवी का हाल क्या होता है, इसे किसी क्रूरता में गिना नहीं जाता. यह बीवियों के धर्म-कर्तव्य का हिस्सा मान लिया जाता है. क्रूरता की परिभाषा अपने यहां सीमित है. कुछेक फर्मों में बंधी-बंधाई. मुंबई हाई कोर्ट ने अभी कुछ महीने पहले एक पति को पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से बरी कर दिया था. पति बीवी को ताने मारा करता था- तुझे खाना पकाना नहीं आता. फिर बार-बार बीवी को अपने पिता के घर से पैसे लाने को कहता था. बीवी ने खुदकुशी की, पर कोर्ट ने कहा कि खाना पकाने के लेकर ताने मारना क्रूरता है ही नहीं. आईपीसी का सेक्शन 498ए पति या पति के रिश्तेदारों की क्रूरता से औरत को बचाता है. यह सेक्शन क्रूरता की परिभाषा भी बताता है. पर ताने मारना इस परिभाषा में फिट ही नहीं बैठता.
तेज प्रताप-ऐश्वर्या की कहानी के कई पहलू हैं. हम इस कहानी को सिर्फ तेज प्रताप के एंगल से जानते हैं. ऐश्वर्या का एंगल किसी को नहीं पता. पता है तो सिर्फ इतना कि ऐश्वर्या दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेज मिरांडा हाउस और एमेटी यूनिवर्सिटी से पढ़ी हैं. एमबीए हैं. तेज प्रताप बारहवीं पास भी नहीं हैं. इस एंगल से भी इस कहानी को समझने की जरूरत है. पारिवारिक प्रताप का महत्व अलग होता है लेकिन हमारे यहां अक्सर खूब पढ़ी-लिखी लड़कियों को कम पढ़े-लिखे (कई बार अनपढ़) लड़कों से ब्याह दिया जाता है. ऐसी बेमेल शादियां अक्सर सुनने—देखने में आती हैं. गांव-देहात में उम्र का अंतर भी देखा जाता है. पैसे के अभाव में किशोरियां बुर्जुर्गों के पल्ले बांध दी जाती हैं. प्रेमचंद की ‘निर्मला’ 1927 से अपना दुखड़ा रो रही है, पर नब्बे साल बाद भी जहां की तहां पड़ी है. बेमेल शादी उसके लिए भी जी का जंजाल बनी थी. बेशक कहानियां हमारे बीच से ही निकलकर आती हैं. बिहार की यह कहानी भी सहजीवन शुरू होने के बाद पलट गई है. कोई इस कहानी का दूसरा पहलू जानने की कोशिश कर सकता है. बाकी कयास लगाने का हक सभी को है.
यूं बेमेल शादियों का दौर अब चरम पर आने वाला है. या यह भी कह सकते हैं कि शायद शादियों पर ही ग्रहण लग सकता है. अमेरिका के एकैडमिक जरनल ‘डेमोग्राफी’ में छपी एक रिसर्च में कहा गया है कि 2050 तक भारत में सूटेबल पति और पत्नी ढूंढना मुश्किल हो जाएगा. चूंकि यहां पुरुष अपने से कम पढ़ी-लिखी लड़कियों से शादियां करते हैं. इसलिए अगर अधिक से अधिक लड़कियां कॉलेज या यूनिवर्सिटी लेवल की पढ़ाई कर लेंगी तो उनके लिए लड़के मिलेंगी ही नहीं. रिसर्च नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के 2005-06 के डेटा के हवाले से बताती है कि 54.4% आदमियों, जिन्होंने यूनिवर्सिटी लेवल तक की पढ़ाई की थी, ने प्राइमरी या सेकेंडरी लेवल तक की स्कूली शिक्षा प्राप्त लड़कियों से शादियां कीं. जबकि 73.4% ग्रैजुएट लड़कियों ने उसी एजुकेशनल बैकग्राउंड वाले लड़कों से शादी की. जाहिर है, लड़के अपने से कम पढ़ी-लिखी लड़कियों को चुनते हैं. पढ़ी—लिखी लड़कियां, अपने से कम पढ़े-लिखे लड़कों के साथ बंधने को तैयार नहीं होतीं.
वैसे हमें ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़कियां रास नहीं आतीं. कह दिया जाता है, पढ़ी लिखी है तो दिमाग खराब हो गया है. पर पढ़ाई दिमाग खराब नहीं, दिमाग दुरुस्त करती है. तब आप शांत नहीं रहते- चुप भी नहीं. हर बात पर सवाल करते हैं. जवाब देते हैं. हमें ऐसी लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं. लड़कियां चुप ही अच्छी लगती हैं. जो चटर-पटर न बोले. तितली सी न उड़े. आप जहां चाहें बैठा दें- चाहे चौके की चारदीवारी हो या सत्ता की सबसे ऊंची कुर्सी. वहां बैठकर आपका भोंपू बजाती रहे- बस. तब शादियां मेलदार होती हैं. तर्क-वितर्क से परे. तर्क वितर्क होने लगे तो मेल खत्म हो जाता है.
तेज प्रताप की कहानी का दूसरा सिरा क्या है.. यह भी जानने की जरूरत है. बाकी, तलाक लेकर एक खराब रिश्ते को खत्म करना कोई गलत नहीं है. मुक्ति का रास्ता जरूर है. शादियां प्यार से बचती हैं, सामाजिक दबाव से नहीं. यह परिवार को भी समझने की जरूरत है, हमें भी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)