BLOG: आसाराम हो गए निराशाराम: कभी नाक पर नहीं बैठने देते थे मक्खी, अब पीसेंगे जेल की चक्की!
आसाराम बापू के नाम से मशहूर आसूमल थाऊमल सिरुमलानी अब अंडर ट्रायल आरोपी से सजायाफ्ता मुजरिम हो गए हैं. एक नाबालिग पीड़िता से बलात्कार के मामले में जोधपुर की एक अदालत ने उन्हें मृत्युपर्यंत कारावास की सजा दी है. अब उन्हें अपने सुपरिचित गेट-अप की जगह कैदियों वाली नंबर छाप वर्दी पहननी पड़ेगी, सलाखों वाली बैरक में निवास करते हुए सभी कैदियों को मिलने वाला खाना खाना होगा और क्षमतानुसार वे सारे काम भी करने होंगे, जो जेल के सजायाफ्ता पंक्षियों को सौंपे जाते हैं.
आसाराम के भक्तों के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं है. कहां तो भक्तों के मन में बसी भव्य मंचों से नृत्य करते, पांच हॉर्स पॉवर की पिचकारी से होली खेलते, कृष्ण-कन्हैया बनकर बांसुरी बजाते, भक्तिनों के साथ झूला झूलते, दिग्गज नेताओं को आशीर्वाद देते आसाराम बापू की छवि और कहां यह जेल में चक्की पीसने वाले मुजरिम की छवि! यह कोई फिल्मी कल्पना नहीं बल्कि कड़वी सच्चाई है. लेकिन आसाराम के आहत भक्त आज भी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.
लाख धनबल, बाहुबल, सत्ताबल लगाने के बावजूद जब बाबाओं पर न्याय का डंडा पड़ जाता है तो उनके भक्तगण ताण्डव मचा देते हैं. राम रहीम के भक्तों ने सैकड़ों वाहन फूंक दिए थे, रेलें ठप कर दी थीं, सरकारी-गैर सरकारी संपत्ति को नष्ट कर दिया था और कई भक्तों ने तो सदमे में आत्महत्या तक कर ली थी! आसाराम के भक्त भी वर्षों पहले दिल्ली के जंतर-मंतर पर मीडिया के कैमरे तोड़ चुके हैं और अदालतों द्वारा बार-बार जमानत नामंजूर किए जाने के बावजूद आसाराम को शुरू से ही निर्दोष बताते हुए उनकी फौरन रिहाई की मांग करते रहे हैं.
पाखण्डी बाबाओं के भक्तों का मिजाज ही कुछ ऐसा होता है कि वे अपने आराध्य में किसी दोष की कल्पना तक नहीं कर सकते. इसी लोकतंत्र में मथुरा वाले रामवृक्ष यादव ने अपने समर्थकों के साथ आखिरी सांस तक पुलिस के खिलाफ युद्ध लड़ा था! गुरमीत राम रहीम के भक्तों ने भी चंडीगढ़ की सड़कों पर युद्ध छेड़ा था और संत रामपाल के भक्तों ने तो आश्रम को ही किले में तब्दील कर दिया था, मजबूरन अर्ध-सैनिक बल बुलाना पड़ा था.
इस बार आसाराम के भक्त ऐसा कोई काण्ड न कर सकें, इसलिए जोधपुर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था. देश के कई हिस्सों में हाई एलर्ट घोषित करना पड़ा. बलात्कार पीड़िता और कुछ अन्य लोगों की सुरक्षा बढ़ानी पड़ी. आखिर बाबाओं के अपराधी साबित हो जाने के बावजूद उनके भक्तगण जान लेने-देने पर उतारू क्यों हो जाते हैं? इन्हें क्यों भरोसा नहीं हो पाता कि जिसे वह साधु समझते थे, दरअसल वह शैतान था! इसका एक ही जवाब है कि ये लोग मानसिक रूप से बाबाओं के पूरी तरह गुलाम बन चुके होते हैं.
लेकिन यह मानसिक गुलामी एक झटके में नहीं आती. पहले तो ये असुरक्षित और सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्थाओं से प्रताड़ित दुखी लोग बाबाओं के आश्रमों का दिव्य-भव्य स्वर्गिम माहौल देख कर सम्मोहित होते हैं, फिर उनकी हाथ की सफाई से हुए चमत्कारों को दैवीय शक्ति मान बैठते हैं. पुट्टापार्थी सत्य साईं बाबा कभी हवा में हाथ लहराकर राख तो कभी सोने की चेन पैदा कर देते थे. सचिन तेंदुलकर समेत देश-विदेश की कई दिग्गज हस्तियां उनकी भक्त थीं... और जब वह मृत्यु को प्राप्त हुए तो करीब 100 किग्रा सोना और 300 किग्रा चांदी मात्र उनके निजी कमरे में ही छिपी मिली!
बाबा का प्रवचन सुनने बैठे हजारों लोगों के बीच खुद को पाकर लोगों को एक किस्म की सुरक्षा का अहसास होता है और वे अपने आधे दुख तो वहीं भूल जाते हैं. घर लौटने पर फिर वही दुख का संसार उन्हें जकड़ लेता है. उससे घबरा कर वे फिर बाबा की शरण में भागते हैं. माया को वृथा बताने वाले बाबा के श्री चरणों में अपनी औकात से ज्यादा चढ़ावा चढ़ाते हैं. अध्यात्म, श्लोक, भजन, मंत्र, प्रवचन, प्रसाद, दुखों से मुक्ति आदि का गाजर लटका कर बाबा मनोवैज्ञानिक रूप से इन पर अपनी गिरफ्त कड़ी करता जाता है और अंत में इन्हें एकमात्र स्वयं पर आधारित करके अपनी कठपुतली बना लेता है. प्रायिकता के सिद्धांत के अनुसार अगर कभी बाबा का कोई आशीर्वाद किसी श्रद्धालु के लिए फलित हो गया तो वह इसे बाबा में मौजूद किसी ईश्वरीय शक्ति का प्रमाण मानने लगता है. फिर वह बाबा और भगवान के बीच का अंतर ही भूल जाता है.
आसाराम के अहमदाबाद वाले आश्रम में चल रहे गोरखधंधे की खबर उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी, बेटे नारायण साईं और बेटी भारती देवी को भी थी. जब उनकी बहू यानी नारायण साईं की पत्नी जानकी देवी ने इसके खिलाफ आवाज उठानी चाही तो उसे धमका कर चुप करा दिया गया. लेकिन हमें दाद देनी होगी उस लड़की की हिम्मत को, जो आसाराम के किसी पैंतरे और पशुबल से भयभीत नहीं हुई और अपने साथ हुए बलात्कार का न्याय लेकर ही मानी.
आज भारत को अपनी आस्था किसी ढोंगी बाबा के चरणों में गिरवी रखने वाले भक्तगणों की नहीं बल्कि अन्याय के खिलाफ लड़ रही लड़कियों और उनका साथ देने वाले स्वाभिमानी लोगों की जरूरत है. समाज को धर्म के उन ठेकेदारों का भी बहिष्कार कर देना चाहिए जो आसाराम की सजा को हिंदू धर्म के खिलाफ एक षडयंत्र बता रहे हैं.
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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)