अंत भला तो सब भला. जिस देश में ये कहावत सभी की जुबान पर रहती है उस देश में एडिलेड टेस्ट में मिली ऐतिहासिक जीत पर ही चर्चा होगी. ये चर्चा होनी भी चाहिए. साल के अंत में सबसे मुश्किल माने जाने वाले दौरे में पहले टी-20 सीरीज में बराबरी और फिर टेस्ट सीरीज में जीत के साथ शुरूआत. निश्चित तौर पर ये चर्चा वाला प्रदर्शन है.

लेकिन चर्चा इस बात पर भी होनी चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया ने जिस तरह दूसरी पारी में संघर्ष किया उसका असर उनके मनोबल पर पड़ेगा. चौथी पारी में ऑस्ट्रेलियाई टीम के आखिरी बल्लेबाज तक ने संघर्ष किया. 187 रन पर 7 विकेट गंवाने के बाद ऑस्ट्रेलिया के पुछल्ले बल्लेबाजों ने आखिरी विकेटों के लिए 100 से ज्यादा रन जोड़ दिए. ऑस्ट्रेलिया के पुछल्ले बल्लेबाजों के इस संघर्ष को लेकर मैच के दौरान हर कोई चर्चा करता रहा.

कॉमेंट्री में लगातार इस बात को लेकर चर्चा होती रही कि इस संघर्ष के पीछे भारत के एक गेंदबाज की लचर गेंदबाजी है. जाहिर है आपकी जिज्ञासा इस बात को लेकर होगी कि वो एक गेंदबाज कौन था, वो गेंदबाज थे आर अश्विन. जिन्होंने आखिरी विकेट लेकर टीम को जीत तो दिलाई लेकिन बहुत देर से. सच्चाई ये है कि अगर उन्होंने उम्मीद के मुताबिक गेंदबाजी की होती तो भारतीय टीम ये टेस्ट मैच और बड़े अंतर से जीत सकती थी.

जरूरत से ज्यादा दिमाग क्यों लगाते हैं अश्विन
आप आर अश्विन की गेंदबाजी का आंकलन कीजिए. आप पाएंगे कि वो कई बार जरूरत से ज्यादा दिमाग लगाते हैं. विकेट लेने के लिए जरूरत से ज्यादा प्रयास करते हैं. विकेट की चाहत में उनमें धैर्य और संयम की कमी दिखती है. वो जल्दी जल्दी विकेट चाहते हैं. जो टेस्ट क्रिकेट की परिभाषा के ठीक उलट है. टेस्ट क्रिकेट में कामयाबी हासिल करने का मूलमंत्र ही है कि गेंदबाज और बल्लेबाज संयम के साथ अपना काम करे.

आर अश्विन दूसरी पारी में औसत गेंदबाजी करते दिखे. कॉमेंट्री के दौरान लगभग सभी पूर्व भारतीय खिलाड़ियों को लग रहा था कि लगातार गेंदबाजी की वजह से आर अश्विन शायद थक गए हैं. पहली पारी में जिस तरह उनका शरीर गेंद के साथ जा रहा था. दूसरी पारी में वो तारतम्यता नहीं दिखी. उनकी गेंदबाजी और शरीर में ‘एनर्जी’ नदारद थी. नतीजा ऑस्ट्रेलिया के पुछल्ले बल्लेबाजों को क्रीज पर टिकने का मौका मिला.

पूरे मैच में आर अश्विन ने 86.5 ओवर में 149 रन देकर 6 विकेट लिए. उनसे उलट ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर नैथन लॉएन ने दूसरी पारी में आधी से ज्यादा भारतीय टीम को पवेलियन की राह दिखाई. चेतेश्वर पुजारा के बाद उन्होंने पूरा का पूरा मिडिल ऑर्डर अपनी गेंदबाजी में फंसा लिया. नैथन लॉएन ने 70 ओवर में 205 रन देकर 8 विकेट लिए.

अश्विन ने शुरूआत भी अच्छी नहीं की थी
आर अश्विन ने इस टेस्ट मैच की पहली पारी के पहले सेशन में भी औसत गेंदबाजी ही की थी. इसके बाद जब ब्रेक में उन्होंने अपनी गेंदबाजी देखी होगी तो जरूरी बदलाव किए. पहली पारी में जब वो गेंदबाजी कर रहे थे तब पहले उन्होंने कई गेंद साइड स्पिन फेंकी थी. जबकि एडिलेड की विकेट ऐसी थी कि इस पर टॉप स्पिन ज्यादा कारगर साबित होती. यानी पिच ऐसी थी कि आप हाथ के बगल से गेंद स्पिन कराने की बजाए हाथ के ऊपर से गेंद को रिलीज करें. ये बात हरभजन सिंह ने भी कही. दूसरे सेशन में आर अश्विन ने ये बदलाव किया भी. उन्हें सफलता भी मिली.

लेकिन चौथी पारी में जब वो आए तो वापस अपने पुराने ढर्रे पर आ गए. ये वही आर अश्विन हैं जो बीच में लेग स्पिन भी कराने लगे थे. जिसको लेकर तमाम दिग्गज खिलाड़ियों ने सवाल उठाए थे कि वो अपनी परंपरागत स्पिन क्यों नहीं कराते हैं. स्पिन गेंदबाजी भारत की परंपरागत ताकत मानी गई है. लेकिन हाल के दिनों में भारत के मुकाबले विदेशी स्पिनर से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है. इंग्लैंड के दौरे में आर अश्विन से बेहतर गेंदबाजी मोईन अली ने की थी. साउथैंप्टन टेस्ट मैच में भारत की हार में मोइन अली और आर अश्विन की गेंदबाजी का फर्क था. आर अश्विन को लेकर विराट को सतर्क रहने की जरूरत है.