BLOG: एमएसपी को लीगल राइट बनाने में परेशानी क्या है?
कुल मिलाकर किसानों को समझना चाहिए कि कोई भी सरकार चाहते हुए भी जिस तरह आरक्षण को बंद नहीं कर सकती उसी तरह कोई भी सरकार लाख चाहते हुए भी एमएसपी पर खरीद भी बंद नहीं कर सकती. आखिर इस देश में 14 करोड़ किसान हैं.
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किसानों और सरकार के बीच एमएसपी को लीगल राइट बनाने का मसला अटका हुआ है. किसान भी जानते हैं कि तीनों कानूनों को पूरी तरह से सरकार वापस नहीं लेगी. कुछ संशोधनों की बात सरकार कर रही है. कुछ नये संशोधन किसान प्रस्तावित कर सकते हैं. सरकार को उन्हें मानने में कोई खास दिक्कत नहीं होनी चाहिए. तो कुल मिलाकर मसला एमएसपी पर ही अटका हुआ है. आइए देखते हैं कि किसान क्यों चाहते हैं लीगल राइट और सरकार क्यों नहीं दे पा रही लीगल राइट. पहले किसानों की बात करते हैं.
सरकार भरोसा दिला रही है कि एमएसपी पर खऱीद बंद नहीं होगी, लेकिन
सरकार भरोसा दिला रही है कि एमएसपी पर खऱीद बंद नहीं होगी. सरकार ने जो प्रस्ताव मंत्रिमंडल की बैठक के बाद किसानों को भेजा इसमे भी कहा गया कि आश्वासन ही दिया गया कि सरकार एमएसपी पर खरीद जारी रखेगी. ये बात वो लिख कर देने का आश्वासन देती है. लेकिन फिर वही बात लिख कर नहीं दिया, लिखने का भरोसा भर ही दिलाया.
देश में भोजन के अधिकार के तहत 80 करोड़ की आबादी आती है
किसानों को वैसे समझना चाहिए कि सरकार चाह कर भी एमएसपी पर गेहूं और चावल के साथ साथ मोटे अनाज ( बाजरा मक्का ) की खरीद बंद नहीं कर सकती. अभी देश में कुल मिलाकर हर साल औसत रुप से 25 करोड़ टन अनाज पैदा होता है जिसका एक तिहाई सरकार एमएसपी पर खरीदती है. ये खरीद जारी रहनी ही रहनी है इतना भरोसा किसानों को होना ही चाहिए. देश में भोजन के अधिकार के तहत 80 करोड़ की आबादी आती है. इन्हें हर महीने पांच किलो गेहूं ( दो रुपये पिति किलो की दर से ) या पांच किलो चावल ( तीन रुपये प्रति किलो की दर से ) या मोटा अनाज ( एक रुपये किलो की दर से ) दिया जाता है. इसके लिए साल में पांच करोड़ 49 लाख टन की 15 लाख टन अनाज की जरुरत पड़ती है.
सरकार लाख चाहते हुए भी एमएसपी पर खरीद भी बंद नहीं कर सकती
अब भोजन का अधिकार एक कानून है लीगल राइट है यानि ये बंद नहीं हो सकता. तो जब ये बंद नहीं हो सकता तो पांच करोड़ 49 लाख टन अनाज की सरकारी खरीद भी बंद नहीं हो सकती. इसके अलावा सरकार अन्त्योदय योजना के तहत आने वाले ढाई करोड़ लोगों को 35 किलों अनाज हर महीने देती है. देश के 12 करोड़ बच्चों की मिड डे मील के लिये चावल गेंहू भी एमएसपी पर खरीदा जाता है. आंगनबाड़ी केन्द्रों के छोटे बच्चों के लिए भी अनाज खरीदा जाता है. ये मात्रा कुल मिलाकर 65 लाख टन होती है. तो कुल मिलाकर दोनों का जोड़ बैठता है छह करोड़ 15 लाख टन.
कुल मिलाकर किसानों को समझना चाहिए कि कोई भी सरकार चाहते हुए भी जिस तरह आरक्षण को बंद नहीं कर सकती उसी तरह कोई भी सरकार लाख चाहते हुए भी एमएसपी पर खरीद भी बंद नहीं कर सकती. आखिर इस देश में 14 करोड़ किसान हैं. खेतिहर मजदूरों को मिला लिया जाये तो तादाद 18 करोड़ के आसपास पहुंचती है. एक परिवार में तीन वोटर भी हुए तो ये आंकड़ा 50 करोड़ पार करता है. जाहिर है कि कोई भी सरकार इतने बड़े वोट बैंक को नाराज करने का सियासी जोखिम नहीं उठा सकती.
अभी एमएसपी का फायदा देश के 6 फीसद किसान ही उठाते हैं
अभी एमएसपी का फायदा देश के 6 फीसद किसान ही उठाते हैं. सरकार चाहे तो इस छह फीसद यानि पचास लाख किसानों के लिए गेंहू और चावल की एमएसपी खरीद को लीगल जामा पहना सकती है. वैसे तो एमएसपी के तहत 23 तरह के उपज आती है लेकिन पंजाब की कांग्रेस सरकार के खुद के नये कानून में भी केवल गेंहूं और चावल की एमएसपी पर खऱीद को ही अनिवार्य किया बनाया गया है. यही काम मोदी सरकार भी किसानों को विश्वास में लेकर कर सकती है.
साठ के दशक में शुरु हुई हरित क्रांति को सफल बनाने में पंजाब के किसानों का खास योगदान है. वहां के किसानों ने इतना अनाज उगाया कि पूरे देश का पेट पाला . पंजाब में उधेदयोग नहीं लगे, स्पेशल इकोनामिक जोन नहीं बने, आई टी सैक्टर के विस्तार की रफ्तार धीमी रही, सर्विस सैक्टर का विकास नहीं हुआ. अब जब मध्यप्रदेश यूपी राजस्थान जैसे राज्ये भी गेंहू उत्पादन में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं तो इसका खामियाजा पंजाब का किसान क्यों भुगते. इसलिए वो एमएसपी को लीगल राइट बनाना चाहता है. उसे लगता है कि नाजुक समय में उसने देश और केन्द्र सरकारों का साथ दिया और आज जब किसानी करना फायदे का सौदा नहीं रहा तो देश और केन्द्र सरकार को साथ देना चाहिए.
किसानों को सता रहा है ये डर
किसानों के लिए खासतौर से पंजाब के किसानों के लिए कहा जा रहा है कि चूंकि उनका करीब करीब पूरा गेहूं और चावल एमएसपी पर सरकार खरीद लेती है लिहाजा वो आलसी हो गये हैं. (पिछले साल सवा करोड़ मीट्रिक टन गेंहूं और दो करोड़ टन चावल एफसीआई ने खरीदा था) दूसरी नकदी फसलों को उगाना नहीं चाहते. ऐसे में एमएसपी पर ही निर्भर रहेंगे तो पिछड़ जाएंगे. लेकिन सच ऐसा नहीं है. पंजाब में इस साल 12 लाख एकड़ में कपास की पैदावार हुई. सारी कपास भारतीय कपास निगम ने खरीदी. इससे किसान खुश भी हैं. अगर सरकार चाहती है कि किसान एमएसपी को लीगन राइट बनाने का गाना बंद करें तो उसे अन्य नकदी फसलों को भी पूरा का पूरा कपास की तरह किसानों से खरीद लेना चाहिए. कम से कम पांच सालों के लिए. अभी चूंकि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं है इसलिए एमएसपी पर ही भरोसे हैं ओर इसके छिन जाने का डर सता रहा है. क्योंकि ऐसा हुआ तो किसान के साथ भूखों मरने की नौबत आ सकती है.
भारत को एक्सपोर्ट ओरिंटिड देश बनाना जरुरी है
आइए अब बात करते हैं कि आखिर सरकार एमएसपी को लीगल राइट घोषित करने से क्यों हिचकिचा रही है. सरकार की नजर में इसके आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक कारण हैं. आत्मनिर्भर भारत की बात हो रही है. चीन को टक्कर देने की बात हो रही है. इसके लिए भारत को एक्सपोर्ट ओरिंटिड देश बनाना जरुरी है. चीन की तरह, बांग्लादेश की तरह, जापना की तरह, वियतनाम की तरह. लेकिन एमएसपी को लीगल राइट बनाया गया तो भारत से कृषि उत्पादों का निर्यात करना मंहगा सौदा साबित होगा. एमएसपी के दाम घरेलु बाजार और अतंरराष्ट्रीय बाजार दोनो से ही ज्यादा होते हैं. ऐसे में कौन ऐसा धन्ना सेठ मिलेगा जो महंगा सामान खऱीद कर उसे सस्ते में विदेश भेजेगा. अब जब कृषि उत्पादों का निर्यात गिरेगा तो इससे नुकसान आगे चलकर किसानों को ही होगा.
एमएसपी को लीगल राइट बन भी गया तो इसका ये मतलब नहीं है कि सरकार सारा उत्पाद किसानों से एमएसपी पर खरीद ही लेगी
एमएसपी को लीगल राइट बनाया तो डिमांड सप्लाई को संतुलन पूरी तरह से टूट जाएगा. आखिर कोई भी व्यापारी धंधा करने बैठा है तो मुनाफर कमाने के लिए ही बैठा है. अनाज की बाजार में सप्लाई ज्यादा होगी लेकिन डिमांड उतनी नहीं होगी तो किसान अपनी उपज लेकर बैठा रहेगा लेकिन कीई भी एमएसपी पर खरीदने नहीं आएगा. आखिर किसानों को समझना चाहिए कि एमएसपी लीगल राइट बन भी गया तो भी इसका ये मतलब नहीं है कि सरकार सारे का सारा उत्पाद किसानों से एमएसपी पर खरीद ही लेगी. हर चीज का अपना अलग कोटा होगा. जैसे गेहूं का देश में कुल उत्पादन दस करोड़ टन के आसपास होता है लेकिन सरकार इसका एक तिहाई ही एमएसपी पर खरीदती है. हां पंजाब और हरियाणा से 90 फीसद से ज्यादा गेहूं जरुर खरीदा जाता है. कुल मिलाकर अभी भी सरकार किसानों के खेत के अनुपात में फसल का कुछ हिस्सा एमएसपी पर खरीदती है. जो हिस्सा बच जाता है उसे किसान अभी बाजार भाव पर बेच देता है. अब इस सामान को कार्पोर्ट क्यों एमएसपी पर खरीदेगा. नहीं खरीदेगा तो नुकसान किसान का ही होगा. उसका माल बिकने से रह जाएगा.
जानकारों का कहना है कि पंजाब के किसानों के लिए दस हजार करोड़ का विशेष पैकेज रखा जा सकता है
एमएसपी को लीगल राइट बनाया तो किसान एक ही तरह की फसल उगाना पंसद करेंगे. वो नकदी फसलें उगाने पर ध्यान नहीं देंगे. मुर्गी पालन, मछली पालन , मसालों, फल और फूलों की खेती करने का प्रयोग नहीं करेंगे. जानकार कहते हैं इनकी मांग अनाज के मुकाबले तीन से पांच गुना ज्यादा बढ़ रही है. जाहिर है कि किसानों कमाई में इजाफे का मौका चूक जाएंगे. जानकारों का कहना है कि पंजाब के किसानों के लिए दस हजार करोड़ का विशेष पैकेज रखा जा सकता है. किसान नकदी फसलें उगाए, मुर्गी मछली पालन करे. नुकसान होने की सूरत में पांच साल तक सरकार नुकसान की भरपाई करने का आश्वासन दे. ऐसा हुआ तो किसान एमएसपी के दायरे से बाहर निकलेंगे.
सरकार को लगता है अगर उसने एमएसपी को लीगल राइट बनाने की मांग स्वीकार कर ली तो इसे किसानों के आगे झुकना माना जाएगा. ऐसा संदेश जाएगा कि मोदी कमजोर प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं और मोदी सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर सवाल उठेंगे. कुल मिलाकर सरकार को लगता है कि किसानों की मांगे मान ली तो आगे से कोई बड़ा कड़ा आर्थिक सुधार करने की तमाम गुजाइश खत्म हो जाएगी. सरकार का अपना एक इकबाल होता है जो जाता रहेगा.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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