राष्ट्रवाद चला ....जातिवाद पर कैमेस्ट्री भारी पड़ी .....बीजेपी का खुद का जातिवाद चला ....मोदी का जादू काम कर गया ....अमित शाह का बूथ मैनेजमेंट वोट खींचने में कामयाब रहा ....संघ की मदद ने असर दिखाया ....विपक्ष की कमजोरी का फायदा उठाया गया ....कांग्रेस ने गलतियां की . यह कुछ कारण हैं जो गिनाए जा रहे हैं . लेकिन यहां सबसे बड़ी वजह का जिक्र कम हो रहा है . यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री मोदी समेत सभी बीजेपी नेताओँ ने भी इस वजह का जिक्र अपने भाषणों में नहीं किया जितना किया जाना चाहिए था . वह वजह है मोदी सरकार के वह काम जो गांव देहात अर्ध शहरों में दिखते थे और लोगों को पहली बार लग रहा था कि उनतक विकास का कुछ हिस्सा पहुंच रहा है . चाहे वह किसानों के खाते में जमा दो दो हजार रुपये की पहली किश्त हो या फिर रसोई के कोने में पड़ा गैस सिलेंडर , चाहे वह आवास योजना में मिला घर हो या फिर आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त इलाज . कुल मिलाकर मोदी ने 2014 में सपना बेचा था . 2019 में उस सपने का मोदी ने विस्तार किया . इस बीच पूरे पांच साल तक एक सिलसिला बनाए रखा . चाहे वह रेडियो पर मन की बात हो या आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से वीडियो कांन्फ्रेस . लेकिन मोदी भी जानते थे कि विकास के सपने दिखाकर चुनाव जीता जा सकता है लेकिन विकास और सिर्फ विकास करने का दावा करके चुनाव जीता नहीं जा सकता . किसी भी योजना से लाभ उठाने वालों से ज्यादा हमेशा उस योजना से वंचित रहने वाले होते हैं . मोदी ने बड़ी चालाकी से वंचितों को भी योजना का लाभ देने का वायदा कर अपनी तरफ मिला लिया और उनकी नाराजगी दूर की .


इसका सबसे बड़ा उदाहरण किसानों के खाते में साल में छह हजार रुपए डालने की योजना है . मोदी ने जानबूझ कर तीन किश्तों की बात की यानि हर चार महीने बाद खाते में दो हजार रुपये जाएं और किसानों के बीच साल में तीन बार इस योजना पर चर्चा हो . पहले यह योजना उन किसानों के लिए थी जिनके पास दो एकड़ जमीन है . इस के तहत हिंदुस्तान के 95 फीसद से ज्यादा किसान आते हैं . लेकिन मोदी ने बीजेपी के घोषणा पत्र में सभी किसानों को इस योजना में शामिल करने का वायदा किया . इसपर कुछ खास अतिरिक्त खर्च होना नहीं था लेकिन हैड लाइन बन गयी कि मोदीजी देश भर के किसानों का भला कर रहे हैं .


इसी तरह उज्जवला योजना पहले गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए शुरु की गयी . इससे गांवों में उन लोगों में रोष देखा गया जो उतने ही गरीब थे लेकिन गरीबी रेखा से नीचे आते नहीं थे . उस समय गांव गांव में गैस चूल्हा और सिलेंडर होना स्टेटस सिंबल बनने लगा था . मोदी ताड़ गये . वैसे भी जेब से कुछ खास जाता नहीं था . उज्जवला के तहत पहले छह गैस सिलेंडर बिना सब्सिडी के दिए जा रहे थे .यानि हर सिलेंडर पर करीब 200 रुपये की सब्सिडी यानि छह सिलेंडर पर 1200 रुपये की सब्सिडी सरकार बचा रही थी . इसी पैसे से गैस चूल्हा ( 900 रुपए का ) दिया जा रहा था . खैर , सामाजिक योजना का अपना अलग अर्थशास्त्र होता है . गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को सिलेंडर मिल गया तो योजना का विस्तार किया गया . अन्य दलित , आदिवासी , पिछड़े इस योजना में शामिल किये गये . यही वजह है कि पांच करोड़ तक का लक्ष्य पूरा हुआ . अभी सात करोड़ से ज्यादा दिए जा चुके हैं . अब भले ही एक वर्ग सिलेंडर खाली होने पर भरवा नहीं पा रहा हो या फिर गांवों में आज भी गैस सिलेंडर के साथ लकड़ी के चूल्हे मिल जाते हों लेकिन योजना चल निकली तो चल निकली .


इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना की बात करें तो यहां भी देखा गया कि इस योजना की तुलना इंद्रिरा आवास योजना से नहीं हो जिसमें घोटाले होने की आमतौर पर खबरें आया करती थी . मानिटरिंग की खास व्यवस्था की गयी . पहले चरण में नींव खुदने की फोटो भेजने पर पैसों की किश्त , दूसरे चरण में ढांचा खड़ा होने की फोटो भेजने पर किश्त और दरवाजे खिड़कियां लगने की फोटो भेजने पर आखिरी किश्त .....मेरा पिछले सात आठ महीनों में राजस्थान , पंजाब , हरियाणा , मध्यप्रदेश , यूपी , बिहार , छत्तीसगढ़ जाना हुआ है . हर जगह मैंने गांववालों से पूछा कि किश्त जारी करवाने के लिए रिश्वत तो नहीं देनी पड़ी . हर जगह लोगों ने न में सिर हिलाया . वैसे किश्त में देरी की बात तो बहुत से लोगों ने की लेकिन रिश्वतखोरी से इनकार किया . बिहार में कुछ जगह लोगों ने सरपंच या मुखिया की तरफ से अपने रिश्तेदारों के नाम योजना में शामिल करने की शिकायत की गयी .


राजस्थान में कुछ जगह लोगों ने गरीब होते हुए भी योजना में नाम नहीं लिखे जाने या फिर झोपड़ी की फोटो भेजने के बाद भी पैसा नहीं आने की शिकायत की . यानि पूरा जोर इस बात पर दिया गया कि आवास योजना की तुलना अगर इंद्रिरा आवास योजना से हो तो इस तरह हो कि यह योजना पूरी तरह से पारदर्शी है , इसमें वंचितों की हो घर मिल रहा है और सबसे बड़ी बात कि यह भ्रष्टाचार मुक्त है . सबसे खास बात है कि इस योजना से वंचित तबकों की नाराजगी दूर करने का पूरा खाका बीजेपी कार्यकर्ताओं ने तैयार किया . जिसे अगले या फिर उसके अगले वित्तीय वर्ष में घर मिलना है उनके टूटे फूटे घर के फोटो लिए गये . इस तरह उन्हें भरोसा दिलाया गया कि उनके बारे में भी मोदीजी सोच रहे हैं और आप घबराए नहीं . आप कतार में हैं और बारी की इंतजार कीजिए . यह तरकीब रंग लाई .


अपने चुनावी दौरों में प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर दिलचस्प अनुभव हुए . राहुल गांधी की अमेठी में आवास योजना के तहत अपना घर बनवा रहे एक दलित ने कहा कि वह सालों से विधानसभा में मायावती और लोकसभा में राहुल को वोट दे रहा है लेकिन उसे घर मोदी ने दिया लिहाजा इस बार वह स्मृति ईरानी को वोट भी देगा और उनके लिए प्रचार भी करेगा . रायबरेली में एक जोड़े ने कहा कि उन दोनों के वोट मोदीजी को ही मिलेंगे लेकिन यहां से जीतेंगी तो सोनिया गांधी है . डिंपल यादव के कन्नोज में एक मुस्लिम ने आवास योजना के तहत मिले घर में चाय पिलाते हुए कहा कि वोट तो मोदीजी को ही जाएगा . गैस सिलेंडर दे दिया , घर दे दिया . ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के राज में योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिला हो लेकिन जिस तरह से भुनाया गया वैसा पहले कभी नहीं हुआ था . जयपुर में तो लाभार्थियों का सम्मेलन तक मोदी ने बुलवा लिया . चुनाव बाद अमित शाह तभी याद दिलाना नहीं भूले कि मोदी सरकार की अलग अलग योजनाओं के करीब 21 करोड़ लाभार्थी हैं जिनका वोट मिलने का यकीन है .


हालांकि यह बात मुद्रा योजना के लिये नहीं कही जा सकती . यहां 92 फीसद को पचास हजार से नीचे शिशु योजना के तहत कर्ज दिया गया जिसका औसत सिर्फ 23 हजार रुपये रहा . इतने पैसों से कोई क्या तो नया रोजगार खोलेगा और क्या ही किसी अन्य को रोजगार देगा . यहां भी निजी बैंकों ने रकम डूबने के डर से लोन देने में आनाकानी की . शौचालय निर्माण में भी चार हजार रुपये रिश्तव देने पर बारह हजार रुपये मिलने की शिकायतें आम हुई . कागजों में ही गांल के गांव खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिये गये . जैसलमेर में एक गांववाले ने मुझसे पूछा कि उनके गांव में अभी भी बहुत से घरों में शौचालय नहीं बने हैं लेकिन गांव मुक्त गांव घोषित कर दिया गया तो साहब आप तो देश भर में घूमते हो क्या दूसरी जगह भी ऐसा ही हो रहा है ....कुल मिलाकर स्वच्छता अभियान से कुछ माहौल जरुर बना लेकिन उससे आगे बात बनी नहीं . वैसे नौ करोड़ शौचालय बनाने का आंकड़ा भुनाया गया .


कुल मिलाकर सपना धीरे धीरे पूरा होने का भरोसा दिलाया गया . गांव गांव में इसके कुछ प्रतीक चिन्ह रखे गये . कुछ घरों में उज्जवला , कुछ घर आवास योजना के तहत बने हुए , घरों के बाहर इज्जत घर . आखिर सारा खेल जब छवि चमकाने का हो तो उसमें ऐसे प्रतीक सियासी मुनाफा दिला ही देते हैं .


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)