धोनी भज्जी को सुपरमैन कहते हैं. ये काफी हद तक सच भी है. भज्जी ने जिस हालात से निकलकर टीम इंडिया तक का सफर तय किया वो कोई फाइटर ही कर सकता है. अपने ऐक्शन से लेकर मंकीगेट एपीसोड तक से जिस मजबूती से वो बाहर निकले वो किसी आम खिलाड़ी के वश की बात नहीं है. उन्होंने गेंद और बाद के दिनों में बल्ले से जैसे टीम इंडिया को जीत दिलाई वो जिगरा हर खिलाड़ी में नहीं होता. आज उसी हरभजन सिंह का जन्मदिन है.

भज्जी के करोड़ों चाहने वाले हैं. जिन्होंने भज्जी की कामयाबी के साथ खुशियां मनाई हैं. आज भज्जी अपने करियर में एक अजीब से मोड़ पर खड़े हैं. वो लंबे समय से टीम इंडिया से बाहर हैं. आखिरी टेस्ट मैच उन्होंने करीब तीन साल पहले गॉल में श्रीलंका के खिलाफ खेला था. आखिरी वनडे भी उन्होंने करीब तीन साल पहले दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मुंबई में खेला था. टीम इंडिया के लिए टी-20 मैच खेले हुए भी उन्हें सवा दो साल का वक्त हो गया है. बावजूद इसके हरभजन सिंह ने अपने संन्यास का ऐलान नहीं किया है.

टेस्ट टीम में आर अश्विन और रवींद्र जडेजा की जगह पक्की है. वनडे और टी-20 में यजुवेंद्र चहल और कुलदीप यादव अपनी जगह मजबूत कर चुके हैं. इसके अलावा वाशिंगटन सुंदर और अक्षर पटेल समेत कई और स्पिनर भारतीय टीम में जगह पाने की रेस में हैं. ऐसे वक्त में भज्जी के लिए अब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कोई जगह बची नहीं है. इस साल वो चेन्नई सुपरकिंग्स की टीम से आईपीएल खेले थे. चेन्नई की टीम चैंपियन भी बनी. भज्जी के पास वो एक मौका था जब वो अपने करियर के बड़े फैसले का ऐलान कर सकते थे. लेकिन भज्जी वहां भी चूक गए.

कभी भी आसान नहीं रही भज्जी की राह
भज्जी का जन्म जालंधर के एक आम परिवार में हुआ था. उनके पिता सरदार सरदेव सिंह की एक छोटी सी फैक्टरी थी. भज्जी के अलावा परिवार में पहले से पांच बहनें थीं. पिता के पास फैक्टरी के अलावा कमाई का कोई और साधन नहीं था. इसलिए रुपये पैसे से भज्जी का परिवार मजबूत नहीं था, बस घर का काम किसी तरह चल जाता था. बचपन में भज्जी को जूडो और बैडमिंटन खेलने का शौक था. मुसीबत ये थी कि अपनी कमजोर कदकाठी की वजह से भज्जी को जूडो में बहुत पिटना पड़ता था और बैडमिंटन का खेल बहुत महंगा था. ऐसे में भज्जी क्रिकेट की तरफ आ गए. पिता ने पूरा सपोर्ट किया. भज्जी ने अपने कोच से कह तो दिया कि उन्हें ऑफ स्पिन करनी है लेकिन ऑफ स्पिन क्या होती है ये भज्जी को तब तक पूरी तरह मालूम भी नहीं था.

बाद में कोच के साथ भज्जी ने बहुत मेहनत की. ऊँगलियों में वो ताकत पैदा की जिससे गेंद को घुमा सकें. स्कूटर की हेडलाइट जलाकर घंटो घंटो प्रैक्टिस की. मेहनत रंग लाई. भज्जी पंजाब की अंडर-16 टीम के लिए चुन लिए गए. उसके बाद उन्हें अंडर-19 के लिए भी चुना गया. उसी दौरान भज्जी के करियर में एक कभी ना भूलने वाला वाकया हुआ. भज्जी ने एक स्पोर्ट्स गुड्स शॉप से एक कैप की कीमत पूछी, जवाब मिला- वो कैप उन खिलाड़ियों के लिए है जो भारतीय टीम के लिए खेलते हैं. भज्जी ने उसी दिन ठान लिया था वो भारत के लिए खेलकर ही रहेंगे.

मैदान में भी जमकर किया चुनौतियों का सामना
यूं तो भज्जी का करियर 1998 के आस पास शुरू हो गया था लेकिन अगले दो साल तक वो टीम से अंदर बाहर होते रहे. इसी दौरान उनके पिता भी चल बसे. पिता के जाने के बाद भज्जी के लिए बहुत मुश्किल वक्त था. एक वक्त ऐसा भी आया था जब उन्होंने क्रिकेट छोड़कर अमेरिका या कनाडा जाकर कुछ करने की सोच ली थी. किस्मत को ये मंजूर नहीं था.

2001 में ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए उस वक्त के कप्तान सौरव गांगुली ने जिद करके हरभजन सिंह को टीम में जगह दिलाई. उस एक सीरीज ने भज्जी का करियर बदल कर रख दिया. उस तीन टेस्ट मैच की सीरीज में भज्जी ने 32 विकेट लिए. कोलकाता के मैच में ऐतिहासिक हैट्रिक ली. अगले एक दशक से भी ज्यादा वक्त तक वो देश के बड़े मैचविनर खिलाड़ी रहे. उनके खाते में 700 से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय विकेट हैं. वो टी-20 विश्व कप और 2011 विश्व कप जीतने वाली टीम के सदस्य रहे हैं. उनकी कामयाबी के किस्से सैकड़ों हैं. अब सवाल बस एक है कि क्या भज्जी एक बड़े फैसले के लिए अपना मन बना चुके हैं ?