बच्चों की दुनिया इस कदर बदल जाएगी हम कभी सोच भी नहीं सकते थे. कोरोना के चलते कई दिनों से ऑनलाइन शिक्षा का उपयोग हम देख रहें हैं. बिहार जैसे पिछड़े राज्य के लिए भी ऑनलाइन शिक्षा विस्तार और ई-कंटेंट के विकास के लिए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पहल की जा रही है. इस बात का गहरा एहसास हम सभी को है कि समस्या कितनी विकट है. सीएम नीतीश ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कहा है कि ऑनलाइन पढ़ाई पर फोकस करना है. ऐसे में सरकार की इस खबर को देखकर आनायास ही डेजा वू जैसा एहसास हुआ. बचपन में आइजक एसिमोव की लिखी एक कहानी पढ़ी थी 'द फन दे हैड'. यह कहानी 1951 में पहली बार बच्चों के एक अखबार में छपी थी. बच्चे आज भी यह कहानी अंग्रेजी पाठ्यक्रम में पढ़ते हैं. आईजैक एसिमोव रूस में जन्मे प्रसिद्ध अमेरिकी साइंस फिक्शन लेखक थे जिन्होंने अपने जीवन में 500 से ज्यादा किताबें लिखीं.
बालावस्था में जिस वक्त मैंने यह कहानी पढ़ी थी उस वक्त कंप्यूटर का इतना उपयोग नहीं था. इन्टरनेट तो इस्तेमाल होता ही नहीं था. उस वक्त कहानी पढ़कर लेखक की कल्पना पर अचम्भा हुआ था कि कोई इतनी अजीबो गरीब बात कैसे सोच सकता है. भला ऐसा भी कभी होगा कि स्कूल जाना ही नहीं पड़े और घर बैठे एक कंप्यूटर से सारी पढ़ाई-लिखाई हो जाए?
हर बच्चे का स्कूली अनुभव अच्छा नहीं होता. अभी भी एक बड़ी संख्या उन बच्चों की ही है जो स्कूल के नाम से ही परेशान हो जाते हैं. कुछ तो उस अनाम-अंजान व्यक्ति को भी कोसते हैं जिसने स्कूल और पढ़ाई का ईजाद किया था. बहरहाल, एसिमोव की कहानी पर लौटते हैं जो भविष्य की कल्पना पर आधारित है. कहानी 17 मई 2155 में घटित हो रही है. 11 साल की मार्जी अपनी डायरी में लिखती है कि आज टॉमी को असली किताब मिली. टॉमी उसका दोस्त है जो उससे उम्र में बड़ा है और किताब उसे अपने घर के एटिक में मिली है. असली किताब मिलना और उसे देख पाना उनके लिए कुछ ऐसा ही है मानो किसी को सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हो गए हों. मार्जी ने ऐसी किताब के बारे में अपने दादा से सुन रखा था कि उनके दादा के समय में किताबें प्रिंट हुआ करतीं थीं.
मार्जी और टॉमी ये सोच कर आश्चर्यचकित हैं कि कागज़ वाली किताब पर अक्षर हिलते नहीं बल्कि टिके रहते हैं. टॉमी कहता है कि ये कागज़ की किताब बेकार है क्यूंकि पढ़ लेने के बाद इसका कोई उपयोग नहीं. उनके कंप्यूटर में तो अनगिनत किताबें हैं जिसका मुकाबला ये पुरानी किताब नहीं कर सकतीं. दोनों फिर किताब में लिखे विषय पर चर्चा करते हैं. किताब में उस समय के स्कूल का विवरण है. दोनों ये जानकर दंग रह जाते हैं कि स्कूल के लिए एक अलग बिल्डिंग होती थी जहां हाड़- मांस का इंसान शिक्षक हुआ करते थे. दोनों के बीच इस बात को लेकर बहस होती है कि कोई इंसान कैसे अच्छा शिक्षक हो सकता है क्यूंकि उसके पास कंप्यूटर वाले टीचर जितनी जानकारी हो ही नहीं सकती. लेकिन मार्जी जब यह जानती है कि सभी एक उम्र के बच्चे एक साथ क्लास में पढ़ते थे और मज़े करते थे तो वो सोच में पड़ जाती है.
मार्जी को अपना स्कूल बिलकुल पसंद नहीं जो कि उसके बेडरूम के करीब है और जहां उसे सोमवार से शुक्रवार तक नियमित घंटों के लिए अकेले पढ़ाई करनी पड़ती है और ढेर सारे होमवर्क और परीक्षाओं से भी निपटना पड़ता है. उसे किताब में लिखे उस दौर के बच्चों की किस्मत पर रश्क होता है जिनके कितने मज़े थे. कहानी पढ़कर पहले तो एसिमोव को दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने एक तरह से अपनी कहानी में भविष्यवाणी ही कर डाली. कारण कोई भी हो आज भले कोरोना हो, कल कोई और वायरस हो सकता है, साथ ही जिस तरह प्रदूषण और मानव जनित आपदाएं बढ़ रहीं है, क्या ऐसा नहीं लगता कि एसिमोव वाले स्कूल ही भविष्य में सच्चाई बन जाएंगे?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)