सिनेमा की दिलकश अदाकारा निम्मी की अपने सुनहरे दौर में दीवानगी देखते ही बनती थी. राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद जैसे शिखर नायकों के साथ कई हिट फिल्में दे चुकी निम्मी का जादू सात समंदर पार तक था. यहां तक हॉलीवुड के फ़िल्ममेकर भी निम्मी को अपनी फिल्मों में लेने के लिए उतावले थे. जानिए निम्मी की जिंदगी के सफर को वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सरदाना के इस लेख में


निम्मी हिन्दी सिनेमा की एक ऐसी अभिनेत्री रहीं जो अपनी मासूमियत, सुंदरता और दिलकश अदाओं के लिए मशहूर रहीं. निम्मी का फिल्म करियर यूं सिर्फ करीब 15 साल का रहा. उनके खाते में मुश्किल से कुल 50 फिल्में आती हैं. एक अहम बात यह भी कि निम्मी ने 55 बरस पहले ही फिल्मों से संन्यास ले लिया था. लेकिन इस सबके बावजूद आज इतने बरस बाद भी लोग उन्हें भूले नहीं. सभी उन्हें शिद्दत से याद करते हैं. जिन्होंने निम्मी का वह सुनहरा दौर देखा है उनके तो दिलों में बसती थीं निम्मी.


निम्मी की पहली फिल्म ‘बरसात’ थी. जब सन 1949 में ‘बरसात’ प्रदर्शित हुई उस दौर में भारतीय सिनेमा तेजी से लोकप्रियता की ओर बढ़ रहा था. राज कपूर अपने बैनर से इससे पहले ‘आग’ जैसी सुपर फ्लॉप फिल्म बना चुके थे. लेकिन उसके बाद भी वह पहले से अधिक जोश के साथ अपनी दूसरी फिल्म ‘बरसात’ की तैयारियों में जुटे थे. ‘बरसात’ के लिए वह अपने अपोजिट रेशमा के रोल लिए तो नर्गिस को फ़ाइनल कर चुके थे. लेकिन फिल्म के सहनायक प्रेम नाथ के साथ नीला के रोल के लिए वह दूसरी हीरोइन की तलाह में जुटे थे.


एक दिन राज कपूर मुंबई के सेंट्रल स्टूडियो में फ़िल्म मेकर महबूब खान की फिल्म ‘अंदाज़’ की शूटिंग कर रहे थे. जिसमें उनके साथ दिलीप कुमार और नर्गिस भी थे. उसी समय एक बला सी खूबसूरत और मासूम लड़की भी, नर्गिस की वालिदा जद्दन बाई के साथ बैठकर फिल्म की शूटिंग देख रही थी. शूटिंग ब्रेक हुआ तो राज कपूर जद्दन बाई को आदाब करके पैर छूने के लिए उनके पास आए तो उनकी नज़र इस शोख हसीना पर पड़ी. राज कपूर ने तभी उस लड़की से पूछा – ए लड़की तुम्हारा नाम क्या है? यह सुन वह लड़की एक दम घबरा गयी. बड़ी मुश्किल से सकुचाते हुए बोली- नवाब बानो.


नवाब बानो को देखते ही राज कपूर को लगा यही ‘बरसात’ की नीला है. चंद दिन बाद राज कपूर ने नवाब बानो को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया. कुछ ही देर बाद नवाब ‘बरसात’ की सेकंड लीड हीरोइन बन चुकी थी. जिसे राज कपूर ने नया नाम दिया- निम्मी. कुछ ही दिन बाद अपनी पहली ही फिल्म ‘बरसात’ से नर्गिस, राज कपूर और प्रेम नाथ के साथ निम्मी भी एक बड़ी स्टार बन चुकी थी. यूं उत्तर प्रदेश के आगरा में 18 फरवरी 1933 को जन्मी नवाब बानो का निम्मी बनने का सफर तो मुश्किल नहीं रहा. लेकिन तब सिर्फ 16 बरस की निम्मी के लिए बड़े


फिल्म स्टार के साथ काम करना सहज नहीं था. राज कपूर से तो निम्मी बात बात पर डरती थीं. राज कपूर भी उस समय यूं 25 साल के ही थे. लेकिन पृथ्वीराज कपूर जैसी बड़ी हस्ती के बेटे, मशहूर हीरो और अब फिल्म के निर्माता निर्देशक होने के कारण भी राज कपूर का जलवा और रुतबा देखते ही बनता था.


जब राज कपूर ने निम्मी से राखी बँधवाई


राज कपूर निम्मी के इस फोबिया को जल्द ही समझ गए. शूटिंग के दौरान घबराई सी निम्मी को देख राज कपूर ने उनके हाथ में कलावे वाला लाल धागा थमाते हुए कहा कि ये लो यह मेरी कलाई पर बांध दो. निम्मी, राज कपूर की इस बात से पहले तो चौंकी लेकिन फिर उनसे बेहद प्रभावित हो गईं. निम्मी ने वह धागा राज कपूर की कलाई पर बांध दिया. उसके बाद निम्मी की झिझक तो दूर हुई ही, साथ ही तभी से दोनों के बीच बहन भाई का रिश्ता भी बन गया. निम्मी बताती थीं-“जब तक राज कपूर जिंदा रहे मैं उन्हें राखी बांधती रही.“


निम्मी-राज कपूर के इस रिश्ते का सम्मान पूरा कपूर परिवार भी करता था.


अब जब निम्मी 25 मार्च शाम को इस दुनिया से कूच कर गईं तब ऋषि कपूर ने भी निम्मी के साथ अपने पारिवारिक रिश्तों को याद करते हुए अल्लाह से उनके लिए जन्नत की दुआ की है. ‘आन’ से पहुंची हॉलीवुड तक धूम निम्मी के फिल्म करियर को ध्यान से देखें तो उन्होंने अपने करियर में ‘सेकंड लीड’ के किरदार काफी निभाए. लेकिन फिल्म की दूसरी हीरोइन होने पर भी निम्मी को जो लोकप्रियता मिली वह अद्धभुत रही. ‘बरसात’ के बाद निम्मी को महबूब खान ने अपनी फिल्म ‘आन’ में दिलीप कुमार के साथ लिया.


हालांकि महबूब खान अपनी फिल्मों को भव्य बनाने के चक्कर में बहुत समय लगाते थे. इसलिए ‘आन’ से पहले निम्मी की वफा,जलते दीप, सज़ा, बड़ी बहू और उषा किरण के साथ वह ‘दीदार’ फिल्म भी आ गयी जिसमें उनके साथ दिलीप कुमार थे. ‘दीदार’ को भी बहुत पसंद किया गया और दिलीप कुमार और निम्मी की जोड़ी इससे चल निकली. तभी एक और फिल्म ‘दाग’ में भी दिलीप कुमार और निम्मी साथ आए तो वह भी हिट हो गयी. यहाँ बता दें कि कुछ बरस बाद दिलीप कुमार और निम्मी की एक और हिट फिल्म ‘उड़ान खटोला’भी आई.


इधर ‘आन’ इसलिए तो अहम थी ही कि इसमें दिलीप कुमार थे, निम्मी थीं. साथ ही इसलिए भी कि ‘आन’ में एक नयी अभिनेत्री नादिरा लीड हीरोइन थी. लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि ‘आन’ देश की ऐसी पहली फिल्म थी जो टेक्निकलर फिल्म थी. साथ ही उस समय की यह सबसे महंगी फिल्म थी. निम्मी इस बात को हमेशा बड़े फक्र से बाटाती थीं- ‘मैंने हिंदुस्तान की पहली रंगीन फिल्म में काम किया है.“


उधर अपनी इस रंगीन, भव्य, मेगाबजट फिल्म को महबूब साहब ने एक साथ वर्ल्डवाइड रिलीज करने का नया चलन शुरू किया. इसके लिए जुलाई 1952 में ‘आन’ का वर्ल्ड प्रीमियर लंदन में रखा गया. लंदन के साथ अमेरिका में भी ‘आन’ फिल्म को ‘द सेवज प्रिंसेस’ के नाम से रिलीज किया गया. निम्मी भी इसके प्रीमियर के लिए लंदन गईं थीं. वहाँ निम्मी को नादिरा से भी ज्यादा सुर्खियां मिलीं.


विदेशी फ़िल्मकार भी निम्मी के दीवाने से हो गए. तभी एक फ़िल्ममेकर ने निम्मी का हाथ पकड़ कर उस पर ‘किस’ करना चाहा तो निम्मी ने यह कहकर हाथ झटक दिया –“ नो नो .. आई एम इंडियन गर्ल’. यह घटना अगले दिन मीडिया में ‘हाइलाइट’ हो गयी और निम्मी के फोटो को एक अखबार ने ‘अनकिस्ड गर्ल ऑफ इंडिया’ के केप्शन के साथ प्रकाशित किया.


उसी दौरान हॉलीवुड के एक निर्माता ने निम्मी को अपनी फिल्म में काम करनेका प्रस्ताव भी दे डाला. लेकिन निम्मी ने शालीनता से यह कहकर मना कर दिया कि मैं फिल्मों में चुंबन या बोल्ड सीन नहीं कर सकती. असल में निम्मी अपनी सुंदरता और नयन नक्श से किसी भी हॉलीवुड की हीरोइन से कम नहीं थीं. यहाँ तक वह कभी स्कूल जाये बिना पहले घर में मौलवी से तालीम लेकर और बाद में अँग्रेजी की होम ट्यूशन लेकर अँग्रेजी भी अच्छी ख़ासी सीख चुकी थीं. निम्मी अक्सर बताती थीं- “मुझे हॉलीवुड की 4 फिल्मों के ऑफर मिले थे. लेकिन मैंने मना कर दिया. मैं हिन्दुस्तानी तहजीब वाली रही हूँ शुरू से. इसलिए मैंने ज्यादा पैसा कमाने या खुद को दुनिया में मशहूर करने की जगह हिन्दुस्तानी होकर, अपने देश की फिल्मों में काम करना बेहतर समझा.“


निम्मी की सुंदरता के चर्चे हॉलीवुड में ही नहीं बॉलीवुड में भी खूब होते थे. हालांकि तब हमारे यहाँ मधुबाला जैसी बेहद खूबसूरत अभिनेत्री मौजूद थीं. लेकिन कितनी ही बार खूबसूरती के मामले में निम्मी की तुलना मधुबाला से भी होती थी. फिल्म ‘अमर’ की शूटिंग के दौरान जब निम्मी और मधुबाला ने साथ काम किया तो इन दोनों हुस्न परियों की इतनी अच्छी दोस्ती हो गयी कि मधुबाला अपने दिल के राज और दिलीप कुमार के साथ अपने निजी सम्बन्धों को निम्मी के साथ साझा करने लगीं.


निम्मी ने अपने फिल्म करियर में राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद जैसे शिखर के नायकों के साथ काम किया. तो प्रेम नाथ, अशोक कुमार, गुरु दत्त, किशोर कुमार, संजीव कुमार, धर्मेन्द्र ,राजेन्द्र कुमार और सुनील दत्त जैसे और भी कई हीरो के साथ फिल्में कीं. निम्मी की अन्य प्रमुख फिल्मों में अलिफ लैला, सोहनी महिवाल, भाई भाई, दाल में काला, चार दिल चार राहें, भँवरा, बसंत बहार, शमा, अंजली और अंगुलीमार के नाम भी हैं. निम्मी को फिल्मों में कई खूबसूरत और यादगार किरदार करने को मिले. जिनमें सोहराब मोदी की फिल्म ‘कुन्दन’ में तो निम्मी माँ और बेटी की दोहरी भूमिका में थीं. फिल्म ‘आकाशदीप’ में वह गूंगी लड़की बनीं तो ‘पूजा के फूल’ में अंधी लड़की का रोल निभाया. निम्मी ने खुद एक फिल्म ‘डंका’ का निर्माण भी किया. लेकिन यह फिल्म सफल नहीं हो पाई.


एक ऐसी भी फिल्म थी जिसे पूरा न होने का अफसोस निम्मी को जिंदगी भर रहा. वह फिल्म थी –‘लव एंड गॉड’. इस फिल्म का निर्माण ‘मुगल ए आजम’के बाद के आसिफ ने बहुत ही ज़ोर शोर से शुरू किया था. वह ‘लव एंड गॉड’ को अपनी ‘मुगल ए आजम’ से भी बड़ा बनाना चाहते थे. निम्मी इसमें लैला के लीड रोल में थीं और गुरु दत्त मजनू के. लेकिन गुरु दत्त के निधन के बाद फिल्म अटक गयी. फिर इसमें गुरुदत्त की जगह संजीव कुमार को लिया गाय.


लेकिन वह भी चल बसे और के आसिफ खुद भी इसी दौरान दुनिया छोड़ गए. बाद में आसिफ की बेगम अख्तर आसिफ ने इसे फिल्मकार के सी बोकाडिया के सहयोग से सन 1986 में जैसे तैसे पूरा करके रिलीज तो कर दिया. लेकिन आधी अधूरी सी, रुकी अटकी यह फिल्म दो दिन भी नहीं चल सकी.


अली रजा से किया निकाह इसे संयोग कहें या कुछ और कि जब निम्मी पहली बार फिल्म ‘अंदाज’ की शूटिंग देखने गयी थीं. तब जहां उनकी राज कपूर से मुलाक़ात हुई और वह उन्हें फिल्मों में लेकर आए. साथ ही ‘अंदाज़’ के सेट पर तब फिल्म के स्क्रिप्ट राइटर अली रज़ा भी मौजूद थे जो आगे चलकर निम्मी की जिंदगी के हमसफर बने, उनके शौहर बने. यूं अंदाज, आन, मदर इंडिया और रेशमा और शेरा जैसी बहुत सी फिल्मों के लेखक अली रज़ा से निम्मी की मुलाकातें शुरू से ही होने लगी थीं. रज़ा ने ‘आन’ फिल्म सहित कुछ और फिल्मों मे निम्मी को उर्दू के संवाद अच्छे से बोलने के साथ अदायगी के भी कुछ नुक्ते बताए. लेकिन निम्मी से उनका निकाह बरसों बाद 1965 में हुआ. निम्मी कहती थी- “रज़ा साहब से लंबी जान पहचान के बाद भी उनसे प्यार मुहब्बत जैसी कोई बात नहीं थी. हालांकि मैं चाहती थी कि मेरी शादी अपने ही मुस्लिम मजहब में हो तो अच्छा है. तब दो तीन लोगों ने मुझे रज़ा साहब का नाम सुझाया तो मुझे अच्छा लगा. तब दोनों परिवारों ने साथ बैठकर शादी का फैसला किया और हमारी शादी हो गयी.


बहुत ही खुशमिजाज थीं निम्मी


निम्मी ने सन 1965 में अपनी शादी के बाद फिल्मों से संन्यास ले लिया था. तभी उनकी फिल्म ‘मेरे महबूब’ प्रदर्शित हुई थी. फिल्म में राजेन्द्र कुमार और साधना थे. निम्मी फिल्म में राजेन्द्र कुमार की बड़ी बहन के रोल में थीं. सही मायने में उसके बाद निम्मी ने कोई फिल्म नहीं की. लेकिन फिल्मों से दूर रहने के बाद भी वह अपने फिल्म सर्कल के कुछ लोगों से मिलती रहती थीं. हालांकि पिछले कुछ समय से उनकी सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी. लेकिन मैं उनसे कभी कभार फोन पर बातचीत करता रहता था.


उनके जन्म दिन पर इस साल तो उन्हें मुबारकबाद नहीं दे पाया. लेकिन उससे पहले उन्हें जन्म दिन पर भी फोन कर उनसे बात हो जाती थी. बातचीत में वह अक्सर अच्छे से पेश आती थीं और खुश मिजाज रहती थीं. अपनी पुरानी से पुरानी बात उन्हें याद थी. लेकिन पिछले चार पाँच महीनों से वह ज्यादा बीमार थीं और अपनी याददाश्त भी खोने लगी थीं. अली रज़ा तो 2007 में ही इस दुनिया से कूच कर गए थे. दोनों की अपनी संतान का सुख तो नहीं मिला. पर निम्मी ने अपनी बहन के बेटे को गोद लिया हुआ था लेकिन वह भी लंदन में रहता था. इससे निम्मी अपने कुछ दो तीन खास लोगों के सहारे, अपने जुहू के पुराने घर में, अपनी जिंदगी खामोशी से बसर कर रही थीं.


यह भी इत्तफाक है कि इन दिनों जब कोरोना महामारी के प्रकोप से सभी को बचाने के लिए देश भर में ‘लॉकडाउन’ चल रहा है, तभी यह लाजवाब अदाकारा निम्मी खामोशी में ही दुनिया को अलविदा कह गईं. लेकिन निम्मी को भुलाना आसान नहीं होगा. उनकी फिल्में, उनका अभिनय उन्हें ‘अमर’ बनाए रखेगा.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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