BLOG: तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर का 'गेम प्लान' समझिए
दोनों गठबंधन के धुरंधर अपने तरकश से हर वो तीर छोड़ रहे हैं जिससे विपक्षी धड़े को चित किया जा सके. वहीं, लोकतंत्र की सबसे ताकतवर ईकाई माने जाने वाली 'जनता' भी इस पूरे राजनीतिक द्वंद पर गहरी नजर बनाए हुए है.
इस वक्त बिहार की जनता पूरे देश को प्रभावित करने वाले सियासी संग्राम की साक्षी बनने जा रही है. बिहार में गठबंधन और महागठबंधन के बीच राजनीतिक तलवारें खिंची हुई हैं. दोनों गठबंधन के धुरंधर अपने तरकश से हर वो तीर छोड़ रहे हैं जिससे विपक्षी धड़े को चित किया जा सके. वहीं, लोकतंत्र की सबसे ताकतवर ईकाई माने जाने वाली 'जनता' भी इस पूरे राजनीतिक द्वंद पर गहरी नजर बनाए हुए है, लेकिन इस बार जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, कौन बाजी मारेगा, यह तो 10 नवंबर के गर्भ में छिपा हुआ है. 'छठी मईया' किसे सूबे की सियासत के शिखर पर पहुंचाती हैं, यह भी 10 नवंबर की शाम को करीब-करीब साफ हो जाएगा.
इस चुनाव का आगे क्या होगा असर? यह चुनाव देश के दो बड़े सियासी दलों की साख का ही सवाल नहीं है, बल्कि इसके नतीजे बंगाल चुनाव को भी प्रभावित करेंगे. इतना ही नहीं एनडीए यदि सफल होता है तो केंद्र सरकार द्वारा पारित किसान बिल पर एक तरह से जनता की मुहर भी साबित करने की कोशिश करेगा. यदि महागठबंधन की जीत होती है तो विपक्ष किसानों का रोष स्थापित करेगा.
प्रशांत किशोर किसके सपनों को हवा दे रहे हैं?
अब चलिए गठबंधन और महागठबंधन के बीच सियासी धागे की चुनावी बुनाई समझते हैं. अभी दो तरह की खबरें तैर रही हैं, चर्चा भी बटोर रही हैं. पहली, आरजेडी के पोस्टरों से लालू यादव की विदाई. दूसरी, चिराग पासवान किसके साथ और अगला कदम क्या? इन दोनों खबरों को मोटे तौर पर आपने पढ़ा होगा. अब इसकी वजह समझिए... यह दोनों नेता इस चुनावी जीत की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं. उससे आगे का रास्ता बना रहे हैं, जिस पर इनकी राजनीतिक रेल दौड़ेगी.
उपमुख्यमंत्री तक की कुर्सी पर पहुंच चुके तेजस्वी यादव अभी तक लालू यादव के सियासी छांव में महफूज रहे हैं. लालू यादव के करिश्माई नेतृत्व और राजनीतिक पूंजी से तेजस्वी सत्ता के गलियारे में पहुंच तो गये, लेकिन अभी तक जनचेतना में अपनी जगह बनाने में सफल नहीं हुए हैं. यही बात चिराग पासवान के भी साथ है.
चिराग पासवान अभी तक अपने पिता राम विलास पासवान के बेटे के तौर पर ही अपनी पार्टी और जनता में पहचान रखते हैं. दोनों ही नेतापुत्र अब खुद की छवि गढ़ना चाहते हैं. बस यह विधानसभा चुनाव इनके लिए यही मौका है. इसलिए नीतीश कुमार के बाद बिहार में कौन? बात पक्ष या विपक्ष की नहीं, बल्कि खाली संभावित जगह भरने की है. अपने पिता की तरह बिहार से एक नेता के तौर पर दोनों खुद को स्थापित करने के लिए जूझ रहे हैं. सियासी गलियारों में चर्चा यह भी है कि प्रशांत किशोर अनौपचारिक तौर पर चिराग पासवान के सपनों के पंख को हवा दे रहे हैं.
RJD के पोस्टर से लालू यादव गायब क्यों? सियासत में कुछ भी अनायास नहीं होता. नई सोच, नया बिहार, अबकी बार. इसी नारे के साथ तेजस्वी यादव चुनावी मैदान में उतर रहे हैं. थोड़ा वक्त का पहिया पीछे लेकर चलते हैं और सरलीकरण के साथ कुछ समझते हैं. लालू प्रसाद यादव ने माय अर्थात यादव और मुसलमान का करीब करीब समीकरण बना कर सियासत की. नीतीश कुमार ने सवर्णों खासकर भूमिहार का पूर्ण समर्थन, अन्य पिछड़ी जातियों के कुर्मी, कोइरी और दलितों का सामाजिक समीकरण बनाया.
करीब 25 साल से बिहार की राजनीति इसी सामाजिक समीकरण के चारों तरफ घूम रही है. हालांकि 2005 और 2010 में विकास के मुद्दे पर चुनाव हुआ, लेकिन 2015 में एक बार फिर लालू यादव ने मंचों से खुलकर अगड़ा बनाम पिछड़ा का खेल खेला. हालांकि नीतीश कुमार तब भी अपने मंच से इन मुद्दों से बचते नजर आए. नीतीश कुमार ने जीत का परचम लहरा दिया. हालांकि 'बेमेल का ब्याह' ज्यादा दिन नहीं चल पाया. तेजस्वी यादव लगातार नीतीश कुमार पर राजनीतिक हमले कर रहे हैं.
वे गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, क्राइम और शराब की अवैध बिक्री के मुद्दे उठा रहे हैं. वे हर उस मुद्दे से बच रहे हैं, जिससे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हो सकता है. जातीय समीकरण को साध रहे हैं, लेकिन लालू यादव राज के दौरान की गलतियों के लिए वे अप्रत्यक्ष रूप से अगड़ों से माफी भी मांग चुके हैं. वे टिकट बंटवारे में अहमियत देने का संकेत भी दे रहे हैं.
राज्यसभा चुनाव में ब्राह्मण और भूमिहार को सीट देकर संदेश भी दिया है. पिछले पंद्रह साल में बिहार में वोटरों की एक नई पीढ़ी खड़ी हो गई है. उसने सिर्फ़ लालू यादव को देखा सुना भर है, लेकिन उनके राज के बारे में नहीं जानते. तेजस्वी यादव जान बूझ कर इस तबके के लोगों की बात उठाते हैं. उनकी नौकरी की मांग करते हैं. उनके सुरक्षा की बात करते हैं.
क्या चिराग लड़ेंगे विधानसभा चुनाव? यह चौंकाने वाली खबर है. यह बड़ा सवाल है कि क्या केंद्र की सियासत के बजाए बिहार में बैठकर सूबे की सियासत में चिराग पासवान उतरेंगे? राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अपने संसदीय क्षेत्र की किसी विधानसभा से विधान सभा से वह चुनाव लड़ सकते हैं.
यदि नीतीश कुमार के बाद कौन, इस सवाल के जवाब में खुद को तेजस्वी के साथ प्रतिस्पर्धा में रखना है तो बिहार विधानसभा चुनाव में उतरना होगा. चर्चा यह भी है कि प्रशांत किशोर ने तमाम संभावनाओं को आंकड़ों और समीकरण के साथ सलाह दिया है. अब किस 'रण'नीति के साथ चिराग आगे बढ़ते हैं इस पर से पर्दा चंद दिनों में उठ जाएगा.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)