राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव का 73वां जन्मदिन पार्टी कार्यकर्ताओं ने धूमधाम से मनाया. वे चारा घोटाले में सज़ायाफ्ता हैं और फिलहाल जेल में हैं. फिर भी उनके जन्मदिन पर धूम रही. उनकी पार्टी ने इस दिन को ‘गरीब सम्मान दिवस’ के रूप में मनाया और जनता के बीच इस बात को पहुंचाने की कोशिश की कि किस प्रकार लालू ग़रीबों के मसीहा हैं. सोशल मीडिया पर उनके कई समर्थकों ने उन्हें भगवान और मसीहा बताया और कहा कि वे गरीबों और मजलूमों की आवाज और साम्प्रदायिकता के दुश्मन हैं.
उनके विरोधियों ने उनके राज में हुए जातीय नरसंहार और अपराध को याद किया. बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री रहीं लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी ने उनकी तुलना भगवान कृष्ण से की. भले ही लालू पर मामले गंभीर हों, जिनकी वे सजा भुगत रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी जनता में यह संदेश देती रही है कि लालू चूंकि गरीब के बेटे हैं, इसलिए उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है.
यह बात सच है कि लालू की लोकप्रियता गज़ब की है. लोग उनका ठेठ-गंवई अंदाज़ और मज़ेदार बतकही भूल नहीं पाते. यही कारण है कि लालू चर्चा में बने रहते हैं. तमाम लोगों के द्वारा उनको आखिरी आदमी को आवाज़ देने के लिए भी श्रेय दिया जाता है. हालांकि भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों और परिवारवाद ने उनकी छवि धूमिल कर दी.
लालू की वो पांच बातें, जिन्होंने उन्हें ‘मसीहा’ बनाया:-
1. लालू यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बावजूद अपनी पुरानी पहचान को बनाए रखा. देसी अंदाज़ और गंवई बोल से अपने लोगों को अपने से जोड़ कर रखा. वो किसी भी गंभीर बात को आसान शब्दों में समझाने की कला में माहिर हैं.
2. लालू यादव न सिर्फ मज़ाकिया हैं, बल्कि हाज़िर-जवाब भी. अपने विरोधियों को पस्त करना और फिर अपने साथ लाने का हर हुनर जानते हैं. अगर कोई नेता साथ छोड़ गया तो उसके बारे में कहते थे कि व्याकुल भारत था चला गया, लेकिन अगर वापस आए तो कहते थे घर की बहु वापस आ गई.
3. लालू यादव किसी फटेहाल गरीब या गरीब के बच्चों को अपने करीब लाने या फिर उनके साथ मिलने-जुलने से कभी घबराते नहीं थे. अपने भाषण के दौरान भीड़ में से किसी अनजान को बुलाकर मंच से भाषण करवा देते थे.
4. लालू यादव अपने पॉकेट में भले ही एक पैसा ना रखते हों, लेकिन ज़रूरत पड़ती थी तो साथ बैठे किसी नेता या अधिकारी से गरीब को पैसा दिलवा देते थे. साथ में रहने वाले अधिकारी भी जानते थे कि उनको ढेर सारा कैश रखना है. एक गरीब की सार्वजनिक मदद उनकी छवि को दाता के रूप में प्रचारित करती थी.
5. लालू चाहे कितनी भी परेशानी में रहे हों. जेल गए या फिर मुकदमा झेला, मगर अपना हंसमुख और चुटीला अंदाज़ कभी नहीं छोड़ा. लालू के चेहरे से मुस्कुराहट कभी गायब नहीं हुई.
अब बात करते हैं लालू यादव के विरोधी बिहार के सीएम नीतीश कुमार की. बुधवार को जेडीयू की वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के दौरान उनकी पार्टी के सांसद राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह ने कहा कि नीतीश युगपुरुष हैं, क्योंकि बिहार में उन्होंने समाज के उत्थान के लिए बड़े काम किए हैं. उन्होंने कहा कि नालंदा के इतिहास में नीतीश कुमार का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.
इससे पहले भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने नीतीश की तुलना गांधी, मदन मोहन मालवीय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और राम मोहन रॉय सरीखे महान शख्सियतों से की थी. उन्होंने कहा था कि जिस तरह शराबबंदी के अलावा दहेज-प्रथा और बाल-विवाह रोकने के लिए नीतीश कुमार ने काम किया, वो उन्हें युगपुरुष की श्रेणी में खड़ा करता है. नीतीश ने गांधी का संदेश घर-घर पहुंचाने और कथावाचन की परंपरा भी शुरू की थी.
महिलाओं और बालिका शिक्षा के लिए काम करने के लिए भी नीतीश को याद किया जाएगा. देश में पहली बार महिलाओं को सरकारी नौकरी और पंचायत में आरक्षण जैसे कई काम नीतीश कुमार ने किए. कभी जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा था कि देश को नीतीश जैसे कई मुख्यमंत्री चाहिए. हालांकि बाद में नीतीश कुमार के राजनीतिक उथल-पुथल वाले फैसलों ने गुहा का नीतीश से मोहभंग कर दिया.
नीतीश की वो बातें, जिससे उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई:-
1. नीतीश कुमार गंभीर स्वभाव के हैं. काम करने की शैली बिल्कुल अलग है. तमाम अधिकारी और पार्टी के नेता मानते हैं कि नीतीश टफ टास्क-मास्टर हैं.
2. नीतीश कुमार जब सीएम बने तो करीब 6 महीने बाद कार्यकर्ताओं का एक हुजूम उनके पास बीडीओ, पुलिस अधिकारी समेत तमाम जिला अधिकारियों की शिकायत लेकर पहुंचा. उन्होंने कहा कि अधिकारी हमारी नहीं सुनते हैं, बताइए लालू यादव के राज में आरजेडी कार्यकर्ताओं की कितनी चलती थी. हमारी कोई नहीं सुनता है इस पर नीतीश कुमार ने कहा कि क्या आप वही लालू राज चाहते हैं. आप लोगों ने हमें चुना है, हम पर भरोसा किया है. उन्हें भी काम करने दीजिए. हमें चुना है, तो हम पर भरोसा कीजिए. नीतीश कुमार राजनीति और सरकार दोनों को अलग-अलग हिस्सा मानते हैं. इसलिए अपने शासन में पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं का दखल सरकार में कभी नहीं होने दिया.
3. नीतीश कुमार अपनी छवि के प्रति काफी संवेदनशील रहे हैं यही वजह है कि उन पर अब तक भ्रष्टाचार या दूसरे गंभीर आरोप नहीं लगे हैं.
4. शराबबंदी और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के ख़िलाफ़ मुश्किलें और नफा नुकसान जानने के बावजूद अड़े रहना उनकी पहचान में शामिल हो गया है.
बिहार की राजनीति के ये दो बड़े नाम एक-दूसरे के विरोध के लिए जाने जाते हैं. साथ आए भी तो साथ रह नहीं पाए. भविष्य की चर्चाओं में भी इनकी छवि एक-दूसरे के साथ मुकाबले में रहेगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)