एक्सप्लोरर

विश्व पुस्तक दिवस: जिंदगी क्या है किताबों को हटाकर देखो

यह सच है कि इक्कीसवीं सदी में पुस्तकें पढ़ने के लिए लोग छापी हुई जिल्दों के मुहताज नहीं रह गए, बल्कि दुनिया भर की पुस्तकें डिजिटल रूप में उनकी मुट्ठी में आ गई हैं.

गुलाम मोहम्मद कासिर का एक शेर है- ‘बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो/ ऐ काश हमारी आंखों का इक्कीसवां ख्वाब तो अच्छा हो.’ शायर का यह आशाओं से भरा ख्वाब है तो इक्कीसवीं सदी के लिए ही, मगर आज यानी 23 अप्रैल को मनाए जा रहे वर्ल्‍ड बुक डे यानी विश्व पुस्तक दिवस पर भी उनका यह शेर बेहद मौजूं है. लेकिन ख्वाब तो ख्वाब होता है, बारूद के बदले हाथों में किताब आ जाने की राह में बड़ी मुश्किलें हैं. और किताब के हाथ में आ जाने के बाद भी उसके पढ़े जाने की कोई गारंटी नहीं है. हम अक्सर दानिशमंदी और दूसरों से ज्यादा जानकार दिखने के लिए आपसी बातचीत में बड़े-बड़े देसी-विदेशी साहित्यकारों और पुस्तकों के नाम तो उछालते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ने की जहमत नहीं उठाते.

यह सच है कि इक्कीसवीं सदी में पुस्तकें पढ़ने के लिए लोग छापी हुई जिल्दों के मुहताज नहीं रह गए, बल्कि दुनिया भर की पुस्तकें डिजिटल रूप में उनकी मुट्ठी में आ गई हैं. थोड़ी-सी कीमत चुका कर कम्प्यूटर और मोबाइल हैंडसेट पर ऑनलाइन पुस्तकें पढ़ने के ढेरों विकल्प सामने आ चुके हैं. गूगल ई-बुक स्टोर और अमेजॉन के किंडल सहित एंड्रायड और आईओएस प्लेटफार्म पर भी पढ़ने के कई ऑनलाइन-ऑफलाइन एप्लीकेशन मौजूद हैं. पहले पुस्तक प्रेमियों को पुस्तक मेलों या चंद बड़ी दुकानों तक पुस्तकें आने का इंतजार करना पड़ता था, लेकिन ई-कॉमर्स साइटों ने अब पाठकों तक पुस्तकों की पहुंच बेहद आसान कर दी है. छोटे शहरों व कस्बों में भी पाठक और साहित्य प्रेमी किताबों को ऑनलाइन खरीदने लगे हैं. लेकिन भारत की विशाल साक्षर आबादी को देखते हुए पुस्तक खरीद कर पढ़ने वालों की संख्या अब भी नगण्य है. इसीलिए पुस्तक दिवस की अहमियत बढ़ जाती है.

विश्व पुस्तक दिवस मनाया ही इसीलिए जाता है कि दुनिया अपनी तरक्की में पुस्तकों के महान योगदान को भूलने न पाए और समझे कि पुस्तकें महज कागज का पुलिंदा नहीं, बल्‍कि वे भूतकाल और भविष्‍यकाल को वर्तमान में जोड़ने का काम करती हैं. इसके साथ-साथ वे संस्‍कृतियों और पीढ़‍यों के बीच अनगिनत पुलों का निर्माण भी करती हैं. पुस्तक दिवस यह भी रेखांकित करता है कि जरूरी नहीं कि पुस्तकें कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक या साहित्य की अन्य विधाओं से ही संबंधित हों, जीवन के हर अनुशासन की पुस्तकों से प्यार किया और उन्हें पढ़ा जाना आवश्यक है. यह भी जरूरी नहीं है कि किसी देश अथवा भाषा विशेष की पुस्तकों को वरीयता दी जाए. इसीलिए दुनिया के विभिन्न भाषाभाषी 100 से अधिक देश यह दिवस बड़े उत्साह से मनाते हैं.

हालांकि विश्व धरोहरों को संभालने वाली संस्था यूनेस्को द्वारा विश्व पुस्तक तथा स्वामित्व दिवस का औपचारिक शुभारंभ 23 अप्रैल 1995 को किया गया था, लेकिन कहते हैं कि इसकी नींव 1923 के दौरान पुस्तक विक्रेताओं द्वारा महान लेखक मीगुयेल डी सरवेन्टीस को स्पेन में सम्मानित करते समय ही रख दी गई थी. यूनेस्को ने इसे 23 अप्रैल के दिन मनाने का फैसला इसलिए किया था कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक विलियम शेक्सपियर, व्लादिमीर नबोकोव, मैमुएल सेजिया वैलेजो की जयंती और पुण्यतिथि, मीगुयेल डी सरवेन्टीस (22 अप्रैल को मृत्यु और 23 अप्रैल को दफनाए गए थे), जोसेफ प्ला, इंका गारसीलासो डी ला वेगा की पुण्यतिथि और मैनुअल वैलेजो, मॉरिस द्रुओन और हॉलडोर लैक्सनेस जैसे महान लेखकों के जन्मदिवस से यह तारीख जुड़ी हुई है. अतः पुस्तकों की याद और लेखकों को श्रद्धांजलि देने की ओर पूरे विश्व का ध्यान खींचने हेतु यूनेस्को ने यह तारीख मुकर्रर की. बच्चों के बीच पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना, कॉपीराइट का प्रयोग करके बौद्धिक संपत्ति का प्रकाशन और संरक्षण भी इस पहल का उद्देश्य था.

विश्व पुस्तक दिवस का महत्व इस बात में है कि यह प्रत्येक देश के सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के लिए नए-नए विचारों को उत्पन्न करने के साथ ही पुस्तकों के बीच असली खुशी और ज्ञान की खोज करने तथा पुस्तकें पढ़ने के लिए आम लोगों; खासतौर से युवाओं को प्रोत्साहित करता है. यूनेस्को के अलावा प्रकाशकों, किताब विक्रेताओं और पुस्तकालयों का प्रतिनिधित्‍व करने वाले अन्‍य संस्‍थान एक साल के लिए वर्ल्‍ड बुक कैपिटल का चुनाव करते हैं. साल 2019 के लिए संयुक्‍त अरब अमीरात के शारजाह शहर को वर्ल्‍ड बुक कैपिटल बनाया गया है. वहीं 2020 में मलेशिया के कुआलालम्पुर को इसकी राजधानी बनाया जाएगा. वर्ल्‍ड बुक डे के जरिए यूनेस्‍को रचनात्‍मकता, विविधता और ज्ञान पर सब के अधिकार की भावना को प्रोत्सहित करना चाहता है. यह दिवस विश्‍व भर के लोगों; खासकर लेखकों, शिक्षकों, सरकारी व‍ निजी संस्‍थानों, एनजीओ और मीडिया को एक प्‍लैटफॉर्म मुहैया कराता है, ताकि पुस्तक-संस्कृति और साक्षरता को बढ़ावा दिया जा सके और सभी लोगों तक शिक्षा के संसाधनों की पहुंच हो.

भारत के संदर्भ में सवाल उठता है कि क्या पुस्तक दिवस मनाकर ही हम पढ़ने-लिखने की संस्कृति का विकास कर सकते हैं? क्या यह अन्य दिवसों की तरह मात्र एक औपचारिक कवायद नहीं है? इसका उत्तर शायद हां में है, क्योंकि हमने बचपन से ही पुस्तकों को परीक्षा पास करने और नौकरियां पाने का साधन समझ रखा है. नजीर बाकरी साहब लिखते हैं- ‘खड़ा हूं आज भी रोटी के चार हर्फ लिए, सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको’. महज कैरियर बनाने के लिए किताबें पढ़ने का संस्कार डालने में हमारी पिछली पीढ़ियों की अहम भूमिका है, जिसे हम आगे बढ़ा रहे हैं. ऐसा किताबी ज्ञान असल और व्यावहारिक जिंदगी में हमारे किसी काम नहीं आता. शायद इसीलिए निदा फाजली ने यह शेर कहा था- ‘धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो, जिंदगी क्या है किताबों को हटाकर देखो.’

यहां शायर की मुराद किताबों से मुंह मोड़ने की नहीं है, बल्कि वह कहना चाहता है कि किताबों के साथ-साथ जिंदगी को पढ़ा जाए. यहां कीवर्ड है- पढ़ना, और जिंदगी भी एक महान पुस्तक ही होती है. मुराद यह कि जिंदगी को भी किताब की तरह पढ़ना चाहिए. हमारी पूरी परवरिश में मां की लोरी से लेकर दादी-नानी के किस्सों तक किताबें की किताबें भरी पड़ी हैं और हमारी सभ्यता महान ग्रंथों की बुनियाद पर टिकी है. इसलिए पुस्तकरहित भारतीय समाज की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती. हमारी आदिम श्रुति परंपरा को पुस्तकों ने ही पनाह दी थी. इसलिए पुस्तकें रहेंगी, फिर चाहे वे किसी भी रूप में हों.

मूल प्रश्न और चिंता पुस्तकों को पढ़े जाने की है. आज भी अगर वेद, पुराण, उपनिषद्‌, गीता, कुरान, बाइबल, गुरुग्रंथसाहिब जैसे महान ग्रंथ न पढ़े जा रहे होते, तो वे हमारी सामूहिक स्मृति से गायब हो जाते. इनको पढ़ने का मुख्य कारक है- जिज्ञासा और ज्ञान. यदि हम आज के पाठकों के मन में भांति-भांति की पुस्तकों को पढ़ने की जिज्ञासा और उनसे ज्ञान प्राप्त करने की ललक जगा सकें, तभी पुस्तक दिवस सार्थक है, अन्यथा यह साल का एक और उत्सवधर्मी दिवस बन कर रह जाएगा.

लेखक से ट्विटर पर जुड़ने के लिए क्लिक करें-  https://twitter.com/VijayshankarC

और फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें-  https://www.facebook.com/vijayshankar.chaturvedi

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

Delhi Pollution: दिल्ली में चारों तरफ जहरीली हवा और धुंध की चादर, राजधानी में AQI ने तोड़े खतरे के सारे रिकॉर्ड
दिल्ली में चारों तरफ जहरीली हवा और धुंध की चादर, राजधानी में AQI ने तोड़े खतरे के सारे रिकॉर्ड
Saudi Arabia Deportation: अमेरिका से कहीं ज्यादा भारतीयों को सऊदी अरब ने किया डिपोर्ट, MEA के आंकड़ों से बड़ा खुलासा
अमेरिका नहीं बल्कि इस देश ने सबसे ज्यादा भारतीयों को किया डिपोर्ट, MEA के आंकड़ों से बड़ा खुलासा
नागिन 7 में ये एक्ट्रेस बनेगी इच्छाधारी ड्रैगन, प्रियंका चाहर चौधरी की जिंदगी में मचाएगी तबाही
नागिन 7 में ये एक्ट्रेस बनेगी इच्छाधारी ड्रैगन, प्रियंका चाहर चौधरी की जिंदगी में मचाएगी तबाही
'यूपी में न ठाकुरवाद, न ब्राह्मणवाद', BJP के ब्राह्मण विधायकों की बैठक पर केशव प्रसाद मौर्य की दो टूक
'यूपी में न ठाकुरवाद, न ब्राह्मणवाद', BJP के ब्राह्मण विधायकों की बैठक पर केशव प्रसाद मौर्य की दो टूक
ABP Premium

वीडियोज

SIP का दौर , 2025 में Rs 3 Trillion से ज्यादा Mutual Fund Flows | Paisa Live
Market Volatility के बीच SIP बना Investors का Favourite | ₹3 Trillion SIP Milestone Explained
Unnao Case: संसद भवन से भगाया महिलाओं को... Jantar-Mantar पर धरना देगी उन्नाव रेप पीड़िता
Delhi Pollution: दिल्ली-NCR में कोहरा प्रदूषण की दोहरी मार, कई जगह AQI 400 पार | BJP | CM Rekha
Maharashtra Breaking: Nagpur में मां और बेटी की बेरहमी से हत्या, पुलिस ने आरोपी को किया गिरफ्तार

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
Delhi Pollution: दिल्ली में चारों तरफ जहरीली हवा और धुंध की चादर, राजधानी में AQI ने तोड़े खतरे के सारे रिकॉर्ड
दिल्ली में चारों तरफ जहरीली हवा और धुंध की चादर, राजधानी में AQI ने तोड़े खतरे के सारे रिकॉर्ड
Saudi Arabia Deportation: अमेरिका से कहीं ज्यादा भारतीयों को सऊदी अरब ने किया डिपोर्ट, MEA के आंकड़ों से बड़ा खुलासा
अमेरिका नहीं बल्कि इस देश ने सबसे ज्यादा भारतीयों को किया डिपोर्ट, MEA के आंकड़ों से बड़ा खुलासा
नागिन 7 में ये एक्ट्रेस बनेगी इच्छाधारी ड्रैगन, प्रियंका चाहर चौधरी की जिंदगी में मचाएगी तबाही
नागिन 7 में ये एक्ट्रेस बनेगी इच्छाधारी ड्रैगन, प्रियंका चाहर चौधरी की जिंदगी में मचाएगी तबाही
'यूपी में न ठाकुरवाद, न ब्राह्मणवाद', BJP के ब्राह्मण विधायकों की बैठक पर केशव प्रसाद मौर्य की दो टूक
'यूपी में न ठाकुरवाद, न ब्राह्मणवाद', BJP के ब्राह्मण विधायकों की बैठक पर केशव प्रसाद मौर्य की दो टूक
CSK की टीम से हारी सौरव गांगुली की सेना, मार्को यानसेन के भाई ने धो डाला; पहले मैच में बड़े-बड़े स्टार फ्लॉप
CSK की टीम से हारी सौरव गांगुली की सेना, मार्को यानसेन के भाई ने धो डाला; पहले मैच में बड़े-बड़े स्टार फ्लॉप
RSS की तारीफ पर दिग्विजय सिंह ने दी सफाई, जानें कांग्रेस की संगठनात्मक क्षमता के सवाल पर क्या कहा
RSS की तारीफ पर दिग्विजय सिंह ने दी सफाई, जानें कांग्रेस की संगठनात्मक क्षमता के सवाल पर क्या कहा
सर्दी के कपड़ों पर रोएं से हैं परेशान, इन टिप्स की मदद से हमेशा नए जैसे रहेंगे आपके गर्म कपड़े
सर्दी के कपड़ों पर रोएं से हैं परेशान, इन टिप्स की मदद से हमेशा नए जैसे रहेंगे आपके गर्म कपड़े
UPSC Success Story: गरीबी नहीं बनी बाधा, मेहनत बनी पहचान; पढ़ें उमेश गणपत का दूध बेचने से IPS बनने तक का सफर
गरीबी नहीं बनी बाधा, मेहनत बनी पहचान; पढ़ें उमेश गणपत का दूध बेचने से IPS बनने तक का सफर
Embed widget