BLOG : यूपी चुनाव मोदी के लिए कितना नुकसानदेह या फायदेमंद ?
उत्तरप्रदेश का विधानसभा चुनाव कितना महत्वपूर्ण हो गया है और क्यों देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र नरेन्द्र मोदी ने इसे प्रतिष्ठा का विषय बना दिया है. इसके पीछे कई राज छिपे हुए हैं. ये चुनाव सिर्फ उत्तरप्रदेश का चुनाव नहीं है बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव का ट्रेलर भी है. उत्तरप्रदेश के नतीजे तय करेंगे कि देश की राजनीति की करवट क्या होगी. क्या समीकरण होंगे और क्या परिस्थितियां बनेंगी. अखिलेश यादव की दोस्ती राहुल से आगे चलेगी या नहीं, नरेन्द्र मोदी पर खतरा है या नहीं, क्या मायावती और मोदी के बीच दुश्मनी बढ़ेगी या दोस्ती होगी. इन सारे सवालों का जवाब उत्तरप्रदेश के नतीजों में उलझी हुई है. इन सारी गुत्थियों को समझने से पहले ये समझ लेते हैं कि क्यों उत्तरप्रदेश का चुनाव इतना महत्वपूर्ण हो गया है. अमूमन कभी भी कोई प्रधानमंत्री किसी विधानसभा के चुनाव में इतनी रैली नहीं करते हैं जितनी रैलियां नरेन्द्र मोदी खुद कर रहे हैं. यही नहीं मोदी के बड़े से छोटे मंत्री उत्तर प्रदेश में डेरा डाले हुए हैं. वहीं मोदी शनिवार से वाराणसी में तीन दिन तक खुद डेरा डालेंगे. वाराणसी में मंत्रियों की फौज देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कैसे मोदी सरकार और पार्टी ने पूरी शक्ति झोंक दी है. वजह साफ है कि उत्तरप्रदेश और बिहार के लोकसभा सभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत की वजह से मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे. खासकर बिहार विधानसभा में पार्टी की हार के बाद उत्तर प्रदेश में नरेन्द्र मोदी की अग्नि परीक्षा है और यही अग्निपरीक्षा तय करेगी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में देश की राजनीति की दिशा और दशा क्या होगी. क्या मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बन पाएंगे या नहीं इसके तार उत्तरप्रदेश के नतीजे से जुड़े हुए हैं. अगर मोदी की जीत होती है तो उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है लेकिन हार होती है तो दिल्ली की राजनीति पर जबर्दस्त असर पड़ सकता है. उत्तर प्रदेश में फिलहाल जो सूरतेहाल है इससे लगता है कि न तो किसी पार्टी के समर्थन में हवा चल रही है और न ही तूफान है बल्कि उम्स जैसी स्थिति है यानि सस्पेंस की स्थिति है. सस्पेंस की स्थिति इसीलिए है कि सूबे में किसी पार्टी के पक्ष में साफ साफ हवा नहीं दिख रही है बल्कि लड़ाई जिले स्तर और सीट स्तर पर हो गई है. त्रिकोणीय मुकाबले में कौन पार्टी जीतेगी या हारेगी ये कहना आसान नहीं रह गया है. इस वजह से हर पार्टी त्रिशंकु विधानसभा के संकेत भी दे रही है. इसी सस्पेंस ने कई नेताओं की धड़कनें बढ़ा दी है. इस चुनाव में जितना दांव अखिलेश यादव या मायावती का लगा हुआ है उससे कहीं ज्यादा मोदी की प्रतिष्ठा और भविष्य दांव पर है. क्या ये चुनाव मोदी के लिए खतरे की घंटी है? नेता देश की तकदीर लिखने की कोशिश करते हैं और वहीं समय और राजनीतिक परिस्थिति नेता की तकदीर लिखते हैं और इस चुनाव में कौन तकदीर का शहंशाह होगा कहना मुश्किल होगा. बिहार विधानसभा में करारी हार और महाराष्ट्र में शिवसेना से राजनीतिक तानातनी की वजह से बीजेपी की स्थिति 2014 के लोकसभा जैसी नहीं है. अगर यूपी में भी बिहार जैसी स्थिति बनती है तो 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना मोदी के लिए आसान नहीं होगा. अगर यूपी में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जीत होती है तो पूरे देश में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पार्टियों का लामबंद शुरू हो जाएगा और इसे टक्कर देना नरेन्द्र मोदी के लिए आसान नहीं होगा. अगर मायावती की जीत होती है तो मोदी पर सवाल जरूर उठेंगे लेकिन मोदी के लिए उतना हानिकारक नहीं होगा जितना अखिलेश के जीतने से माहौल बनेगा. वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना से दूरियां बीजेपी पर काफी महंगा हो सकता है. गुजरात में हार्दिक पटेल और हरियाणा, यूपी, राजस्थान में जाट के आरक्षण की मांग को लेकर पटेल और जाटों का लगाव बीजेपी से कम हुआ है. क्या मोदी मजबूत होकर उभरेंगे? अगर उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत होती है तो नरेन्द्र मोदी 2019 लोकसभा चुनाव के लिए दोबारा मजबूत दावेदार हो जाएंगे. बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिलता है तो फिर एक बार मुहर लग जाएगा कि मोदी का जादू बरकरार है वहीं अखिलेश-राहुल का मनोबल गिर जाएगा, और हो सकता है कि फिर अखिलेश यादव राहुल से राजनीतिक दूरियां बना लेंगे और मोदी के खिलाफ मुहिम को धक्का लग सकता है. अगर सूबे में त्रिशंकु विधानसभा जैसी स्थिति बनती है तो एक अलग ढ़ंग की स्थिति बन सकती है . ऐसी स्थिति जहां पर कोई भी पार्टी अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना पाती है तो मोदी और मायावती की दोस्ती बढ़ सकती है. मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी बचाने लिए मायावती को उत्तरप्रदेश में समर्थन कर सकते हैं चूंकि मायावती सपा से ज्यादा बीजेपी के साथ सहज महसूस करती है. अगर ऐसी स्थिति बनती है तो लोकसभा चुनाव में मोदी-मायावती की जोड़ी यूपी में जबर्दस्त मजबूत हो सकती है चूंकि इस समझौता में दोनों का हित फंसा हुआ रहेगा. मायावती यूपी में बीजेपी का समर्थन लेती रहेंगी और दिल्ली में मोदी मायावती का समर्थन मिलता रहेगा. उत्तर प्रदेश की राजनीति का असर केन्द्र की राजनीति पर क्या पड़ेगा इसका सही सही अंदाजा 11 मार्च को ही पता चल पाएगा.
- धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए @dharmendra135 पर क्लिक करें. फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें. https://www.facebook.com/dharmendra.singh.98434
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