Blog: अंग्रेजों के बनाए IPC कानून को क्यों बदलना चाहती है मोदी सरकार?
बरसों पहले एक मशहूर शायर खुर्शीद अकबर ने लिखा था- "सरों पर ताज रक्खे थे कदम पर तख़्त रक्खा था वो कैसा वक़्त था मुट्ठी में सारा वक़्त रक्खा था." लगता है कि मोदी सरकार भी अब अंग्रेजों के गुलाम भारत की हर निशानी मिटाकर वक़्त को उस मुट्ठी से आजाद करके नए भारत की एक अलग तस्वीर बनाना चाहती है. वैसे तो ब्रिटेन ने भारतीय उप महाद्वीप पर तकरीबन 90 साल ही राज किया लेकिन देश को आज़ादी मिलने के 75 साल बाद भी उनके बनाए कानूनों से ही आज भी हमारे यहां सारा राजकाज चल रहा है.
कोई मामूली-सा हो या फिर बेहद संगीन जुर्म हो,हमारी पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों को आज भी अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाये गए IPC कानून यानी भारतीय दंड संहिता के हिसाब से ही चलना पड़ता है क्योंकि कानून की निगाह में यही गीता है और यही कुरान है. लेकिन मोदी सरकार ने इसमें बदलाव करने का ऐतिहासिक व क्रांतिकारी कदम उठाया है,जिसका मकसद है कि ये आज़ाद भारत के कानून के तौर पर पहचाना जाए जिस पर अंग्रेजों की कोई छाप न हो. सरकार इस पर जोरशोर से काम कर रही है औऱ सभी राज्यों से मिलने वाले सुझावों के बाद जुर्म की दुनिया की परिभाषा तय करने वाली इस किताब की शक्ल काफी हद तक बदली हुई देखने को मिल सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि सरकार कुछ गंभीर अपराधों में सजा के प्रावधान को बढ़ाने यानी उसे मृत्यु दंड तक किए जाने का सोच रही है और इसमें नशीले पदार्थों यानी ड्रग्स की तस्करी उसकी प्राथमिकता में है.हालांकि इसे हाल ही में हुए मुंबई के क्रूज़ ड्रग्स केस से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.इससे काफी पहले नशे के इस कारोबार ने पंजाब की जवानी को जिस बेरहमी से बर्बाद किया है,उसे लेकर सरकार की चिंता तो पहले से ही थी. लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के इन साढ़े सात साल में जिस तेजी से नशीले पदार्थों की तस्करी ने देश में अपनी जड़ें मजबूत की हैं और उन पैसों के जरिये अन्तराष्ट्रीय आतंकी संगठनों को जो बेहिसाब मदद पहुंचाई गई है, वह सरकार के लिए सिर्फ चिंता ही नहीं,बल्कि एक बेहद बड़े खतरे का मसला भी बन गया है.
हालांकि सरकार के आला मंत्रियों से लेकर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी ये खुलकर भले ही न स्वीकार करे लेकिन सच तो ये है कि चाहे केंद्र हो या राज्यों की बीजेपी सरकार,उन्हें किस दिशा में आगे बढ़ना है,इसका निर्णय आरएसएस ही लेता है. बेशक वह किसी भी सरकार को अपने रिमोट के जरिए नहीं चलाता लेकिन देश के सांस्कृतिक व सामाजिक चरित्र को बचाये रखने के साथ ही राष्ट्रहित से जुड़ी नीतियों को लागू करने और उस पर प्रभावी तरीके से अमल करवाने की सलाह संघ ही देता है,जिसे कोई ठुकराने की हिम्मत नहीं कर सकता.
IPC में किस हद तक क्या-क्या बड़े बदलाव होंगे, ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन इतना लगभग तय है कि नशीले पदार्थों की तस्करी को लेकर बेहद सख्ती बरती जाने वाली है. विजयादशमी के अवसर पर संघ प्रमुख ने अपने स्वयंसेवकों को बहुत बड़ा संबोधन दिया था लेकिन उनका फोकस तीन विषयों पर कुछ ज्यादा था.
पहला ये कि ड्रग्स का सेवन अमीरों से लेकर हर वर्ग के बीच बढ़ गया है लेकिन इसकी तस्करी के जरिए जो पैसा जुटाया जा रहा है, उसका इस्तेमाल देश में आतंकवाद फैलाने पर हो रहा है, लिहाज़ा सरकार को इसके लिए कड़ाई बरतने का कोई तरीका निकालना होगा. दूसरा, ये कि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करंसी हमारे देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करके रख देगी,इसलिये इसे सरकार द्वारा किसी भी रुप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए. इसका ताजा सबूत भी देखने को मिल गया कि पीएम मोदी ने इस पर अंकुश लगाने के लिए शनिवार को ही एक अहम बैठक की. और,भागवत का तीसरा जोर इस बात पर था कि सरकार OTT प्लेटफार्म पर काबू करे. वहां से संकेत मिलने के बाद आईटी मंत्रालय का सारा ध्यान अब इस पर ही लगा हुआ है और इन पर नियंत्रण पाने के कुसह और नए उपाय वही तलाशे जा रहे हैं.
संघ से इशारा मिलने के बाद सरकार के काम करने की प्रक्रिया कितनी तेज हो जाती है,इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को स्पष्ट रुप से ये कहा कि केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता IPC, अपराध प्रक्रिया संहिता CrPC और साक्ष्य अधिनियम Evidence Act में बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर दी है.उन्होंने राज्य सरकारों से कहा कि वे इस बारे में जितनी जल्दी हो सके,अपने सुझाव दें.तिरुपति में दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद की बैठक के दौरान शाह ने कहा कि सभी राज्यों को उच्च अधिकारियों और विशेषज्ञों को शामिल करके इसमें संशोधन के लिए अपने इनपुट केंद्र को भेजना चाहिए. लेकिन शाह ने इस बात पर खास जोर दिया कि मुख्यमंत्रियों को मादक पदार्थों, नार्कोटिक्स की बुराई को खत्म करने को भी प्राथमिकता देना चाहिए. ड्रग्स हमारी पीढ़ियों का जीवन व क्षमताओं को तबाह करते हैं. मतलब साफ है कि केंद्र सरकार चाहती है कि मादक पदार्थों के मामले में सजा का प्रावधान और कड़ा किये जाने को लेकर राज्य सरकारें भी अपनी सिफारिश करें, ताकि नए कानून को आसानी से संसद से पारित करवाया जा सके.
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