सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की है. किसानों और सरकार के बीच के गतिरोध को तोड़ने की कोशिश की है. पुल बनने की कोशिश की है. वैसे देखा जाए तो किसानों को निराशा ही हुई होगी क्योंकि वो तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे थे लेकिन कोर्ट ने इस दिशा में विचार तक नहीं किया.कोर्ट ने कमेटी का गठन किया है. कमेटी की रिपोर्ट आने तक तीनों कानूनों पर अमल पर रोक लगा दी है. किसान इसे आधा अधूरा इंसाफ बता रहे हैं लेकिन सरकार को झुकना पड़ा है. सरकार से पहले सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि वो कानूनों के अमल पर रोक लगाएगी या ये काम कोर्ट करे. सरकार को फैसले के बाद जरुर पछतावा हो रहा होगा.


कानूनों के अमल पर रोक सरकार खुद लगाती तो किसानों का दिल जीत लेती, देश भर में किसानों में उसकी वाहवाही ही होती. लेकिन लगता है कि सरकार चूक गयी. लेकिन सरकार की बड़ी जीत इस रुप में है कि कोर्ट ने तीनों कानूनों के अमल पर रोक लगाई है. तीनों कानूनों पर स्टे नहीं दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि रोक अनिश्चितकाल के लिए नहीं लगाई गई है. यानि अदालत भी चाहती है कि कमेटी के चार सदस्य जल्द से जल्द मिले और जितनी जल्दी संभव हो सके अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपे.


अदालत किसानों के आंदोलन को गंभीरता से ले रही है
जाहिर है कि अदालत किसानों के आंदोलन को गंभीरता से ले रही है. अदालत को किसानों के मरने पर दुख है. किसान परिवार के बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चें भी आंदोलन का हिस्सा बन रहे थे इसपर भी अदालत को एतराज इस रुप में था कि कड़ाके की सर्दी में कष्ट उठा रहे हैं. सरकार के लिए सबसे बड़ी राहत की बात है कि तीनों कानूनों को रदद करने की मांग को अदालत ने सिरे से नजरअंदाज कर दिया है. सरकार चाहती भी यही थी.


कमेटी के गठन तक ही कानूनों के अमल पर रोक लगाई गयी है. वैसे भी तीनों कानूनों से जुड़े नियम कायदे से अभी बने नहीं है. सरकार किसानों के बहुत से संशोधनों को स्वीकार कर चुकी थी. लिहाजा कानून संशोधन के बाद ही अमल में लाए जाने थे. इस काम में देरी लगनी ही थी क्योंकि कानून फिर से संशोधन प्रस्तावों के साथ संसद के दोनों सदनों में रखे जाते, वहां बहस होती, वहां से पारित होते और उसके बाद ही संशोधित कानून लागू होते.


साथ ही अमल भी लागू होता. अब यही काम सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया है. इससे सरकार को राहत ही मिली होगी. चाहे तो सरकार कह सकती है कि किसानों के भारी विरोध के बावजूद वो झुकी नहीं. यानि सरकार आर्थिक सुधारों को लेकर गंभीर है और यू टर्न लेना उसकी फितरत में नहीं है. सरकार ने संदेश साफ कर दिया है कि आगे भी उसका रुख सुधारों को लेकर ऐसा ही रहने वाला है. अभी कीटनाशकों से जुड़ा बिल आना बाकी है. बीच से जुड़ा बिल आना बाकी है. यानि किसानों के साथ लंबी लड़ाई बाकी है और सरकार पहले ही राउंड में खुद को कमजोर साबित नहीं करना चाहती थी.


किसानों के एक धड़े का कहना है कि इंसाफ अधूरा है
अब किसानों के एक धड़े का कहना है कि इंसाफ अधूरा है और सारी मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रहेगा. लेकिन आंदोलन का पहला चरण अदालत के फैसले के साथ ही खत्म हुआ मानना चाहिए. किसानों को कमेटी में अपनी मांगे जोर शोर से उठाने की तैयारी करनी चाहिए और तब तक के लिए आंदोलन स्थगित कर देना चाहिए जब तक कि कमेटी अपनी रिपोर्ट तैयार नहीं कर लेती और उसपर सुप्रीम कोर्ट अपना रुख साफ नहीं कर देता. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि किसानों और सरकार के बीच के संघर्ष का पहला दौर ड्रा पर छूटा है. अदालत ने बीच का रास्ता निकालने की जो गुजायश छोड़ी है उस पर कमेटी का क्या रुख रहता है यह देखना दिलचस्प रहेगा.