Blog on USA Iran: अफगानिस्तान संकट के बीच एक और बड़े खतरे का आगाज़ होता दिखाई दे रहा है, जो ईरान को लेकर है. वहां पिछले दिनों ही कट्टरपंथी विचारधारा रखने वाले इब्राहिम रईसी मुल्क के राष्ट्रपति बने हैं, लिहाज़ा तालिबान के प्रति उनका झुकाव होना स्वाभाविक है. लेकिन अमेरिका समेत अन्य पश्चिमो देशों के लिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम ज्यादा चिंता का विषय बन गया है.
अमेरिका ने साफ लहजे में कह दिया है कि अगर कूटनीति से ईरान का परमाणु मुद्दा नहीं सुलझा तो वह अन्य विकल्प आजमाने के लिए तैयार है. इसलिये सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका अब ईरान पर भी हमला करने की सोच रहा है? परमाणु मसले पर अन्य मुल्कों के अलावा इजरायल भी अमेरिका के साथ है. अंतराष्ट्रीय बिरादरी के लिए आने वाले दिन बेहद ऊहापोह भरे होने का संकेत दे रहे हैं और इसमें ईरान को लेकर भारत को भी अपनी भूमिका तय करनी पड़ेगी.
इजरायल के नए प्रधानमंत्री बने नेफ्टाली बेनेट और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच शुक्रवार को वाशिंगटन में हुई पहली मुलाकात में ईरान के परमाणु संकट का मुद्दा ही छाया रहा. इजरायल को लगता है कि ईरान बेहद तेजी से परमाणु बम बना रहा है, लिहाज़ा वो अमेरिकी समर्थन से इसे किसी भी सूरत में रोकना चाहता है. अगर ईरान अपनी जिद पर ही अड़ा रहा, तो इजरायल व अमेरिका के साथ उसकी जंग होने के आसार नज़र आ रहे हैं. वैसे भी पिछले कुछ महीनों में ईरान और इजरायल के बीच तनाव बढ़ा है और दोनों ने एक दूसरे के जहाज़ों पर हमले करने के आरोप लगाए हैं.
बेनेट के साथ हुई इस बैठक के बाद बाइडन ने पत्रकारों से कहा कि हम सबसे पहले कूटनीति से ईरान के परमाणु मुद्दे को हल करने की कोशिश कर रहे हैं. यदि कूटनीति नाकाम हो जाती है तो हम फिर दूसरे विकल्प भी अपनाएंगे. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि ये विकल्प क्या होंगे. लेकिन सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि ये विकल्प हमले के सिवा भला और क्या हो सकता है.
दरअसल, ईरान ने 2015 में पश्चिमी देशों के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर समझौता किया था, लेकिन साल 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया था. उसके बाद अमेरिका ने ईरान पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे, जो आज भी जारी हैं. उसके जवाब में ही ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज़ कर दिया है. हालांकि ईरान ये सफाई देता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन बताया जा रहा है कि अब ईरान हथियार बनाने के स्तर तक यूरेनियम का संवर्धन कर रहा है. इसीलिये पश्चिमी देश मानते हैं कि ईरान परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा है.
हालांकि ईरान के साथ हुए समझौते को फिर से जीवित करने के लिए वियना में वार्ता चल रही है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से इस मसले पर कोई भी बैठक न होने इसमें कोई प्रगति नहीं हुई है. राष्ट्रपति बाइडन ने कहा है कि वो ईरान पर लगे प्रतिबंध हटा लेंगे और फिर से समझौते में शामिल हो जाएंगे बशर्ते ईरान समझौते की शर्तों का सख़्ती से पालन करे. लेकिन वह इससे बचना चाहता है और खुद को परमाणु सम्पन्न देश बनाना चाहता है.
ये भी सच है कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप और इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच गहरे और क़रीबी रिश्ते रहे हैं. ट्रंप के कार्यकाल में ही यरूशलम को इजरायली राजधानी के रूप में मान्यता मिली थी. इसे इजरायल की एक बड़ी कूटनीतिक जीत और अमेरिका से मिली बड़ी राहत के तौर पर देखा गया था.
अब बाइडन ने भी बेनेट को दोस्त कहा है, जिससे ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते और भाईचारा आगे भी मज़बूत बना रहेगा. बाइडन ने ये भी कहा है कि अमेरिका इज़राइल के आईरन डोम मिसाइल सिस्टम का समर्थन करता रहेगा. बाइडन ने कहा कि अमेरिका इज़राइल की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है. जबकि मीडिया को दिए अपने बयान में बेनेट ने पूर्व प्रधानमंत्री नेतन्याहू के सख़्त लहजे को ही दोहराते हुए कहा कि अमेरिका हमारा सबसे क़रीबी दोस्त है, यरूशलम हमारी ऐतिहासिक राजधानी है और हम ईरान को परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देंगे.
इजरायल ये कहता रहा है कि वह दुश्मन देशों से घिरा एक छोटा सा देश है और इसलिए उसे अपनी सैन्य शक्ति को बनाए रखना ज़रूरी है. बाइडन और बेनेट की मुलाक़ात से ईरान को यही संदेश दिया गया है कि सत्ता परिवर्तन के बाद अमेरिका अब भी इजरायल के साथ मज़बूती से खड़ा है. देखना ये है कि दुनिया की दो बड़ी सैन्य ताकतें आने वाले दिनों में क्या कहर बरपाती हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)