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अमेरिकी चुनाव अमेरिका के बारे में हमें क्या बताता है ?

आखिरी नतीजा जो भी निकले, हर पर्यवेक्षक को इस क्रूर तथ्य का सामना करना ही होगा कि मतदान करने वाले लगभग आधे मतदाता अपना वोट डोनाल्ड जे. ट्रंप के पक्ष में डालते हैं.

कम से कम इस क्षण तो यही लगता है कि जो बाइडेन जायज तरीके से जीत का दावा करने तथा जनवरी 2021 के दौरान व्हाइट हाउस की ओर कदम बढ़ाने की स्थिति में आ गए हैं. इससे अमेरिकी लोगों का एक बड़ा हिस्सा भारी राहत महसूस करेगा और कई लोग जिसे बीते चार सालों का ‘दुस्वप्न’ बताया करते हैं, उसका अंत होता दिख रहा है. दूसरी कई बातों के साथ-साथ बाइडेन ने इस चुनाव को ‘शालीनता’ के बारे में हुआ जनमत-संग्रह करार दिया था और इसमें कोई शक नहीं कि अनेक अमेरिकी इस बात को लेकर शुक्रगुजार होंगे कि उनके देश ने अपनी प्रतिष्ठा बहाल कर ली है.

इस देश को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत, उन्मुक्त विश्व का नेता, स्वतंत्रता का चमकता प्रकाश-स्तंभ तथा शेष दुनिया के लिए आशा की किरण के रूप में खुद को देखने की लंबे समय से आदत पड़ी हुई थी. इस बात का डर था कि यह चुनाव हिंसा की भेंट चढ़ जाएगा, लेकिन अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों तक ने माना है कि वे चुनाव की निष्पक्षता को लेकर संतुष्ट हैं. इसके उलट ट्रंप की चुनाव अभियान वाली टीम ने पेंसिलवेनिया में डाक से प्राप्त मतों की गिनती पर रोक लगाने के लिए मुकदमा दायर किया है. वास्तव में एक बहुत बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के बीच यह सुनिश्चित करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई कि मतदाताओं के पास अपना वोट डालने के कई विकल्प मौजूद रहें.

हालांकि, जब तक कि आप इस भरम में न खोए रहे हों कि अमेरिका असाधारण रूप से कोई महान देश है और बना रहेगा, तब तक वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा कुछ नजर नहीं आता, जो अमेरिकी चुनाव को इतनी नरम निगाह से देखने दे. आखिरी नतीजा जो भी निकले, हर पर्यवेक्षक को इस क्रूर तथ्य का सामना करना ही होगा कि मतदान करने वाले लगभग आधे मतदाता अपना वोट डोनाल्ड जे. ट्रंप के पक्ष में डालते हैं. वह 3 मिलियन पॉप्युलर वोटों के अंतर से मात खाने की कगार पर पहुंचते दिख रहे हैं, और 2016 के चुनाव में भी उनके पॉप्युलर वोटों का अंतर इतना ही था. सीनेट और हाउस ऑफ रीप्रेजेंटेटिव्स दोनों जगह सत्ता का पलड़ा थोड़ा-बहुत इधर-उधर जरूर झुका है, लेकिन हर दूसरे ऐतबार से चुनावी नतीजे यही संकेत देते हैं कि पिछले चार सालों में कुछ नहीं, एकदम कुछ भी नहीं हुआ है. ट्रंप के अहसानों तले दबे और उनका मुंह निहारने वाले कुछ सबसे निकम्मे और अधम राजनीतिज्ञ अपनी सीटें जीतने में कामयाब रहे हैं और इनमें से कुछ लोगों ने तो उसी सीट पर प्रचंड मतों से दोबारा जीत हासिल की. लगभग तय है कि यह ट्रंपविहीन ट्रंपवाद टिका रहेगा और फले-फूलेगा. जान पड़ता है कि गुजरे चार वर्षों में वक्त ठहर गया है. यह एक ऐसा तथ्य है, जिसे स्वीकार करने में रोंगटे खड़े हो जाते हैं!

चुनाव के कई दिन पहले से बाइडेन द्वारा सूपड़ा साफ कर दिए जाने की बड़ी चर्चा हो रही थी. सर्वेक्षण भी बाइडेन की ठोस जीत की भविष्यवाणी करने में लगभग एकमत थे. लेकिन चलिए, इन तमाम बातों को एक तरफ रखते हैं, चूंकि चुनावी मतदान, जिसका दूर-दूर तक भी किसी विज्ञान से कोई नाता नजर नहीं आता, कुल मिलाकर एक बिना दिमाग की कार्रवाई है, और इसमें आम तौर पर उन्हीं लोगों की दिलचस्पी रहती है, जिनके लिए सोचने-समझने का काम जरा मुश्किल होता है. सबसे मुनासिब और मूल तथ्य यह है दुनिया की नजरों में यूएस दयनीय बन चुका है. दुनिया भर में सुर्खियां बटोरने वाले और धरती के कोने-कोने में रहने वाले लोगों के सपनों का अपरिहार्य अंग बन चुके इस सबसे शक्तिशाली और सबसे अमीर देश ने कोरोना वायरस महामारी के सामने घुटने टेक दिए. जबकि इसने वियतनाम जैसे देशों को गरीबी के दलदल में ठेल दिया. पांच दशक पहले यूएस ने वियतनाम को बमों से उड़ा कर उसका नामोनिशान मिटाने की कोशिश की थी... और क्यूबा को तो आर्थिक प्रतिबंध, घेरेबंदी तथा राजनीतिक दमन-चक्र की एक क्रूर शासन-पद्धति के माध्यम से यूएस ने शेष दुनिया से काट कर रख देना चाहा था. मगर वियतनाम और क्यूबा सराहनीय ढंग से इस वायरस का पूरी तरह से फैलाव रोकने में सफल रहे. यूएस में हुई मौतों की संख्या दुनिया के हर देश से अधिक है. अमेरिका में भारत से एक लाख अधिक लोग मर चुके हैं. यूएस में रोजाना 1000 लोगों की मौत हो रही है और कल ही एक लाख से ज्यादा लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए! ट्रंप की निगरानी में उनकी ही आंखों के सामने केवल इतना ही नहीं हुआ है: वह न सिर्फ मार्च से यह ऐलान कर रहे थे कि वायरस गायब हो रहा है, बल्कि उनके प्रशासन की गड़बड़ नीतियों के चलते हजारों अमेरिकियों को समय से पहले ही जान गवांनी पड़ी! इस सब के बावजूद लगभग 50% मतदाता स्पष्ट तौर पर उन्हीं के साथ खड़े हुए हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि ट्रंप के छल-कपट, ढकोसले, हेराफेरी, धूर्तता, चालबाजी, ठगी और आपराधिकता की कोई सीमा ही नहीं है. मेक्सिको वासियों को उन्होंने बलात्कारी बताया था और अप्रवासियों (खास तौर पर उनकी ही भाषा में कहें तो “शिट-होल” देशों) के प्रति उनके मन में बैठी तिरस्कार और अपमान की भावना छुपाए नहीं छुपती. उन्होंने हमले की आशंका जताते हुए “मुस्लिम प्रतिबंध” लगाकर मुसलमानों को अमेरिका से अलग-थलग किया और इच्छा जताई कि अगर उनका वश चले तो वह अमेरिका में रहने वाले सारे मुसलमानों को बखुशी देशनिकाला दे देंगे. यद्यपि उन्होंने अपने पास लाखों बिलियन डॉलर होने की डींग मारी है, खुद को कई गोल्फ कोर्स का मालिक बताते रहे हैं, अनेक ऑफिस बिल्डिंग होने का दावा करते हैं और ऐसे कई विलासितापूर्ण आवासीय टॉवर का स्वामी होने की बात करते हैं, जिन पर भद्दे और नीरस ढंग से बड़े-बड़े अक्षरों में उनका नाम लिखा हुआ है. इतनी अकूत दौलत होने के बावजूद इस आदमी ने फेडरल इनकम टैक्स में महज $750 की रकम चुकाई थी और उसके बाद बरसों बीत गए, ट्रंप ने कोई टैक्स ही नहीं जमा किया. महिला वेटर, किराना भंडारों के क्लर्क, दुकानों के नौकर और डिलिवरी करने वाले लोग आदतन ट्रंप से कहीं ज्यादा टैक्स भरते हैं, लेकिन राष्ट्रपति इस कृत्य को खुद के “स्मार्ट” होने और इन लोगों के “मंदबुद्धि” होने के मत्थे मढ़ते हैं. टैक्स चोरी में लिप्त होने की अपनी काबिलियत पर उन्हें गर्व है. एक डेवलपर और विलासितापूर्ण संपत्तियों का मालिक होने के रूप में उनके करियर के बारे में छपे रिकॉर्ड को देख कर पता चलता है कि भारी टैक्स चोर होने के साथ-साथ वह उतने ही बड़े ठग और जालसाज भी हैं. ट्रंप की ओर से की गई छेड़छाड़ और यौन हमलों का आरोप लगाने वाली कम से कम बीस महिलाएं अब तक सामने आ चुकी हैं और ट्रंप के अलग-अलग बयानों को सुनने के बाद इस बात में कोई शक ही नहीं रह जाता कि वह महिलाओं से घृणा व द्वेष करने वाले व्यक्ति हैं. लेकिन ट्रंप के खिलाफ लगाए गए अभियोग बाइबल के टक्कर की एक ऐसी कहानी की रचना करते हैं, जिसमें व्यभिचार, लालच, चोरी-चकारी और अन्य पापों के खिलाफ बाइबल द्वारा की गई भर्त्सना से भी गहरी बातें शामिल हैं.

दिल से वह एक श्वेत नस्ली श्रेष्ठतावादी हैं और सालों से उन्होंने यह संकेत देने का कोई मौका नहीं छोड़ा कि यूनाइटेड स्टेट्स मूल रूप से एक श्वेत ईसाई देश है, और इसमें रहने वाले तमाम अन्य लोग मास्टर रेस के रहमोकरम पर हैं. उनके पद संभालने से पहले अमेरिकी शहर कई बार सुलग चुके हैं, लेकिन श्वेत राष्ट्रवादियों के प्रति अपने लगाव की खुली घोषणा करके उन्होंने देश को आग में लगातार झोंके रखा. ट्रंप ने “उग्रपंथी वाम” और “समाजवादियों” के प्रति अपनी घृणा को कभी छिपाया नहीं, जो कथित तौर पर “हमारे देश से घृणा” करते हैं. और तब भी मतदाताओं के लगभग 50% हिस्से ने अपना वोट ट्रंप को ही देना मंजूर किया है!

जो बाइडेन  ने एकाधिक अवसरों पर कहा है कि “अमेरिकी लोग दिल से शिष्ट, शालीन और सम्माननीय होते हैं.  देश में मतदान होने से एक दिन पहले बाइडेन  ने हाल के वर्षों में डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकंस के बीच गहराई तक बंटे पूरे चुनावी सीजन और अमेरिकी राजनीति की लाक्षणिकता जाहिर करने वाली घृणा, विद्वेष और कटुता की ओर इशारा करते हुए कहा था-  “हम ऐसे नहीं हैं, न ही अमेरिका ऐसा है”. इस चुनाव ने जो दिखाया है वह इसका ठीक उलटा है. यद्यपि कुछ लोग मतदाताओं के आधे हिस्से द्वारा ट्रंप और उनके समर्थन वाली हर चीज को नकारने से राहत महसूस कर सकते हैं और उत्साहित हो सकते हैं, लेकिन आबादी के आधे हिस्से ने तो यही प्रदर्शित किया है कि रिपब्लिकन पार्टी की क्रूरता उसको पूर्ण रूप से स्वीकार्य है. यह एक ऐसी पार्टी है, जो धन का अश्लील प्रदर्शन करती है, विदेशी लोगों से घृणा करती है, अश्वेतों के साथ नस्ली बैर रखती है, स्त्री-द्वेष से ग्रस्त है, मूर्खतापूर्ण मर्दानगी दिखाती है, भयावह संकीर्णता से भरी हुई है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यूएस के अंदर श्वेत कुलीन वर्ग का प्रभुत्व बरकरार रहे और दुनिया भर में अमेरिकी आधिपत्य बना रहे, यह पार्टी दृढ़ प्रतिज्ञ है. अगर यही अमेरिकी लोगों के जीने का तरीका है, तो दुनिया को जीने के इस तरीके को नामंजूर करने के पीछे मजबूती से खड़ा हो जाना चाहिए. 2020 के चुनाव ने दिखा दिया है कि शेष दुनिया के पास यूएस का मुखापेक्षी बने रहने का बिल्कुल कोई भी कारण नहीं बचा है और उनके लिए समय आ गया है कि वे यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के बगैर अपनी कल्पनाओं और सपनों को उड़ान दें.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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