नीतीश का आरजेडी से बाहर जाना तो करीब छह माह पहले ही तय हो गया था. लालू यादव परिवार की हेकड़ी और आरजेडी नेताओं के बिहार में जेडी (यू) पर बड़े भाई की धौंस से नीतीश व उनके सहयोगियों के लिए असहाय हो गई थी. इस पर तुर्रा ये कि लालू की तरफ़ से उनके व परिवार के ख़िलाफ़ भ्र्ष्टाचार के मामलों को ख़त्म करने की क़ीमत पर नीतीश सरकार गिराने की कथित साज़िशों की बातें भी चलीं. ये सब हालात ऐसे हो गए थे कि नीतीश का दम घुटता ही जा रहा था.


इसी बीच देश के राजनीतिक क्षितिज पर जिस तरह से मोदी छाते जा रहे थे और विपक्षी एकता नारों से निकलकर ज़मीन पर आकार लेने से पहले ही दम तोड़ रही थी, ऐसे में नीतीश ने सुरक्षित और सम्मानित रास्ता चुना. तेजस्वी यादव का मुद्दा तो सिर्फ़ मौका है वरना राष्ट्रपति के चुनाव ने नीतीश के एनडीए में शामिल होने का रास्ता बना दिया था. पुरानी दोस्ती को परवान चढ़ाने के लिए वैसे तो अरुण जेटली, भूपेन्द्र यादव थे ही, लेकिन तब बिहार के राज्यपाल और अब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ नीतीश की केमेस्ट्री ने भी ज़बर्दस्त गुल खिलाया. कोविंद के सहज और राज्य सरकार के प्रति नरम और खुले व्यवहार ने शायद नीतीश को एनडीए के साथ पुराने दिनों की याद दिला दी, जिसमें वे सही मायनों में अपने फ़ैसले मुक्त होकर लेते थे. बाक़ी जेटली और भूपेन्द्र यादव लगातार नीतीश के साथ नई पारी की पटकथा के आगे बढ़ाते जा रहे थे.

हालांकि, बीजेपी और जेडी (यू) के भरत मिलाप की यह प्रक्रिया पूरू हुई जबकि मारीशस के राष्ट्रपति के सम्मान में दिल्ली के हैदराबाद हाउस में आयोजित कार्यक्रम में मोदी और नीतीश की गुफ़्तगू के बाद परवान चढ़ गई थी. वास्तव में इसी मुलाक़ात से कोविंद के राष्ट्रपति भवन जाने का और नीतीश की घर वापसी पक्की हो गई थी.


सूत्रों के मुताबिक़, नीतीश ने कोविंद के नाम पर अपनी तरफ़ से सहमति का आश्वासन दे दिया था. मोदी और नीतीश की इस मुलाक़ात के बाद ही सियासी पंडित नए समीकरणों की स्पष्ट आहट देखने लगे थे. लालू के परिवार के भ्रष्टाचार की पुरानी फ़ाइलें इतनी तेज़ी से खुलीं कि बिहार फिर लगातार चर्चा में रहा. सुशील मोदी रोज़ाना प्रेसवार्ता कर तेजस्वी या लालू परिवार के एक-एक भ्रष्टाचार की बखिया उधेड़ने में जुट गए, जिसके नतीजे अब सामने हैं.


नीतीश से बातचीत में केंद्र की तरफ़ से बिहार के विकास और भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त शासन के मुद्दे को ही बातचीत के केंद्र में रखा गया. वास्तव में एनडीए में नीतीश को कभी बीजेपी से हस्तक्षेप का सामना नहीं करना पड़ा था. वहीं आरजेडी ने हालत ये कर दी कि डीएम, एसपी और थानाध्यक्ष से लेकर तहसीलदार तक के पदों पर अपनी चला रहे थे.

इससे भी ज़्यादा आरजेडी लगातार ज़्यादा सीटें होने के आँकड़े के साथ नीतीश को पल-पल यह जताती रहती थी कि -आरजेडी बड़ा भाई है और नीतीश उसके रहमोकरम पर मुख्यमंत्री!- यही नहीं लालू परिवार की तरफ़ से लगातार सीएम पद के लिए युवा को लाने की आवाज़ उठती रहती थी. मगर हद तो उस दिन हो गई जबकि नीतीश दिल्ली आए थे और तेजस्वी यादव ने बयान दे दिया था कि -नीतीश जी जब तक चाहें, मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं.- जेडी (यू) के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक़ बिहार में लालू परिवार और नेताओं की कार्यशैली से पहले ही असहज नीतीश अब तेजस्वी की तरफ़ से भी नीचा दिखाये जाने से बेहद क्षुब्ध हो गए थे.

यहां तक कि जेडी (यू) के नेताओं या विधायकों और मंत्रियों की तरफ से भी आरजेडी नेताओं की दादागारी की शिकायतें बढ़ती जा रहीं थीं. इसी दौरान लालू की तरफ़ से नीतीश सरकार को गिराने की कथित साज़िशों ने नीतीश के गुस्से की आग में घी का काम किया.  इसी बीच यूपी समेत चार राज्यों के नतीजे के बाद नीतीश पूरी तरह समझ चुके थे कि अब मोदी के खिलाफ जिस विपक्षी एकता की बात हो रही है, उसका कोई भविष्य ही नहीं है.

जब बिहार में ही उनके नेतृत्व को स्वीकारने में अहसान जताया जा रहा है तो राष्ट्रीय स्तर पर हालत समझना मुश्किल नहीं था. उस पर भी राजनीतिक हालात ऐसे होते जा रहे थे कि आने वाले समय में विपक्ष के सामने खड़े होने का संकट भी गहराता जा रहा था.  लिहाज़ा मिस्टर क्लीन के नाम से चर्चित नीतीश ने तेजस्वी के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार से बाहर आकर घर वापसी कर ली. वैसे भी जब नीतीश का लालू से गठबंधन हुआ था तब उन्होंने रहीम का एक दोहा ट्वीट किया था कि जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग. चंदन विष व्याप्त नहीं, लपटे रहत भुजंग.  तो अब नीतीश कह सकते हैं कि बीस माह में उन्होंने भुजंग को चंदन से अलग कर दिया.