जब भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी विदेश के दौरे पर जाते हैं विपक्ष, विशेष रूप से राहुल गांधी के हमले तेज़ हो जाते हैं जिसको लेकर भाजपा और कटु हो जाती है और इस मुद्दे को देश के सम्मान से जोड़ देती है. दरअसल इस किस्म की घटनाएं सरकार और विपक्ष के बीच राजनीतिक शिष्टाचार का अभाव बताता है. ताली दोनों हाथ से बजती है.


स्मरण रहे की मोदी जी ने विपक्ष की निंदा करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है चाहे वह विदेश की धरती हो या देश में. प्रधान मंत्री की भाषा पिछले प्रधानमंत्रियों से भिन्न रही है. राजीव गांधी की हत्या के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में बताया था कि वह 1988 में इलाज के लिए अमेरिका जाना चाहते थे लेकिन साधनों के अभाव के कारण नहीं जा पा रहे थे तब राजीव गांधी के प्रधान मंत्री कार्यालय से उनको अमेरिका जाने का न्योता मिला था. स्मरण रहे की 1988 में वाजपेयी जी सांसद भी नहीं थे.


इसी प्रकार जब नरसिम्हा राव प्रधान मंत्री थे तो अटल बिहारी वाजपेयी को एक भारतीय संसदीय दल के नेता के रूप में जिनेवा भेजा गया था जहां वाजपेयी जी ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष पुरजोर ढंग से रख कर संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार सम्मलेन में भारत को एक बड़ी जीत दिलाई थी. भूपेश गुप्ता व इंदिरा गांधी कट्टर राजनीतिक विरोधी रहे थे लेकिन दोनों का एक दूसरे के प्रति अपार सम्मान था.


संसद के गलयारों में आज राहुल और अमित शाह अगर आमने सामने आ जाएं तो शायद वह नमस्ते कहे बिना या हाथ मिलाये बिना आगे बढ़ जाएंगे. लेकिन यह देश की राजनीतिक संस्कृति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. राहुल और शाह समर्थकों को अरुण जेटली व आनंद शर्मा की दोस्ती का भी संज्ञान लेना चाहिए. अभी हाल में जब तीन तलाक को लेकर राज्यसभा में सरकार व विपक्ष में तनातनी थी तब भी अरुण जेटली ने आनंद शर्मा के जन्मदिन पर केक मंगवाया और अपने चेम्बर में कटवाया.


वैचारिक मदभेद, राजनीति अपनी जगह लेकिन लोकतंत्र में मानवीय मूल्यों और शिष्टाचार से कोई टकराव नहीं है. .प्रश्न यह उठता है की रिश्तों की कड़वाहट को दूर करने में पहल कौन करे -- कुछ का मानना है की सत्ता पक्ष की ओर से शुरुआत होनी चाहिए. अच्छी बात की पहल जो करे, बड़प्पन उसका ही होगा लेकिन शर्त यह है की दोनों पक्ष कटुता कम करने के प्रति कटिबद्ध हों. नहीं तो केरल और बंगाल का राजनैतिक खूनखराबा और समाज में टूट और टकराव का माहौल देश की राजनीति, सभ्य समाज, स्वस्थ लोकतंत्र और विकास का अच्छा सूचक नहीं है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)