(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
‘खेला होबे: हिंसा की चुनौती या विकास की हुंकार?
समय के साथ प्रमुख पार्टी बदलती रही लेकिन, बंगाल में हमेशा की तरह हिंसा की राजनीतिक स्वरूप जस का तस है. चुनाव के मौसम में यहाँ पानी से ज्यादा कुछ लोग खून के प्यासे हो जाते हैं. 1960 और 70 के दशक के दौरान, यह कांग्रेस, वाम और नक्सलियों के बीच तीन-तरफा टक्कर थी।
1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने कथित तौर पर घोषणा की थी कि "बंगाल में जीवन असुरक्षित हो गया है". उस वक़्त पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने वहां के विधानसभा में हिंसा के आंकड़े भी पेश किये. 1980-90 के दशक में, जब न तो टीएमसी और न ही भाजपा बंगाल के राजनीतिक में सक्रिय थी, उस वक़्त कांग्रेस और वामपंथी के बीच ही घमासान छिड़ा हुआ था. कालांतर में कई कारणों से वामपंथी का पश्चिम बंगाल में भारी नुकसान हुआ, जिस पर पार्टी ने तीन दशक से अधिक समय तक शासन किया था.
समय के साथ प्रमुख पार्टी बदलती रही लेकिन, बंगाल में हमेशा की तरह हिंसा की राजनीतिक स्वरूप जस का तस है. चुनाव के मौसम में यहां पानी से ज्यादा कुछ लोग खून के प्यासे हो जाते हैं. 1960 और 70 के दशक के दौरान, यह कांग्रेस, वाम और नक्सलियों के बीच तीन-तरफा टक्कर थी. सदी के अंत तक, यह सीपीआई (एम) और तृणमूल कांग्रेस के बीच था. पिछले कुछ वर्षों में, यह तृणमूल और भाजपा के बीच हिंसा का खेला जारी है.
राजनीतिक हिंसा के मामलों में पीड़ित ज्यादातर आम लोग, छात्र, शिक्षक, मजदूर, किसान, छोटे दुकानदार और पार्टी के कार्यकर्ता होते हैं. जब पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार पर पिछले चुनाव-समय की हिंसा को रोकने में विफल होने का आरोप लगाया गया था, तो TMC के सांसदों ने इसे पुराने आंकड़े से तुलना करने को कहा, जो की वास्तविक में पहले से सुधार हुआ है.
बंगाल में हिंसा की राजनीति का इतिहास बहुत ही भयावह है. लेकिन जब हिंसा रोकने की बात और कम करने की बात हो रही थी, तब अचानक से किसी 'नवजात' नेता के द्वारा दिया गया राजनीतिक नारा “खेला होबे” का पार्टी स्तर पर अपनाया जाना कोई संयोग नहीं है.
बांग्ला में “खेला होबे” ‘খেলা হবে’ और मैथिली में “खेला होयत” ‘খেলা হোয়েট’ का अर्थ बहुत मायने में किसी को चुनौती या धमकी के रूप में दिया जाता है. इसमें जनता की भलाई कम और हिंसा का आशंका अधिक नजर आती है. लेकिन अब ये जनता तय करेगी कि ये हिंसा और अत्याचार वाली चुनौती है या विकास का बिगुल.
बांग्ला संस्कृति पर, मैथिली भाषा और मैथिली संस्कृति का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव रहा है. भानुसिंहेर पदावली जिसे रवींद्रनाथ ठाकुर ने 16 साल की उम्र में मैथिली कवि कोकिल विद्यापति ठाकुर जिनका जन्म 1352 (बिस्फी, मिथिला क्षेत्र में) का सम्मान करते हुए अपनी पहली कविता 1884 में लिखी. इस कविता से दोनों छेत्र के आपसी भाषा-सांस्कृतिक सम्बन्धों के गहराई का एहसास होता है.
‘आमार शोनार बांग्ला’ गीत गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने बंग भंग के समय 1905 में लिखा था, जब पहली बार अंग्रेजों ने धर्म के आधार पर बंगाल का विभाजन किया था. ‘आमार शोनार बांग्ला’ गीत अब बांग्लादेश का राष्ट्रगान है.
बंगाल के विभाजन से, दोनों देश में रह रहे मैथिल समाज के लिए भी अभिशाप था. मैथिलों और बंगाल वासियों को बंटवारे की खेला की मुश्किलें दो बार झेलनी पड़ी, पहली बार 1905 बंगाल विभाजन में, दूसरी बार 1947 भारत-पाकिस्तान विभाजन के वक़्त. बहुत सारे मैथिली को नवनिर्मित बांग्लादेश छोर, विभाजन के वक़्त भारत आना पड़ा था.
शायद ही किसी इतिहासकार ने बंगाल विभाजन में मैथिलों के साथ हुए अत्याचार और बांग्लादेश से उनका पलायन का जिक्र किया है. मैथिली और बंगाल की जनता का विरासत साझा है, लेकिन आगे चल कर दोनों की चुनौतियाँ भिन्न-भिन्न हो गयी. मिथिला, बिहार के खराब शासन व्यवस्था से अशिक्षा और बेरोजगारी का शिकार होकर उसकी भाषा और मौलिकता खतरे में पड़ गयी वहीं बंगाल हिंसा और अत्याचार का शिकार हो सोनार बांग्ला का सपना छोर दशकों से राजनीतिक युद्ध क्षेत्र बना हुआ है.
कुछ दशक पहले ढाका-बंगाला और कोलकाता इस छेत्र के मुख्य शहर थे, जहाँ रोजगार की तलाश में बंगाल के अधिकांश लोग यहीं जाते थे. बंगाल के चुनाव के दौरान, बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ और बंगबंधु ’की जन्म शताब्दी के अवसर पर पीएम मोदी की ढाका यात्रा और वहां उस वक़्त होने वाले हिंसक घटनाएं, कई सरकारी कार्यालयों में आग लगाया जाना और कई धार्मिक संसथान पर भी हमला होना महज संयोग नहीं था.
शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में मतदान का पहला चरण 27 मार्च से शुरू होकर 29 अप्रैल तक 8 चरणों में तय किया है और मतगणना 2 मई को सुनिश्चित किया है. बंगाल और असम में पहले चरण के चुनाव के लिए मतदान 27 मार्च से शुरू हुआ था. बंगाल में पहले चरण में 82 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि असम में 76.9% मतदान हुआ.
गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की “आमार शोनार बांग्ला” की दो पंक्तियाँ जो की बांग्ला अक्षर में है जिसे मिथिला (तिरहुता) अक्षर जानने वाले भी पढ़ कर इसका मतलब सही मायने में समझ सकते है. इस गीत का किसी अन्य भाषा में अनुवाद कर इसके अर्थ से मेल करना संभव नहीं है.
“আমার সোনার বাংলা, আমি তোমায় ভালোবাসি।
তোমার এই খেলাঘরে শিশুকাল কাটিলে রে,
তোমারি ধুলামাটি অঙ্গে মাখি ধন্য জীবন মানি।
তুই দিন ফুরালে সন্ধ্যাকালে কী দীপ জ্বালিস ঘরে,
মরি হায়, হায় রে—
তখন খেলাধুলা সকল ফেলে, ও মা, তোমার কোলে ছুটে আসি॥ ও মা, তোর চরণেতে দিলেম এই মাথা পেতে—
দে গো তোর পায়ের ধুলা, সে যে আমার মাথার মানিক হবে।
ও মা, গরিবের ধন যা আছে তাই দিব চরণতলে,
মরি হায়, হায় রে—”
मतदान की पहली चरण में हिंसा की छिटपुट घटनाएं विभिन्न स्थानों से दर्ज की गईं, यहां तक कि कुल मिलाकर मतदान की स्थिति काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा है. आगे होने वाले मतदान के 7 चरण इसी तरह से शांतिपूर्वक स्थिति में सम्पन्न हो तो बंगाल की जनता के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.आने वाले 2 मई को मतदान का निर्णय जो भी हो लेकिन गुरुदेव ठाकुर का गीत और उनके गीत में लिखे भाव का अर्थ समझने वाले को ये हर दिन रोमांचित करता है, और वो बीते इतिहास का ‘शोनार बांग्ला’ को याद कर हर दिन गौरवान्वित होता है.
हेमन्त झा
बेंगलुरु