कुछ खिलाड़ी अपने प्रदर्शन के बलबूते इतने खास हो जाते हैं कि उनके लिए कोई भी बात अतिश्योक्ति नहीं रह जाती. रविवार को फ्रेंच ओपन के फाइनल को देखने के बाद तो भरोसा हो गया है कि क्लेकोर्ट पर रफाएल नडाल को अगर कोई हरा सकता है तो वो खुद राफेल नडाल ही हैं. डॉमिनिक थिएम क्लेकोर्ट पर राफेल नडाल को हरा चुके थे. फाइनल तक के अपने सफर में उन्होंने शानदार प्रदर्शन भी किया था. लेकिन फ्रेंच ओपन के फाइनल में नडाल जब कोर्ट पर उतरते हैं तो लगता है उनके साथ कोई ‘एक्सट्रा’ ताकत भी आती है. रविवार को फ्रेंच ओपन के फाइनल में वही ‘एक्सट्रा’ ताकत देखने को मिली. नडाल को तीसरे सेट में ‘क्रैंप’ भी आए लेकिन उन्होंने फिर भी बाजी मारी. बल्कि ये कहना चाहिए कि उन्होंने एकतरफा बाजी मारी. मुकाबला भले ही ढाई घंटे से भी ज्यादा चला लेकिन 6-4, 6-3, 6-2 की स्कोरलाइन बताती है कि नडाल के खेल में किस तरह की ‘पॉवर’ थी. नडाल सेट दर सेट बेहतर होते दिखे. नतीजा उन्होंने 11वीं बार फ्रेंच ओपन के खिताब पर कब्जा किया. ये उनके करियर का 17वां ग्रैंडस्लैम है. आपको बता दें कि सबसे ज्यादा ग्रैंडस्लैम जीतने वाले रॉजर फेडरर के नाम 20 खिताब दर्ज हैं. इस जीत के बाद नडाल ने कहा- ये सपने देखने से भी कहीं ज्यादा आगे की बात है. कोई भी खिलाड़ी 11 बार एक ही खिताब जीतने का सपना नहीं देखता. आप सभी जानते हैं कि ये खिताब मेरे लिए कितना अहम है, उम्मीद करता हूं कि आप सभी से अगले साल फिर मुलाकात होगी.

क्या अगले साल वाकई दिखेंगे राफेल नडाल

रविवार को इन दोनों दिग्गजों का घमासान देखने के लिए पूरा कोर्ट भरा हुआ था. 32 साल के राफेल नडाल का खेल देखकर समझ आता है कि वो अब भी अपने शरीर से बहुत ज्यादा काम लेते हैं. नडाल मैच के दौरान अपनी कमर, अपने हाथ और अपनी कोहनियों का जिस तरह इस्तेमाल करते हैं, उससे पता चलता है कि अगले साल उनका इस कोर्ट पर वापस लौटने का इरादा कोई कोरी बात नहीं. रिकॉर्ड बुक बताती है कि ऑस्ट्रिया के डॉमिनिक थिएम को क्लेकोर्ट पर नडाल के खिलाफ 10 में से 3 बार कामयाबी मिली है. थिएम के लिए ये पहला मौका था जब वो किसी बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचे थे. लेकिन फ्रेंच ओपन में नडाल के दबदबे का असर उनके खेल पर दिखाई दिया. दूसरे सेट में उनके पास मौका था कि वो नडाल की सर्विस ब्रेक करके मैच में वापसी करने के साथ साथ नडाल पर दबाव बना सकते थे लेकिन वो चूक गए. तीसरे सेट में नडाल हल्की तकलीफ में थे, अगर दूसरा सेट थिएम के खाते में आया होता तो शायद नडाल पर दबाव बढ़ता. लेकिन नडाल का तजुर्बा और जज्बा काम आ गया. यही जज्बा उन्होंने बचपन में भी दिखाया था.

बचपन में फुटबॉल छोड़कर टेनिस को चुना था

सांडों की लड़ाई के लिए स्पेन पूरी दुनिया में मशहूर है. इसी देश में राफेल नडाल का जन्म हुआ है. 1986 में जब वो पैदा हुए तब कोई नहीं जानता था कि अगले कुछ साल में वे अपने देश को एक अलग पहचान दिलाने वाले हैं. राफेल नडाल के ‘पेरेंट्स’ का खेल से कोई लेना देना नहीं था. हां, लेकिन एक चाचा टेनिस खिलाड़ी थे और दूसरे फुटबॉल खिलाड़ी. नडाल जब 3 साल के हुए तो उनके हाथ में टेनिस रैकेट था. 12 साल की उम्र तक आते आते उन्होंने एक रीजनल टूर्नामेंट जीत लिया था. दिलचस्प बात ये है कि उस उम्र तक नडाल फुटबॉल भी खेला करते थे. फिर वो दिन आया जब उनके सामने ये शर्त रख दी गई कि फुटबॉल या टेनिस में से किसी एक खेल को चुनें. नडाल ने टेनिस चुना. 16 साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते नडाल ने अपने फैसले को सही साबित कर दिया. उन्होंने विबंलडन के ब्वायज सिंगल्स टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में जगह बनाई. 17 का होते होते नडाल का सामना रॉजर फेडरर से हुआ. उन्होंने फेडरर को हराकर विंबलडन के तीसरे दौर में जगह बनाई. ये 2003 की बात है. उसके बाद तो नडाल को टेनिस की दुनिया में एक धमाकेदार खिलाड़ी की पहचान मिल गई और यूरोप का एक छोटा सा देश स्पेन टेनिस के खेल में आसमान की बुलंदियों को छूने लगा.