दिवाली पर प्रदूषण कम करने का एक प्रयास आजमाने के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में 31 अक्तूबर तक पटाखे चलाने पर रोक क्या लगाई, एक महाविस्फोट जैसा हो गया! वीरेंदर सहवाग जैसे आतिशी क्रिकेटर, चेतन भगत जैसे लोकप्रिय लेखक और तथागत रॉय जैसे विद्वान राज्यपाल अपने-अपने जामे से बाहर हो गए. सोशल मीडिया पर तो हिंदू धर्म ही संकट में पड़ गया! चेतन का ट्वीट था- ‘पटाखों के बिना बच्चों के लिए दिवाली कैसी? हिंदुओं के त्योहारों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? क्या बकरीद पर बकरे काटने और मुहर्रम पर खून बहाने के खिलाफ कदम उठाए जा रहे हैं?’ त्रिपुरा के राज्यपाल श्री रॉय तो कई कदम आगे निकल गए! उन्होंने फरमाया- ‘कभी दही हांडी, आज पटाखा, कल को हो सकता है प्रदूषण का हवाला देकर मोमबत्ती और अवार्ड वापसी गैंग हिंदुओं की चिता जलाने पर भी याचिका डाल दे!’


उपर्युक्त अतिवादी और असंगत प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि लोगों को हिंदू-मुस्लिम खो-खो खेलने में ज्यादा मजा आता है, उनकी नज़र में इंसानी जान की कोई कीमत नहीं. उन्हें यह नजर नहीं आता कि पिछले साल ही दिवाली के बाद दिल्ली में स्कूल बंद रखने पड़े थे और प्रदूषण के चलते 10 लाख से ज्यादा लोग हर साल मौत के मुंह में समा जाते हैं. मुझे तो यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की वह पहल कहीं ज्यादा पर्यावरण-अनुकूल और प्रेरक जान पड़ती है जिसके तहत उन्होंने दिवाली पर 1 लाख 70 हजार मिट्टी के दीयों से अयोध्या में सरयू तट को रोशन कर विश्व रिकॉर्ड बना देने की ठानी है. इसका सकारात्मक साइड इफेक्ट देखिए कि 2 लाख दीये बनाने का ऑर्डर श्री विनोद प्रजापति को मिला जिसे उन्होंने सैकड़ों कुम्हारों में बांटकर उनकी भी दिवाली जगमग कर दी.


लेकिन भारतवंसियों को लगता है कि त्रेतायुग में लंकाविजय के बाद अयोध्या में प्रवेश करते समय नगरवासियों ने भगवान श्रीराम का स्वागत जैसे सुतली बम फोड़कर ही किया था. इसलिए अगर कलियुग में उन्होंने दिवाली पर परमाणु और हाइड्रोजन बम जैसे पटाखे नहीं फोड़े तो उनका जीवन व्यर्थ हो जाएगा. इस मानसिकता में मासूम, असहाय और मूक पशु-पक्षियों की दुर्दशा पर भला किसका ध्यान जाएगा? क्या हम यह कल्पना भी कर सकते हैं कि जिस तरह की परेशानी इस पटाखेबाजी के चलते मनुष्यों को होती है उससे कहीं अधिक कष्ट पशु-पक्षियों को हो सकता है. वे भी पटाखों और रॉकेटों की जद में आकर मरते हैं, जख़्मी होते हैं. लेकिन हम तो यह सोचकर धन्य हो लेते हैं कि मेरे पटाखे की आवाज पड़ोसी के पटाखे से अधिक धमाकेदार रही!


पटाखों के धमाके सुनकर कुत्ता, बिल्ली, गाय, बैल और बकरी जैसे पालतू जानवरों में भगदड़ मच जाती है. पक्षी घबराहट में अपने-अपने ठिकाने छोड़कर सुरक्षित और शांत जगहों की तलाश में उड़ जाते हैं. अक्सर यह देखा गया है कि पशु-पक्षियों में पटाखों के धुएं का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. वे सांस लेने में अड़चन महसूस करते हैं, भय के कारण जहां जगह मिली वहीं दुबक जाते हैं, कई बार खुद पर से नियंत्रण खो देते हैं और पटाखों की लड़ी पर ही जा बैठते हैं, कई दिनों के लिए खाना-पीना छोड़ देते हैं और पालतू व्यवहार छोड़कर चिड़चिड़े भी हो जाते हैं. इनमें से कई छोटे पक्षी तो तेज आवाज न सह पाने के कारण हृदयाघात से जान गंवा देते हैं. यह भी देखने में आता है कि पटाखों की आवाज और धुएं से घबरा कर बाहर घूमने वाले कुत्ते-बिल्लियां, गाय-बैल और दूसरे पशु बिदक कर दीवार से जा टकराते हैं, गड्ढों में जा गिरते हैं, गाड़ियों के नीचे आ जाते हैं, खम्भों से टकरा जाते हैं.


आंकड़े बताते हैं कि दिवाली के आस-पास पशुओं की मौतों में 10% का इजाफा हो जाता है. आप भी ध्यान देंगे तो पाएंगे कि लगातार पटाखे फोड़े जाने से आपकी बिल्डिंग के आस-पास घूमते रहने वाले कई कुत्ते-बिल्लियां और पक्षी कुछ समय के लिए गायब हो गए हैं, घरों में पल रहे कुत्ता-बिल्ली उतने स्वच्छंद नहीं दिख रहे, पिंजरे के तोता-मैना खामोशी अख्तियार किए हुए हैं या अधिक ही कर्कश हो उठे हैं. ध्वनि सुनने के मामले में पशु-पक्षी मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील होते हैं इसलिए उनको तेज आवाज से अधिक तकलीफ होती है. ऐसे में उनकी दिनचर्या बदल जाती है और खाने-पीने का समय भी बदल जाता है और इसका नतीजा यह होता है कि वे गंभीर रूप से बीमार पड़ जाते हैं.


मुंबई के तबेले वालों का अनुभव यह रहा है कि पटाखों की आवाज से घबराकर गाय-भैंसें अपने थन खींच लेती हैं जिससे दीवाली के समय दूध का उत्पादन घट जाता है. कई बार तो वे दुहने भी नहीं देतीं. पटाखों के धुएं से इन पशुओं की श्वांसनलिका में संक्रमण का खतरा भी उत्पन्न हो जाता है. संकट यह भी है कि ध्वनि एवं वायु प्रदूषण से पक्षियों को होने वाले नुकसान की नापजोख करने का भारत में कोई तंत्र ही मौजूद नहीं है इसलिए ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता कि दिवाली के समय या बाद में इसका पक्षियों पर कितना दुष्परिणाम होता है. लेकिन यह तय है कि कबूतर, गौरैया, कौवा, गलगल और तोता जैसे पक्षी बड़ी संख्या में दिवाली के समय स्थलांतर करते हैं और यही वह समय होता है जब रॉकेटों से टकराकर उनके घायल होने की आशंका अधिक होती है.


सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अगर हिंदू धर्म की अवमानना की शक्ल में देखा जाएगा तो यह खुद के पैरों में कुल्हाड़ी मारने से कम घातक नहीं होगा. वैसे भी माननीय न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई है, चलाने पर नहीं. इस छूट का लाभ उठाते हुए दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, पलवल, सोनीपत, फरीदाबाद, भरतपुर और अलवर के कई निवासियों ने मथुरा, आगरा, अलीगढ़, मेरठ यहां तक कि जयपुर तक से पटाखे मंगवा रखे हैं! मगर ध्यान रहे कि ऐसी जगहों पर पटाखे और रॉकेट न चलाएं जहां पशु-पक्षियों का बसेरा हो. घर में कुत्ता-बिल्ली पाल रखे हों तो शोर होते वक्त दरवाजे-खिड़कियां बंद रखें, खाना-पीना छोड़ने की स्थिति में उन्हें पशु-चिकित्सक को दिखाएं, उनके खाने-पीने का समय बदल कर देखें और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि घर के अंदर बच्चों को पटाखे बिल्कुल न चलाने दें.


गौर कीजिए कि बिना पटाखे चलाए ही धनतेरस से पहले दिल्ली का प्रदूषण स्तर ख़तरनाक ऊंचाई पर जा पहुंचा था. पटाखे चलाने पर तो ध्वनि और वायु प्रदूषण के चलते मनुष्यों के साथ-साथ बेजुबान पशु-पक्षियों की जान पर बन आएगी. पशु-पक्षी हिंदू-मुस्लिम तथा मतदाता भी नहीं होते! इसलिए दीवाली की खुशियां जमकर मनाएं लेकिन दूसरों की परवाह करते हुए शांतिपूर्ण और सुरक्षित ढंग से. शुभ दीपावली!


लेखक से ट्विटर पर जुड़ने के लिए क्लिक करें-  https://twitter.com/VijayshankarC


और फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें-  https://www.facebook.com/vijayshankar70/


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)