26 नवंबर की रात क्वालिस कार में सवार इंस्पेक्टर विजय सालस्कर, ATS प्रमुख हेमंत करकरे और एडिशनल कमिश्नर अशोक काम्टे को अजमल कसाब और उसके साथी इस्माइल ने कामा अस्पताल की गली में गोलियों से भून दिया था. उनकी हत्या के बाद कसाब और इस्माइल ने क्वालिस को अपने कब्जे में लिया जिसमे सवार होकर वे मेट्रो सिनेमा के जंक्शन की तरफ मुड़े. उस वक़्त वहां टीवी पत्रकारों और फोटोग्राफरों की भीड़ लगी थी. पुलिस उस जगह से आगे मीडियाकर्मियों को जाने नहीं दे रही थी.


वहां मौजूद पुलिसकर्मियों में सालस्कर की टीम के एक खास अधिकारी अरुण चित्ते भी थे. जब नीली बत्ती लगी वो क्वालिस मेट्रो जंक्शन के पास पहुंची तो मीडियाकर्मी ये सोच कर उसकी तरफ दौड़े की शायद कामा अस्पताल की तरफ से आ रही गाड़ी में सवार पुलिसवालों से आतंकियों के बारे में कुछ खबर मिल जाए. लेकिन इससे पहले कि मीडियाकर्मी क्वालिस के करीब पहुंच पाते अचानक उनकी ओर क्वालिस से फायरिंग होने लगी. अंदाजन चार राउंड फायर हुए जिनमे से तीन गोलियां पुलिस अधिकारी अरुण चित्ते को लगी और एक गोली ने वहां मौजूद ETV के कैमरामैन के हाथ की उंगली छलनी कर दी.


मीडियाकर्मी अरुण चित्ते को उठाकर पास ही के जी टी अस्पताल ले गए लेकिन तबतक अरुण चित्ते दम तोड़ चुके थे. कसाब उसी रात गिरगांव चौपाटी पर हुए एनकाउंटर में पकड़ा गया जबकि उसका साथी इस्माइल मारा गया. हमले के बाद करीब 70 दिनों तक कसाब मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की कस्टडी में रहा, जिसके बाद न्यायिक हिरासत के तहत उसे आर्थर रोड जेल की अति सुरक्षित अंडा सेल में भेज दिया गया.


कसाब का जिंदा पकड़ा जाना मुंबई पुलिस के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी. पाकिस्तान की ओर से मुंबई पर हमले के लिए रची गयी शैतानी साजिश का कसाब जीता जागता सबूत था. मुंबई पुलिस की पूरी जांच का आधार कसाब से मिली जानकारी थी. लेकिन इतने अहम आरोपी को जिंदा बचाए रखना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती थी.


कसाब ने मुम्बई हमलों के दौरान काम्टे, करकरे और सालस्कर के अलावा सीएसटी रेलवे स्टेशन, कामा अस्पताल और गिरगांव चौपाटी पर भी पुलिसकर्मियों की हत्या की थी. इन हत्याओं की वजह से मुम्बई पुलिस में कसाब के प्रति जबरदस्त गुस्सा था. कई पुलिसकर्मी उसे बेरहमी से तड़प तड़प कर मरता देखना चाहते थे. आम मुंबईकरों की भी यही भावना थी. आला पुलिस अफसरों को चिंता थी कि गुस्से में आकर कहीं कोई पुलिसकर्मी कसाब का गला न घोंट दें. पुलिसकर्मियों के इस गुस्से को हल्का करने की जरूरत नज़र आई. क्या किया जाए जिससे पुलिसकर्मियों के दिल मे लगी बदले की आग शांत की जाए?


वक़्त: मुम्बई हमले के करीब 10 दिन बाद रात के 3 बजे.


स्थान: मेट्रो सिनेमा जंक्शन की वो जगह जहां अरुण चित्ते की गोलियां लगने से मौत हुई थी.


क्रॉफर्ड मार्केट की दिशा से 2 SUV वहां पहुंचती हैं. उनमें सादे कपड़े पहने करीब 10 लोग उतरते हैं. उनके कुछ साथी पहले से वहां मौजूद रहते हैं. सभी के चेहरे गुस्से से तमतमाये हुए हैं. SUV से जो लोग उतरे हैं उनमें से एक मंझले कद का शख्स भी है जिसने टी-शर्ट पहन रखी है और जिसका सिर काले रंग के बुरखे से ढका है. एक शख्स ने पीछे की तरफ से उसकी पैंट को पकड़ रखा है, दूसरे ने उसके कंधे पर एक हाथ रखा है. बुरखे वाले शख्स को घसीट कर कावसजी हॉल और मेट्रो सिनेमा के बीच की सड़क पर लाया जाता है. सादे कपड़ों में मौजूद एक करीबन 6 फुट लंबा शख्स जोर से बुरखे वाले शख्स को आवाज देता है- " आई ...डया..थूक...थूक इधर ही थूक तू." बुरखे वाला शख्स कोई हलचल नहीं करता. अब सादे कपड़ों में मौजूद बाकी शख्स भी उसे हिंदी, मराठी में गालियां देने लगते हैं. जिस शख्स ने उसके कंधे पर हाथ रखा हुआ था वो अब बुर्के पर से ही उसके बालों को दबोचता है और उसे लात मारते हुए थूकने के लिए कहता है.


 "मारो मत साब थूकता हूं."


बुरखे वाला शख्स बुरखा आधा खोलकर सड़क पर थूक देता है. उसे एक लात पड़ती है- "...और थूक". जब बुरखे वाला शख्स 5-6 बार सड़क पर थूक लेता है तो सादे कपड़े वाला लंबा शख्स कड़क आवाज में उसको कहता  है - "...अब चाट इसको".


बुरखे वाला शख्स इस आदेश को नहीं मानता. उसे फिर एक बार लात पड़ती है. इस बार पड़ी लात ज्यादा सख्त होती है. बुरखे वाला शख्स गिरते गिरते बचता है. सादे कपड़े में मौजूद 2-3 और लोग उसको लतियाने आगे बढ़ते हैं लेकिन इससे पहले की वो कुछ करें बुरखे वाला शख्स सड़क पर बैठकर अपना ही थूक चाटने लगता है. जितना भी उसने थूका था वो सब वापस ले लेता है. सादे कपड़े में मौजूद सभी लोग उसे नफरतभरी नज़रों से देख रहे होते हैं. एक शख्स कहता है- जो तूने किया है उसके सामने तो ये कुछ नहीं.


इस बीच वहां से गुजर रहे कुछ बाइक सवार और टैक्सीवाले क्या चल रहा है ये देखने के लिए रुक जाते है. सादे कपड़े वाला लंबा शख्स एक टैक्सी वाले की तरफ गुस्से में दौड़ता है- ...काय को खड़ा है इधर?


 उसे देखकर सभी बाइक सवार और टैक्सीवाले वहां से भाग जाते हैं. इसके बाद दोनों SUV बुरखेवाले शख्स को लेकर फिर क्रॉफर्ड मार्केट की तरफ चली जाती हैं.


 लेखक सोच रहा है कि वो बुरखेवाला शख्स और सादे कपड़ो वाले वे लोग कौन हो सकते हैं. आपको क्या लगता है?


(Disclaimer: इस कथित घटना की पृष्टि कोई पुलिस अधिकारी नही करेगा। येरवडा जेल में दफन कसाब भी जाहिर है इसे सच या झूठ ठहराने से रहा। ऐसे में कोई इसे लेखक की कोरी कल्पना मानता है या फिर सोचता है कि लेखक ने रात को सोते वक़्त सपना देखा होगा तो कोई आपत्ति नही है।)


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)