पिछले कुछ दिनों से सूचना प्रसारण मंत्रालय के गलियारे में भीतर ही भीतर यह चर्चा थी कि इस बार का दादा साहब फाल्के पुरस्कार अमिताभ बच्चन को मिलेगा. लेकिन जब राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा हुई तो फाल्के पुरस्कार अमिताभ बच्चन नहीं, विनोद खन्ना की झोली में चला गया. इसी के साथ विनोद खन्ना एक बार फिर अमिताभ बच्चन से आगे निकल गए. देखा जाए तो अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना के बीच परस्पर प्रतियोगिता शुरू से रही है. लेकिन लोकप्रियता, बड़ी भूमिकाओं और सफलता के मामले में अमिताभ बच्चन अपने पुराने दोस्त विनोद खन्ना को हमेशा मात देते रहे हैं. अमिताभ बच्चन ने जिस तरह लगातार शिखर पर रहते हुए फिल्म संसार में अपना जो अत्यंत विशिष्ट स्थान बनाया है, वह भारतीय सिनेमा के 100 से अधिक वर्षों के इतिहास में कोई और नहीं बना पाया है.


अमिताभ बच्चन जब साल 1975 के दौर से अपनी 'शोले', 'दीवार', 'डॉन', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'शराबी' जैसी फिल्मों से लगातार आगे बढ़ते हुए नंबर वन के सिंहासन पर विराजमान हो रहे थे, तब वह राजेश खन्ना को तो पीछे छोड़ चुके थे. लेकिन विनोद खन्ना के साथ उनकी प्रतिद्वन्दिता लगातार बनी हुई थी. लेकिन विनोद खन्ना अपने अच्छे अभिनय और अमिताभ से अधिक अच्छे व्यक्तित्व और आकर्षण के बावजूद फिल्मों में अमिताभ से कभी आगे नहीं निकल पाए. परन्तु फिल्मों से अलग हटकर बात करें तो कुल दो मौके ऐसे बने जहां विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन से आगे निकल गए.जिनमें यह फाल्के पुरस्कार ऐसा दूसरा मौका है जहां अमिताभ बच्चन से पहले विनोद खन्ना को यह पुरस्कार मिल गया है.


फाल्के पुरस्कार से पहले जब विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन से आगे निकले थे, उस बात को एक बार स्वयं अमिताभ बच्चन ने मेरे साथ अपनी बातचीत में साझा किया था. बात साल 2010 की है. असल में जब अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में अपने 40 बरस पूरे किये थे, तब मैंने अमिताभ बच्चन की 40 बरस की फिल्म यात्रा पर एक कवर स्टोरी लिखी थी. जिसमें मैंने लिखा था “अमिताभ बच्चन का कोई सानी नहीं, 40 बरस के फिल्म करियर में सभी को पीछे छोड़ा. इसके कुछ दिन बाद जब मुंबई के जे डब्लू मेरियट होटल में अमिताभ बच्चन से मेरी मुलाकात हुई तो मैंने उन्हें अपनी वह कवर स्टोरी दिखाई तो वह उसे देख बोले –'आपने तो यह हैडिंग ही गलत लिखा है'. मैंने कहा नहीं यह बिलकुल ठीक है, आप सभी को तो पीछे छोड़ चुके हैं. आप एक नाम बताइए जो आपसे आगे हो? अमिताभ ने कहा- 'एक नाम तो विनोद खन्ना का ही है, वह केंद्र में मंत्री तक बन गए, लेकिन मैं नहीं बना. इसलिए वह निसंदेह मुझसे आगे निकल गए.'


हालांकि अमिताभ बच्चन ने विनोद खन्ना को लेकर मुझसे जब अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, तब यह कहते हुए उनके भाव में कोई ईर्ष्या या दुख नहीं था. बस अपने चिरपरिचित अंदाज में दूसरों को खुद से बड़ा बताते हुए, उन्होंने अपने दिल की बात मुझसे कह दी थी.


यूं अमिताभ बच्चन ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि उनके और विनोद खन्ना के बीच कभी भी कोई परस्पर प्रतियोगिता थी. यहां तक विनोद खन्ना का जब पिछले बरस अप्रैल में निधन हुआ तो अमिताभ ने दिल की गहराईयों से विनोद खन्ना के साथ अपने 48 बरसों को याद करते हुए उनकी जमकर प्रशंसा की. साथ ही उनके और उनके परिवार के सदस्यों के साथ अपने संबंधों को याद किया. इससे पूर्व बरसों में भी अमिताभ से जब जब किसी ने उनकी और विनोद खन्ना की प्रतिद्वंदिता के बाबत पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है. यह सब मीडिया की बनाई बातें हैं.


लेकिन इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता थी. यह ठीक है कि अमिताभ बच्चन ने सन 1969 में जब अपनी पहली फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ से फिल्मों में कदम रखा, उससे एक बरस पूर्व विनोद खन्ना अपनी फिल्म ‘मन का मीत’ से मशहूर हो गए थे. तब विनोद खन्ना खलनायक की भूमिका में आ रहे थे. लेकिन जब अमिताभ छोटी छोटी भूमिका पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब विनोद खन्ना अपनी 'सच्चा झूठा', 'आन मिलो सजना', 'पूरब और पश्चिम', 'मेरे अपने' और 'मेरा गाँव मेरा देश' जैसी फिल्मों से एक स्टार बन गए थे.


अमिताभ बच्चन ने खुद भी अपने ब्लॉग पर लिखा था कि उन्होंने विनोद खन्ना को सबसे पहले तब देखा था जब वह सुनील दत्त के बांद्रा ऑफिस में जा रहे थे. तब विनोद के गठीले शरीर, उनकी चाल और उनके आकर्षक व्यक्तित्व और मोहक मुस्कान से अमिताभ काफी प्रभावित हुए. इसके बाद विनोद खन्ना और अमिताभ ने सुनील दत्त की फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में साथ काम किया और दोनों ने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान जैसलमेर में काफी समय तक साथ वक्त गुजारा. ‘रेशमा और शेरा’ विनोद खन्ना के साथ अमिताभ बच्चन की पहली फ़िल्म थी.


तब विनोद खन्ना मशहूर और अमिताभ बच्चन एक अनजान से कलाकार थे. हालांकि तभी से दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई. विनोद खन्ना ने तब कभी भी अपना स्टार वाला रुतबा अमिताभ को नहीं दिखाया. यहां तक विनोद खन्ना मुंबई के ताज होटल के उस नाईट क्लब में भी अमिताभ बच्चन को साथ लेकर गए तब जहां जाने के लिए अमिताभ सोच भी नहीं सकते थे. इसके बाद विनोद खन्ना ने अमिताभ बच्चन की एक फिल्म ‘ज़मीर’ में एक छोटी भूमिका भी की. लेकिन समय ने ऐसी करवट ली कि देखते देखते अमिताभ बच्चन सुपर स्टार बन गए और विनोद खन्ना पीछे रह गए. हालांकि शुरू के कुछ बरसों में अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना ने साथ में जो भी फ़िल्में की वे खूब चलीं. मसलन 'हेरा फेरी', 'परवरिश', 'खून पसीना' और 'अमर अकबर एंथनी'. देखा जाए तो अमिताभ बच्चन की जोड़ी जिन तीन अभिनेताओं के साथ सर्वाधिक लोकप्रिय हुई उनमें शशि कपूर, विनोद खन्ना और धर्मेन्द्र ही रहे. लेकिन जहां तक प्रतिद्वंदिता की बात है वह विनोद खन्ना के साथ ही रही.


यह अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता थी या कुछ और कि जल्द ही विनोद खन्ना फिल्मों से इतने उदासीन हो गए कि वह यकायक फिल्मों से संन्यास लेकर ओशो रजनीश के अमेरिका स्थित रजनीश पुरम आश्रम चले गए. जहां उनका नाम भी विनोद खन्ना से स्वामी विनोदानंद भारती हो गया. यही वह वक्त था जब विनोद खन्ना ने इस फिल्म संसार से बेशुमार दौलत और शोहरत पाने के बाद भी मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के प्रति अपशब्द कहे. अपने संन्यास के उन दिनों में साल 1985 में फिल्म फेयर पत्रिका को दिए अपने एक इंटरव्यू में विनोद खन्ना ने कहा था - “अब मुझे मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की उस गन्दी बस्ती में कभी नहीं लौटना. वहां दो मुंहे लोग रहते हैं. मुझे मुंबई की उस मायानगरी से नफरत सी हो गई है. अमिताभ बच्चन को ही वहां राज करने दीजिए.”


अमिताभ बच्चन के प्रति विनोद खन्ना की कड़वाहट तो तब जग जाहिर हुई ही साथ ही विनोद खन्ना के इस बयान के बाद मुंबई फिल्म उद्योग भी उनसे काफी खफा हो गया था. जबकि अपने इस इंटरव्यू के कुछ समय बाद ही विनोद खन्ना फिल्मों में अपनी वापसी के लिए कमर कसकर मुंबई लौट आए थे. लेकिन उससे पहले विनोद खन्ना ने अमिताभ बच्चन के साथ की गई अपनी फिल्मों को लेकर प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई पर यह तंज भी कसा था कि 'खून पसीना', 'हेरा फेरी', 'परवरिश' और 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी फिल्मों में मेरा रोल छोटा कर दिया गया.


समय के साथ अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना का मनमुटाव चाहे कम हो गया हो लेकिन विनोद खन्ना की उपरोक्त बातें साफ़ दर्शाती थीं कि वह एक समय में अमिताभ बच्चन से काफी खफा थे. फिर यह भी कि उस समय फिल्म फेयर पुरस्कार हो या बाद में राष्ट्रीय पुरस्कार अमिताभ बच्चन सभी मामलों में विनोद खन्ना से आगे निकलते जा रहे थे. अमिताभ बच्चन जहां पदमश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण तक देश के ये तीनों बड़े सम्मान पाने में सफल रहे. वहां अमिताभ ने फिल्म फेयर के साथ अपनी 'अग्निपथ', 'ब्लैक', 'पा' और 'पीकू' जैसी फिल्मों में किये गए शानदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के चार राष्ट्रीय पुरस्कार भी पाए. देश विदेश के कुछ शैक्षिक संस्थानों ने अमिताभ बच्चन को डॉक्टरेट की मानक उपाधि से भी सम्मानित किया. लेकिन विनोद खन्ना एक बेहतरीन अभिनेता होते हुए भी इन सबसे वंचित होते गए. लेकिन अब विनोद खन्ना को भारतीय फिल्म उद्योग का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के मिलने से, विनोद खन्ना के प्रशंसक अवश्य खुश होंगे. हालांकि विनोद खन्ना को यह सम्मान उनके जीते जी मिलता तो ज्यादा अच्छा होता.


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