आज सिनेमा में कई शानदार अभिनेत्रियां मौजूद हैं. पिछले कुछ बरसों में भी बहुत सी बेहतर अभिनेत्रियां हिन्दी सिनेमा में आती रहीं हैं. लेकिन यदि हम आज भी इंडियन सिनेमा की तीन बेहतरीन अभिनेत्रियों को चुनते हैं तो मधुबाला, मीना कुमारी और नर्गिस के नाम सबसे ऊपर आते हैं. इसे संयोग कहें या कुछ और कि सिनेमा की ये तीनों शिखर अभिनेत्रियां मुस्लिम हैं.


हालांकि इन तीनों अभिनेत्रियों को इस दुनिया से कूच किए 40 से 50 साल हो गए हैं. फिर भी इन दिलकश अदाकाराओं को हम आज भी शिद्दत से याद करते हैं. सिर्फ इसलिए कि इनका अभिनय भुलाए नहीं भूलता.


यूं तो इन महान अभिनेत्रियों को हम हमेशा याद करते हैं. उनकी बरसों पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में आज भी जिंदगी में रंग भर देती हैं. लेकिन अब इन अभिनेत्रियों की याद इसलिए खास तौर से आई, जब हाल ही में अभिनेत्री जायरा वसीम ने इस्लाम और अल्लाह के नाम पर फिल्मों में काम नहीं करने के फैसले का एलान किया.


करीब ढाई बरस पहले अपनी पहली फिल्म ‘दंगल’ से सुर्खियों में आई जायरा का यह कहना ज़्यादातर लोगों को टीस सी देता है कि फिल्मों में काम करना ईमान में दखलंदाज़ी है. या फिल्मों में काम करने से मजहबी रिश्ते के लिए खतरा है. फिल्मों में काम करते हुए वह गुमराह हो रही थीं.


लगभग 19 साल की ज़ायरा की अभी तक सिर्फ दो फिल्में प्रदर्शित हुई हैं. ये दोनों फिल्में ज़ायरा ने आमिर खान के साथ की हैं. इसमें पहली फिल्म ‘दंगल’ दिसम्बर 2016 में रिलीज हुई थी,जिसमें जायरा पहलवान गीता फ़ोगाट के बचपन की भूमिका में थी. दूसरी फिल्म ‘सीक्रेट सुपर स्टार’ (2017) में ज़ायरा 15 वर्ष की एक ऐसी मुस्लिम लड़की इंसिया के रोल में थी जो गायिका बनने के सपने देखती है. लेकिन उसे इसके लिए अपने परिवार के साथ समाज का भी जबरदस्त विरोध झेलना पड़ता है.


अपनी इन दो फिल्मों की बदौलत इतनी कम उम्र मे जो सफलता, लोकप्रियता जायरा को मिली है उसके लिए उन्हें अल्लाह का शुक्रगुजार होना चाहिए. बड़ी बात यह भी है कि जायरा के अच्छे अभिनय के लिए उनको जहां काफी सराहा गया वहां राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्मफेयर सहित कुछ और पुरस्कार भी मिले. ज़ायरा की एक और फिल्म ‘द स्काई इज़ पिंक’ आगामी अक्तूबर में प्रदर्शित होने वाली है.


ज़ायरा पर केन्द्रित है उनकी नई फिल्म भी 
निर्माता रौनी स्क्रूवाला, सिद्धार्थ रॉय कपूर और प्रियंका चोपड़ा की ‘द स्काई इज़ पिंक’ में जायरा वसीम, आयशा चौधरी की प्रमुख भूमिका में है. जिसमें प्रियंका चोपड़ा उनकी मां और फरहान अख्तर उनके पिता बने हैं. असल में यह फिल्म ‘माय लिटल एपिफनिस’ पुस्तक की युवा लेखिका आयशा चौधरी की सच्ची कहानी पर आधारित है.


आयशा बचपन से एक गंभीर बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद कम उम्र में ही एक लेखिका और प्रेरक वक्ता के रूप में मशहूर हुईं. लेकिन दिल्ली-गुरुग्राम  की इस आयशा का उनकी पुस्तक रिलीज होने के अगले ही दिन 17 वर्ष की आयु में जनवरी 2015 में दुखद निधन हो गया.



देखा जाये तो इन तीनों फिल्मों में जायरा वसीम केंद्रीय भूमिका में हैं. इतना सब कुछ पाने के बाद भी यदि वह फिल्मों को अलविदा कहना चाहती हैं तो इसमें किसी को एतराज नहीं होना चाहिए. यह उनकी अपनी मर्जी है. यह हर किसी का अधिकार है कि वह किस क्षेत्र में काम करे या न करे. लेकिन मामला सिर्फ इसलिए अखरता है कि वसीम ने फिल्मों में काम करना अल्लाह के खिलाफ जाना बताया है. इसके लिए जायरा ने अपनी लंबी पोस्ट में अपनी ओर से इस्लाम-कुरान की व्याख्या तक कर डाली है.


तब तो मीना, मधु और नर्गिस अमर ही न होतीं
ज़ायरा फिल्मों में काम न करें किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. दो-चार  साल बाद ज़्यादातर लोग जायरा वसीम का नाम भी भूल जाएंगे. लेकिन यदि ऐसी ही सोच बरसों पहले मीना कुमारी, मधुबाला और नर्गिस सरीखी अदाकाराओं की होती तो ये अभिनेत्रियां कभी अमर नहीं होतीं.


तब मधुबाला की मुगल-ए-आजम, महल, हावड़ा ब्रिज, बरसात की रात और हाफ टिकट या मीना कुमारी की दिल अपना और प्रीत पराई, दिल एक मंदिर, साहिब बीवी और गुलाम, फूल और पत्थर और पाकीज़ा या फिर नर्गिस की मदर इंडिया, बरसात, आवारा, श्री 420 और रात और दिन जैसी फिल्मों का न जाने क्या होता !


खुदा ने इन महान नायिकाओं को जो गजब का हुनर दिया उससे सिनेमा और समाज वंचित रह जाता. भारतीय सिनेमा में इन और इन जैसी दिलकश अभिनेत्रियों का ज़िक्र नहीं होता तो फिल्म इतिहास में एक ‘बिग वेक्यूम’, एक बड़ा खालीपन महसूस होता.


बात सिर्फ मधुबाला, मीना कुमारी या नर्गिस जैसी दिग्गज अभिनेत्रियों की ही नहीं जौहरा सहगल, नूर जहां, सुरैया, वहीदा रहमान, सायरा बानो, मुमताज़, ज़ीनत अमान, शबाना आज़मी और तब्बू तक उन जैसी और बहुत सी अन्य अभिनेत्रियों की भी है जिन्होने अपने खूबसूरत अभिनय से भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया.


क्या ये सभी मुस्लिम अभिनेत्रियां इस्लाम के विरुद्ध जाकर काम कर रही थीं ! क्या ये भी गुमराह हो गयी थीं ! क्या इन्हें कुरान और इस्लाम की जानकारी नहीं रही  ! क्या इन्हें कभी नहीं लगा कि उनके अभिनय करने में अल्लाह की मंजूरी नहीं है !


मुस्लिम अभिनेताओं का भी रहा है बोलबाला
सिर्फ अभिनेत्रियां ही क्या आज के दौर के तीन सुपर स्टार आमिर खान, शाहरुख खान और सलमान खान भी मुस्लिम हैं. साथ ही हिन्दी सिनेमा के अभिनय सम्राट कहे जाने वाले दिलीप कुमार भी मुस्लिम हैं.  जिन्होंने अपने बेमिसाल अभिनय से सिनेमा को एक नया मुकाम दिया, एक नयी मंजिल दी. क्या ये सभी भी इस्लाम को नहीं जानते. फिर मुराद, फिरोज खान, संजय खान, महमूद, जॉनी वाकर, अमजद खान और सैफ अली खान और इरफान खान तक कितने ही चेहरे सिनेमा की उल्लेखनीय पहचान है. ये सब भी क्या अभी तक गलत काम करते आ रहे हैं ! ये सब भी क्या गुमराह हैं ! बस एक जायरा वसीम को ही इस्लाम का सबसे ज्यादा इल्म है !


देखा जाये तो हमारी फिल्म इंडस्ट्री में मुस्लिम कलाकारों की भरमार है और पिछले 100 बरस से अधिक से सभी बिना किसी भेदभाव के काम कर रहे हैं. मुस्लिम कलाकारों की फिल्में देखते हुए या मुस्लिम गायक गायिकाओं और गीतकारों-संगीतकारों के गीत सुनते हुए कभी ये खयाल भी मुश्किल से आया हो कि ये मुस्लिम हैं.


यदि जायरा जैसी सोच से वे मुस्लिम लड़कियां प्रभावित हो गईं, जो फिल्म क्षेत्र में अपना करियर बनाने का सपना देख रही हैं तो उन्हें अपने कदम पीछे खिसकाने पड़ेंगे. यदि देखा देखी या कुछ मजहब के ठेकेदारों के कहने और उनके फतवे से ऐसा ट्रेंड ही बन गया तो फिर तो कोई भी मुस्लिम प्रतिभा कला-सिनेमा या टीवी आदि में आ ही नहीं सकेगी.


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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)