शोले फिल्म में एक्टर जगदीप ने 'सूरमा भोपाली' का किरदार बेहद परफेक्शन से निभाया. फिल्म शोले में जयदीप जो कि सूरमा भोपाली के किरदार में थे, फिल्म में क्रिमिनल जोड़ी जय और वीरू की कहानी सुनाता है. कैसे ये दोनों जेल से भागने से पहले उनसे भीख मांगते हैं और वापस आने के बाद माफी मांगते हैं. वे सूरमा भोपाली की बात सुनते रहे जब तक कि धर्मेंद्र अपने हिस्से के पैसे मांगे. धर्मेंद्र ने सूरमा से कहा, ''भाई हम अपने हजार रूपए लेने आए हैं.'' कुछ पल रुकने के बाद सूरमा ने कहा,''अच्छा हजार रुपए चाहिए... और झूठ बोलने के लिए मजबूर करने के लिए दर्शकों को कोसता है.''


सूरमा भोपाली का किरदार जो कि जगदीप ने निभाया था, इसका स्क्रीनप्ले और स्क्रिप्ट दोनों जावेद अख्तर ने लिखी थी. दिवंगत पत्रकार नासिर कमाल के अनुसार, जावेद अख्तर जो खुद भोपाली हैं, ने ये किरदार असल जिंदगी के सूरमा भोपाली नहर सिंह से प्रेरित होकर लिखा था. नहर सिंह सैफिया कॉलेज में जावेद अख्तर के साथी थे. ये कुछ 1960 के बीच की बात होगी..तब तक सूरमा भोपाली, भोपाल में एक जाना माना नाम हो गए थे. जावेद ने नाहर सिंह को करीब से देखा और उनके तेज दिमाग और मजेदार साथ का आनंद लिया.


नहर सिंह के बारे में बताते हुए नासिर कमाल ने बताया है, मीडियम हाइट, थोड़े सांवले, बहुत मजाकिय, बड़े दिल वाले और जिंदगी बहुत गंभीरता से न लेने वाले शख्स थे. ''वो हमेशा काले चश्मे और एक गोल्फ टोपी पहनते थे. उनके मसखरे अंदाज ने उन्हें खासा मशहूर बना दिया था. साथ ही वो अपने दोस्तों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे, जिससे वो उनके बीच बेहद खास बन गए थे. वास्तव में, दोस्तों के लिए हमेशा आगे रहने वाले उनके व्यक्तित्व ने उन्हें सूरमा भोपाली के रूप में अलग पहचान दिलवाई थी.'' हालांकि फिल्म में दिखाए गए किरदार 'सूरमा भोपाली' का असल नहर सिंह से उनके नाम के अलावा ज्यादा कुछ मिलता नहीं था.



नहर सिंह का सैफिया कॉलेज से खासा लगाव था. उस समय कॉलेज में एक बेहद स्ट्रॉन्ग हॉकी टीम हुआ करती थी जो कई टूर्नामेंट में अपना सिक्का जमा चुकी थी. सूरमा भोपाली जो कि निगम का अधिकारी होने के बाद भी अनऔपचारिक तरीके से टीम का समर्थन करने पहुंच जाते थे. यहां तक कि वे रेलवे स्टेशन जाते हुए अक्सर खिलाड़ियों को भी रास्ते से पिक कर लेते थे. नासिर कमाल ने सूरमा भोपाली को याद करते हुए बताया कि वो हमेशा खेल के मैदान में कूदने को तैयार रहते थे. '' एक बार की बात है जब उनके घुटने और कोहनी पर चोट लगी थी, खून बह रहा था. घुटनों और कोहनी के बीच उन्होंने जो किया अंपायर भी उसे नहीं देख पाए. और उन्होंने बोला- फूल खिला दिया''.


भोपाल हॉकी असोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और प्रोफेसर रफत मोहम्मद जो कि खुद भी नेशनल लेवल पर भोपाल और सैफिया कॉलेज का हॉकी में प्रतिनिधित्व कर चुके थे, ने नहर सिंह की कई क्वालिटीज के बारे में बताया जिनमें उनका अध्यात्मिक व्यवहार भी शामिल था. उन्होंने बताया कि वो जब भी गणेश बीड़ी का रैपर देखता (उस पर छपी गणेश भगवान की तस्वीर के साथ) तो उसे उठा लेता और अपनी जेब में रख लेता, बाद में उसे सम्मानपूर्व तरीके से नष्ट करता.


सूरमा भोपाली एक सच्चा हिंदू और सच्चा सेकुलर भी था. एक बार सैफिया कॉलेज ग्वालियर में सिंधिया गोल्ड कप खेल रहे थे. उस समय ओलंपियन इनमान-उर-रहमान अपने करियर की ऊंचाइंयों पर थे औऱ उन्हें रोक पाना असंभव था. सैफिया कॉलेज लोकल टीम के साथ खेल रहा था. रफत मोहम्मद खान वहीं मौजूद थे और तभी भीड़ में से किसी ने चिल्ला कर कहा 'पाकिस्तानी है मारो'.. बदनाम नाहर सिंह स्टैंड के सामने था, चिल्लाया, "आप एक महासभा (हिंदू महासभा के हैं)! मेरे भोपाल में कोई भी मुसलमान इस तरह से एक हिंदू खिलाड़ी के साथ इस तरह का व्यवहार करने की हिम्मत नहीं कर सकता है! चलो चलो! मैं तुम्हें ले जा सकता हूं! मैं सोरमा भोपाली हूं! ".


नासिर कमाल ने शोले के रिलीज के समय याद करते हुए कहा, नहर सिंह जावेद अख्तर से खासा नाराज थे और कोर्ट का रुख तक कर लिया था. उन्होंने जावेद पर उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया था. बाद में दोस्तों ने मिलकर इस केस को कर्ट के बाहर ही खत्म करवा दिया था. असली सूरमा भोपाली का निधन साल 1979 में हो गया था. वो अपने एक साथी को अपने स्कूटर पर छोड़ कर आ रहे थे, वापस लौटते हुए एक ट्रक से एक्सीडेंट हो गया. सूरमा भोपाली के मौत के बाद भी जगदीप के किरदान ने उन्हें जिंदा रखा.


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