विवेक ओबरॉय ने अपने किए पर माफी मांग ली है. ऐश्वर्य राय को लेकर जो मीम उन्होंने ट्विटर पर डाला था, उसे भी डिलीट कर दिया है. महिला आयोग के नोटिस का असर है, या लोगों का दबाव, विवेक ओबरॉय थोड़ा माइल्ड हो गए हैं. कल तक चिघाड़ रहे थे कि उन्होंने सिर्फ मजाक किया था- मीम लतीफे की तरह होते हैं. आप उन्हें सार्वजनिक मंच पर छेड़ते हैं, लोग मजे लेते हैं और फिर भूल जाते हैं. औरतों को लेकर मीम खूब बनाए जाते हैं- लतीफे भी. औरतें खुद भी उन पर खिसियानी हंसी हंसती हैं. विवेक ओबरॉय ने भी लतीफा छोड़ा था. वह कह रहे थे कि लतीफे को लतीफों की तरह लें. यह कल की बात थी. आज की बात यह है कि वह मिमिया रहे हैं- मैं क्षमाप्रार्थी हूं.


कह दिया, फिर माफी मांग ली. आजकल का यही चलन है. आप अनर्गल कुछ भी बकिए- फिर कहिए- आई एम सॉरी. मेरा यह मतलब नहीं था. मतलब निकालने वालों ने गलत मतलब निकाला. मैंने तो मजाक किया था. यूं मजाक-मजाक की चुभन बहुत तेज होती है. कई बार गंभीर आरोपों से भी बदतर. विवेक ओबरॉय ने अपनी तसल्ली कर ली. सालों से जो हताश प्रेमी उनके अंतस में दबा हुआ था, हाथ-पैर खोलकर बाहर निकल आया.


समाज पुरुषों को इसकी पूरी इजाजत देता है. वे कुछ भी करने के लिए खुले हैं. वे चाहें तो किसी लड़की से अपने रिश्ते में हिंसक हो जाएं या आवारा प्रेमी बनकर उनसे चिपके रहें. किसी भी जटिल रिश्ते में आखिर औरत को ही तमाम आरोप-प्रत्यारोप झेलने होते हैं. प्रेमी हिंसक हो जाए तो यही कहा जाता है कि लड़की ने उसे पूरी तवज्जो नहीं दी. अति महत्वाकांक्षी हो गई. लड़का जबरन एकतरफा प्रेम को रिलेशनशिप समझ ले तो भी लड़की ही दोषी. हम बार-बार लड़की को सही समय पर सही फैसला लेने की सलाह देते हैं. विवेक ने जरूर लाइमलाइट में रहने के लिए ऐश्वर्या का सहारा लेने की कोशिश की- पर बात बनी नहीं. ऐश्वर्या राय ने उनसे अपने रिश्ते पर मुहर नहीं लगाई- विवेक ओबरॉय का करियर धरातल पर ही रहा.


आज तक है. इसीलिए निराशा मन पर हावी है. शादी के 12 साल बाद भी पुराने रिश्तों को उधेड़कर लाइमलाइट लूटी जा रही है. आपको लानतें मिलें, या तालियां- प्रचार तो होता ही रहता है. विवेक को भी प्रचार की लालसा है. उनकी फिल्म चुनावों के चलते अटक गई तो एक और रास्ता निकाल लिया.लालसा ने लाचार किया और पुरुषत्व के सबसे बड़े हथियार का सहारा लिया- औरतों के स्टेटस पर लतीफा उछालने का. लेकिन हंसी-मजाक और फूहड़पन के बीच एक फर्क होता है जिन्हें परिष्कृत रुचि वाले ही अलग कर सकते हैं. इन दोनों के मजे भी अलग-अलग होते हैं. हंसी-मजाक में मजा लिया जाता है लेकिन फूहड़पन में मजाक उड़ाया जाता है.


फिर मजाक सिर्फ मजाक नहीं होता. यह हमारी साइकी का हिस्सा होता है. किसी खास रूपाकार वाले व्यक्ति, किसी औरत, किसी जाति के खिलाफ हमारी टिप्पणियां, हमारी अवधारणा को लेजिटिमाइज करने का तरीका ही होती हैं.जब यह कहा जाता है कि मजाक के पीछे आपका मानस काम करता है तो यह बिना सिर पैर की बात नहीं होती.अमेरिका की वेस्टर्न कैलोरिना यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग ने एक अध्ययन कियाहै ‘सेक्सिस्ट ह्यूमर नो लाफिंग मैटर’.इसमें कहा गया है किसुनहरे बालोंवाली लड़कियों और महिला ड्राइवरों के बारे में चुटकुले सुनना कोई हार्मलेस फन या गेम नहीं है. इससे महिलाओं के खिलाफ शत्रुतापूर्ण भावनाओं और भेदभाव को बढ़ावा मिलता है. अध्ययन में कई प्रयोग किए गए. परिणाम के तौर पर कहा गया कि सेक्सिस्ट ह्यूमर व्यक्ति के पूर्वाग्रहों को मुक्त करने का जरिया होता है. अक्सर संबंधों में हताशा मिलने पर आप ऐसे ह्यूमर से अपने मन को संतोष देते रहते हैं.


भले ही मीम वापस ले लिया गया हो, लेकिन ऐसा रिएक्शन ही किसी लड़की की इमेज को तबाह कर दिया करता है. ऐश्वर्य राय सिलेब्रिटी हैं, पर जो नहीं हैं, उनका सत्यानाश रोजाना इंटरनेट पर होता रहता है. आप मैरिटल रेप, तीन तलाक, बच्चियों से बलात्कार पर चीत्कार करते रहें- साइबर क्राइम के आंकड़े खंगालते रहें लेकिन मीम के खिलाफ किस अदालत में जाएंगे? कोई धीमे से कह देगा- चल यार.. मजाक ही तो था.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)