75वें जन्म दिन पर खास.. तब अमिताभ अपना स्कूटर तक नहीं खरीद पाए
अमिताभ बच्चन 75 साल के हो गए. जब सन् 1969 में उनकी पहली फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ आई तब उनकी उम्र सिर्फ 27 साल की थी. यानी उन्हें फिल्मों में काम करते हुए अब 48 साल हो गए हैं. मेरी अमिताभ बच्चन से पहली मुलाकात सन् 1977 में दिल्ली में हुई थी. तब वह 35 बरस के थे और उन्हें फिल्मों में आये सिर्फ 8 साल हुए थे. लेकिन तब तक वह अपनी ज़ंजीर, अभिमान, मिली, दीवार, शोले, चुपके चुपके, कभी कभी, हेरा फेरी और दो अंजाने जैसी फिल्मों की अपार सफलता के कारण एक सुपर स्टार बन चुके थे.
मैं उन दिनों अपनी किशोरावस्था में था, मैंने दो तीन बरस पहले ही थोड़ी बहुत पत्रकारिता शुरू की थी. लेकिन मेरी अमिताभ बच्चन से वह पहली मुलाकात एक नए, उभरते पत्रकार के नाते नहीं उनके पिताश्री और हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि और लेखक माननीय डॉ हरिवंश राय बच्चन के कारण हुई थी. बच्चन जी उन दिनों दिल्ली में अपने सरकारी आवास 13 विल्लिंगडन क्रिसेंट में रहते थे. मैं बच्चन जी से करीब डेढ़ -दो बरस पहले ही पत्रों के माध्यम से संपर्क में आया था. लेकिन जल्द ही मेरे उनसे अच्छे संबंध हो गए थे और उनसे कुछ सीखने और मार्गदर्शन की लालसा के कारण मैं उनके घर जाने लगा था.
बच्चन जी जानते थे कि अमिताभ बच्चन और उनकी फिल्में मुझे बहुत पसंद हैं. तो एक बार जब अमिताभ अपनी मां जी और बाबूजी के पास दिल्ली आकर कुछ दिनों के लिए रुके तो बच्चन जी ने मुझे भी एक दिन घर आने का निमंत्रण दे दिया. यूं अमिताभ उन दिनों इतने व्यस्त थे कि उनके लिए एक दिन भी छुट्टी मनाना मुश्किल था. लेकिन दिल्ली आकर तब वह महीना भर रुके थे,जिसका कारण यह था कि अमिताभ बच्चन तब पीलिया रोग से ग्रस्त हो गए थे. ऐसे में डॉक्टर्स ने उन्हें पूरी तरह आराम और परहेज की सलाह दी थी. मुंबई में इतने बड़े फिल्म स्टार के लिए आराम संभव नहीं था. फिर इधर बाबूजी के साथ उनकी मां जी तेजी बच्चन भी उनके स्वास्थ्य को लेकर काफी चिंतित थीं इसलिए उन्होंने अपने पुत्र अमिताभ को दिल्ली ही बुला लिया था.
हालांकि बच्चन जी ने मुझे पहले यह नहीं बताया कि अमिताभ दिल्ली आये हैं तुम मिलने आ जाओ. असल में वह मुझे सरप्राइज देना चाहते थे कि मैं जब अचानक अपने पसंदीदा फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन से मिलूंगा तो मेरी खुशी कुछ अलग ही होगी.
यह बात सन् 1977 के नवम्बर के मध्य की रही होगी. मैं शाम को करीब 7 बजे उनके घर विल्लिंगडन क्रिसेंट पहुंच गया. बच्चन जी मुझे ड्राइंग रूम में बैठाकर किसी काम से दो मिनट के लिए घर में अन्दर गए ही थे कि तभी ड्राइंग रूम में बाहर के मुख्य दरवाजे से किसी लम्बे व्यक्ति का प्रवेश हुआ तो मैं उन्हें देख चौक गया वह अमिताभ बच्चन थे. मैं कुछ घबराता-शर्माता धीरे से सोफे से उठा और मैं कुछ घबराते हुए उनके अभिवादन में मुश्किल से हल्का सा अपना सिर ही हिला सका. उधर अमिताभ ने भी जब अपने घर किसी अनजान व्यक्ति को बैठे देखा तो उनके घर में प्रवेश करते बढ़ते कदम अचानक ठिठक गए. दिलचस्प बात यह है कि अमिताभ भी उन दिनों तक भी कुछ संकोची और शर्मीले से व्यक्ति थे. इसलिए जैसे मैं शरमा रहा था कुछ ऐसे ही शरमाते अंदाज़ में वह भी धीरे धीरे मेरी तरफ देखते हुए कुछ मुस्कुराते हुए और हल्का सा सर हिलाते हुए, फिर अगले ही क्षण झट से अन्दर चले गए. यानी उनके घर में उनसे हुई पहली मुलाकात के पहले क्षण में न वह मुझसे कुछ बोल पाए और न मैं उनसे कुछ बोल पाया.
असल में सब कुछ इतनी जल्दी घटा कि मैं हक्का बक्का रह गया. मुझे इस बात की कतई कल्पना नहीं थी कि आज अचानक अमिताभ मिल जायेंगे. अभी मैं कुछ और सोचता कि तभी बच्चन जी अमिताभ बच्चन को फिर से ड्राइंग रूम में लेकर आये... और हँसते हुए बोले कि अरे आप तो अमित से पहले ही मिल लिए. मैं आपको अचानक अमित से मिलवाकर सरप्राइज देना चाहता था. उसके बाद बच्चन जी ने मेरा अमित जी से परिचय कराया. अमिताभ बच्चन जैसे सुपर स्टार से जब पहली बार हाथ मिलाया तो मैं सिर से पैर तक रोमांचित हो उठा था.
हालांकि इतने बरसों में एक से एक पुराने और एक से एक नए कलाकार से मिलने और उनको इंटरव्यू करने, उनके साथ बैठ खाने-पीने के हजारों मौके मिलते रहे हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन जैसी वह रोमांचित अनुभूति शायद फिर कभी नहीं हुई. इधर अमिताभ बच्चन से भी उसके बाद से अब तक अनेक मुलाकात होती रही है. दूसरी मुलाकात तो इस पहली मुलाकात के कुछ दिन बाद ही 27 नवम्बर 1977 को फिर से दिल्ली में उनके घर तब हुई जब माननीय बच्चन जी का 70 वां जन्म दिन था.
यह निश्चय ही बेहद प्रसन्नता की बात है कि उनके पिता के 70 वें जन्म दिन पर भी मैं शामिल हुआ था और आज उनके पुत्र अमिताभ बच्चन का 75 वां जन्म दिन है और मैं आज बच्चन जी को भी याद कर रहा हूं और अमिताभ बच्चन को भी. यू इतने बरसों में बहुत कुछ बदल गया है. मुलाकात अमिताभ बच्चन से अब भी होती हैं, अभी कुछ दिन पहले मुंबई में ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की लॉन्चिंग प्रेस कांफ्रेंस में भी उनसे आमने-सामने बातचीत हुई. लेकिन अब मुलाकात आत्मीयता वाली नहीं सिर्फ औपचारिकता वाली होती है. लेकिन मैं 75 की उम्र में भी अमिताभ बच्चन में युवाओं सा जोश और उनकी शिखर छूती लोकप्रियता देखता हूं तो बहुत खुश होता हूं,गद गद हो जाता हूं.
उनके लिए दिल की गहराइयों से ढेरों दुआएं निकलती हैं. उन्हें आज कोई बिग बी कहता है, कोई शहंशाह, कोई महानायक तो कोई कुछ तो कोई कुछ. लेकिन सच्चाई तो यह है कि आज वह जिस मुकाम पर हैं उसके लिए सभी शब्द छोटे हैं. आज भी एक से दस तक सिर्फ अमिताभ बच्चन हैं. बाकी सभी की गिनती 10 के बाद शुरू होती है. अच्छी बात यह है कि वह अपनी अत्यंत व्यस्तताओं के चलते चाहे बहुतो से दूर हो गए हों, लेकिन उनमें अहंकार कभी नहीं रहा. आज उनके पास इतना कुछ है कि वह सब संभालना भी उनके लिए मुश्किल है. लेकिन यह सब पाने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया है. उनके इस जन्म दिन पर मुझे उनकी बहुत सी बाते याद आती हैं.
उनकी मां जी और बाबूजी तो मुझे उनकी बहुत सी पुरानी बातें बताया करते थे. फिर उनकी बहुत सी बातें तो मैंने स्वयं अपनी आंखों से भी देखी हैं. एक बात 27 अक्टूबर 1984 की सुबह सुबह की है. मैं दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर अपने किसी मित्र को लेने गया हुआ था. तभी मैंने देखा कि वहां अमिताभ बच्चन कहीं से दिल्ली पहुंचे हैं. उनके साथ जया बच्चन भी थीं. मुझे पता था कि अमिताभ तब अपनी मायसथेनिया ग्रेविस बीमारी के इलाज़ के लिए अमेरिका गए हुए थे. खबर थी कि वो 6 नवंबर को लौटेंगे, लेकिन उन्हें 10 दिन पहले लौटता देख में कुछ सोच ही रहा था कि तभी मैंने कुछ दूर से ही देखा कि अमिताभ को वहां देख कुछ लोगों ने घेर लिया. एक आदमी ने उनसे ऑटोग्राफ मांगा तो अमिताभ ने पैन निकालने के लिए अपनी जेब टटोली तो उन्हें पैन नहीं मिला. यह देख ऑटोग्राफ मांगने वाले व्यक्ति ने झट से अपनी जेब से पैन निकाला और अमिताभ को दे दिया.
अमिताभ ने उस व्यक्ति को जैसे ही ऑटोग्राफ दिया वह ख़ुशी से उछलता हुआ आगे बढ़ गया. तभी कुछ और लोग अमिताभ से ऑटोग्राफ लेने लगे. जब वे सभी लोग चले गए तो अमिताभ ने देखा कि उनके हाथ में यह पैन किसका रह गया. तभी जया जी ने बताया कि यह उस व्यक्ति का पैन है जिसने सबसे पहले ऑटोग्राफ लिया था. अमिताभ जी ने उस व्यक्ति को खोजने के लिए निगाहें इधर उधर घुमाईं तो देखा वह व्यक्ति कुछ दूर जा चुका था. सुबह सुबह का समय था तब एयरपोर्ट पर ज्यादा लोग नहीं थे. अमिताभ ने उस दूर जाते व्यक्ति को आवाज़ लगायी भाईसाहब आपका पैन. लेकिन उसने नहीं सुना तो अमिताभ दौड़ते हुए उस व्यक्ति की तरफ लपके और बोले भाईसाहब आपका पैन, आपका पैन. उस व्यक्ति ने पीछे मुड़कर देखा तो वह हक्का बका रह गया कि सुपर स्टार अमिताभ बच्चन उसका पैन लौटाने के लिए उसकी ओर भागते हुए आ रहे हैं. वह यह सब देख ख़ुशी से पागल सा हो गया, उसकी आंखों में आंसू आ गए. अपने आंसू पोंछते हुए उसने अमिताभ के पैर छू लिए.
आज उनके जन्म दिन पर मुझे एक बात याद आ रही है जो मुझे तेजी बच्चन जी ने बताई थी कि मुन्ना (तेजी जी अपने बेटे को मुन्ना कहकर ही ज्यादा बुलाती थीं) का जब 18वां जन्म दिन आया था तो उसकी बर्थडे पार्टी में हमने उसके 9 बॉयफ्रेंड और 9 गर्लफ्रेंड को बुलाया था. साथ ही उन्होंने अमिताभ को लेकर लड़कियों से जुड़ी एक बात और बताई थी कि अमिताभ बच्चन जब दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ रहे थे तो एक दिन उनकी एक परिचित लड़की ने उन्हें आकर बताया कि आंटी अमित इन दिनों पढाई में कम और लड़कियों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है. वह आजकल लड़कियों के कॉलेज मिरांडा हाउस के सामने खड़ा रहता है. उस लड़की को उम्मीद थी कि यह सुन तेजी जी गुस्सा हो जायेंगी और अमिताभ के आने पर उसे भी फटकार लगाएंगी. लेकिन उस लड़की की बात सुन तेजी जी उससे बोलीं-“अरे वाह तेरे मुंह में घी शक्कर. इसका मतलब अमिताभ बिल्कुल नॉर्मल है, तभी वह लड़कियों में दिलचस्पी ले रहा है. वर्ना मुझे उसका शर्मीला स्वभाव देख किसी डॉक्टर से सलाह लेनी पड़ती.”
अमिताभ बच्चन की बातों और यादों का यह सिलसिला यूं तो बहुत लम्बा चल सकता है, लेकिन उनकी एक और ख़ास बात मैं जरुर बताना चाहूंगा जो लोगों के लिए प्रेरणा बन सकती है. अमिताभ बच्चन ने जब शेरवुड स्कूल नैनीताल से लौटकर कॉलेज में दाखिला लिया तो कॉलेज जाते हुए वह डीटीसी ( उस समय डीटीयू ) की बसों की भीड़ से परेशान हो गए. यह देख उन्होंने अपने बाबूजी और मां जी से कहा कि बसों में बहुत भीड़ रहती है, मुझे एक स्कूटर ले दीजिये. अमिताभ की इस बात पर उन्हें अपने बाबूजी और मां जी से जो जवाब मिला वह यह था- “स्कूटर क्या कार खरीदना, लेकिन तब जब खुद कमाना शुरू कर दो. अभी तो जैसे और बच्चे बसों में कॉलेज जाते हैं, वैसे तुम भी जाओ.” अमिताभ तब अपना मन मसोस कर रह गए. लेकिन आज वही अमिताभ बच्चन हैं, जिनके पास इतनी कारें हैं कि उनके अपने घरों में उनको पार्किंग की जगह नहीं मिलतीं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)