तकरीबन सवा दो साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर पार्टी को जो बड़ा झटका दिया था, वह अब तक थमने का नाम नहीं ले रहा है. ये सिलसिला कहां जाकर रुकेगा, ये तो गांधी परिवार भी शायद इसलिये नहीं जानता कि उसे पार्टी की जमीनी हकीकत बताई ही नहीं जाती. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का जो नारा दिया था वह पूरा होते दिख रहा है. देश के सियासी नक्शे पर गौर करें तो सिर्फ दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में वह महज एक भागीदार है.
उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में कुछ नेताओं ने इस सच को माना है कि जनता से सीधा संवाद न बना पाने के चलते ही पार्टी का इतना बुरा हाल हुआ है. लेकिन जनता तो दूर की बात है, यहां तो पार्टी के बड़े नेता प्रादेशिक नेताओं को ही संभाल नहीं पा रहे हैं. चिंतन शिविर के पहले दिन ही पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने वाले पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने आज बीजेपी का दामन थाम लिया. उधर, गुजरात में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल ने भी इस्तीफा देकर कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. ऐसी खबर है कि वे भी जाखड़ की राह पर चलते हुए जल्द ही बीजेपी के जहाज पर सवार हो सकते हैं.
ये समझ से परे है कि गांधी परिवार को घेरे रखने वाली चौकड़ी प्रदेश के नेताओं से उनका सीधा संवाद आखिर क्यों नहीं होने देती. तकरीबन हर प्रदेश के नेताओं की ये शिकायत है कि उन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात कर उनसे सीधी बात करने का मौका नहीं दिया जाता. शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर इस तरह का रवैया आखिरकार किसी भी पार्टी के लिए आत्मघाती कदम ही साबित होता है. दो साल पहले कांग्रेस में इसकी जो शुरुआत हुई थी उसने अब अपनी स्पीड पकड़ ली है. इसलिये सोचने वाली बात ये है कि चिंतन शिविर के जरिये 2024 के लोकसभा चुनाव का रोड मैप तैयार करने वाली कांग्रेस में नेताओं के इस्तीफे देने का यही हाल रहा तो प्रदेशों में तो उसके पास नामी चेहरों का तो अकाल ही पड़ जायेगा.
ऐसी हालत में वो किस बूते पर खुद को जनता से कनेक्ट करने और बीजेपी को सत्ता से बाहर करने का सपना देख रही है. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस समय जिला स्तर तक के उन नेताओं से संवाद स्थापित करने की ज्यादा जरुरत है, जो हताशा व निराशा भरे इस माहौल में भी कांग्रेस का झंडा उठाकर वोट मांगने के लिए जनता के बीच जाते हैं.
बीजेपी में शामिल होने के मौके पर 50 साल तक कांग्रेस से नाता रखने वाले सुनील जाखड़ ने कुछ अहम बातें कही हैं, जिससे शीर्ष नेतृत्व को सबक लेने की जरुरत है. जाखड़ ने कहा, "आज परिवार से नाता तोड़कर मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि मुझे इसलिए कटघरे में खड़ा किया क्योंकि मैंने जाति-धर्म के नाम पर पंजाब को तोड़ने का विरोध किया. मुझे लगता है कि पंजाब एक सूबा है, जिसने देश के लिए अहम योगदान दिया है. हर मामले में पंजाब ने अपना नाम कमाया है."
दरअसल, गांधी परिवार को भी अब तो ये होश आ गया होगा कि पंजाब में पार्टी की इतनी बुरी गत करने के लिए सबसे ज्यादा दोषी अगर कोई एक व्यक्ति है तो वह है नवजोत सिंह सिद्धू. पिछले साल सिद्धू की जिद्द पर ही पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से और जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर पार्टी की कमान सिद्धू को सौंपी थी. लेकिन कहते हैं कि "सब कुछ लुटा के होश में आये भी तो क्या खाक होश में आये." कुछ वही हाल कांग्रेस आलाकमान का भी है. इसीलिए जाखड़ ने इस्तीफा देते समय कहा था कि पंजाब में कांग्रेस का बेड़ागर्क दिल्ली में बैठे उन लोगों ने किया है, जिन्हें पंजाब, पंजाबीयत और सिखी का कुछ भी पता नहीं है. आखिर मैं उन पिछलग्गुओं को किस भाषा में समझाऊं, जो दिल्ली में बैठे हैं.
हाईकमान पर तंज कसते हुए जाखड़ ने ये भी कहा था कि आपने मेरा दिल भी तोड़ा तो सलीके से न तोड़ा, बेवफाई के भी कुछ अदब होते हैं. उन्होंने मुगल शासक बाबर का जिक्र करते हुए कहा कि बाबर ने जब पहली बार हाथी देखा, तो उस पर बैठ गया और पूछा कि इसकी लगाम कहां है? उससे कहा गया कि इसकी लगाम किसी और के हाथ में होती है. इस पर उसने कहा कि ऐसे जानवर की सवारी क्या करना, जिसकी लगाम ही अपने पास न हो.
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