पिछले हफ्ते भारत ने चंद्रयान-2 मिशन का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया और मैंने इस बाबत मंगल ग्रह पर जाने का जिक्र किया था. मैंने सोचा कि लोगों को ये जानने में दिलचस्पी होगी कि आखिर दुनिया में मंगल ग्रह को लेकर क्या-कुछ चल रहा है. अगले साल अलग-अलग एजेंसियां मंगल ग्रह पर चार मिशन भेजने वाली हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इतने सारे मिशन एक साथ क्यों ? इसके पीछे की वजह ये है कि 26 महीने में केवल एक बार मंगल और पृथ्वी एक-दूसरे के सबसे करीब आते हैं. दोनों अलग-अलग कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं. मंगल कभी-कभी पृथ्वी से 40 करोड़ किलोमीटर दूर होता है. ये पृथ्वी से जब सबसे नजदीक होता है तो इनके बीच की दूरी 4 करोड़ किलोमीटर से भी कम होती है. जाहिर है, रॉकेट लॉन्च करने का सबसे सही समय यही होगा और ये संयोग जुलाई 2020 में बन रहा है.


अगले साल, 17 जुलाई को अमेरिका कार के साइज का रोवर मंगल पर भेजेगा. इसके आठ दिन बाद, एक रोसलिंड फ्रैंकलिन (अंग्रेज केमिस्ट) नाम का रूस-यूरोप मिशन लॉन्च होगा. दोनों मिशन फरवरी 2021 में मंगल की सतह पर पहुंच सकते हैं. वे मंगल पर जीवन के संकेतों की तलाश करेंगे और कुछ प्रयोग भी करेंगे.


इसी दौरान, चीन भी एक ऑर्बिटर (एक उपग्रह जो मंगल ग्रह की परिक्रमा करेगा) और एक रोवर के साथ मंगल मिशन लॉन्च करेगा. सौर ऊर्जा चालित चीनी रोवर लगभग 200 किलो वजन का होगा. फिलहाल वहां 6 ऑर्बिटर हैं, जिनमें अमेरिका के नासा के तीन, यूरोप के 2 और भारत का एक ऑर्बिटर शामिल है. मंगल पर नासा के भेजे हुए दो ऑपरेशनल रोवर भी हैं. चौथा मिशन संयुक्त अरब अमीरात का है और वे मंगल ग्रह पर जाने के लिए एक जापानी रॉकेट का इस्तेमाल कर रहे हैं.


मंगल ग्रह केवल वैज्ञानिक रूचि से कहीं ज्यादा है. मौजूदा समय में लोग मंगल ग्रह पर एक स्थाई मानव कॉलोनी बसाने के लिए काम कर रहे हैं. इसका तर्क इस प्रकार है- पर्यावरण की दृष्टि से पृथ्वी के सबसे अधिक नजदीक मंगल ग्रह है. इसका एक वातावरण है, हालांकि ये पूरी तरह से कॉर्बन डाई ऑक्साइड से बना है. इसके एक दिन में करीब साढ़े 24 घंटे होते हैं जो लगभग पृथ्वी के ही समान है. ये पृथ्वी के आकार का लगभग आधा है, इसलिए इसके गुरुत्वाकर्षण में बहुत ज्यादा फर्क नहीं होगा, हालांकि यह पृथ्वी के मुकाबले कम है. पृथ्वी पर किसी 50 किलो के इंसान का वजन मंगल पर 20 किलो से कम होगा. सौरमंडल के बाकी दूसरे ग्रह पृथ्वी से काफी अलग हैं. वो सूरज से बहुत दूर हैं और ठंडे हैं; जैसे- वृहस्पति, जो आकार में काफी बड़ा हैं और उसका गुरुत्वाकर्षण भी काफी ज्यादा है, तो वहीं कुछ का वातावरण जहरीला है.


मंगल पर बर्फ के रूप में काफी पानी है. और चूंकि यहां कार्बन डाई ऑक्साइड भी मौजूद है, इसलिए वहां मौजूद तत्वों से प्लास्टिक जैसे हाइड्रोकार्बन बनाए जा सकते हैं. अंतरिक्ष यात्रा में दूसरी सबसे बड़ी जरूरत ईंधन की होती है, और आज के समय में जो रॉकेट बनाए जा रहे हैं वो मीथेन और लिक्विड ऑक्सीजन से संचालित होंगे, और ये दोनों मंगल पर उत्पादित किए जा सकते हैं.


मंगल पर टेराफॉर्मिंग की कोशिश की जा रही है. टेराफॉर्मिंग का मतलब है कि मंगल को पृथ्वी की तरह बनाना. वहां पृथ्वी जैसा हरा-भरा वातावरण बनाने की दिशा में काम हो रहा है. ये उतना असंभव नहीं है जितना लगता है, और कई लोग सोचते हैं कि ये कोई मुश्किल भी नहीं है, हालांकि इसमें समय लगेगा. जैसा कि हम जानते हैं कि पौधों और वनस्पतियों को मुख्य रूप से सूर्य के प्रकाश और कार्बन डाई ऑक्साइड की जरूरत होती है और ये दोनों मंगल पर उपलब्ध हैं. और तीसरी सबसे जरूरी चीज मिट्टी में पोषक तत्व हैं, जो कि मंगल पर आसानी से पैदा किए जा सकते हैं. इन सब की सहायता से वहां इंसान के लिए ऑक्सीजन उत्पादित किया जा सकता है. ये सभी चीजें मंगल को एक डेस्टीनेशन के तौर पर काफी आकर्षक बनाती हैं.


निजी स्वामित्व वाली SpaceX एक ऐसी कंपनी है जो मंगल ग्रह पर पहुंचने और वहां उपनिवेश बनाने के मामले में सरकारी संगठनों NASA और ISRO से काफी ज्यादा आगे है. ये कंपनी केवल 17 साल पुरानी है लेकिन दुनियाभर में सैटेलाइट लॉन्च करने के मामले में अपना दबदबा बनाए हुए है. फिलहाल ये मीथेन और लिक्विड ऑक्सीजन द्वारा संचालित इंजनों का परीक्षण कर रही है और संभवत: ये अगले साल तक इसका एक डिजाइन भी तैयार कर लेगी.


किसी मिशन लॉन्च में एक रॉकेट के वो हिस्से जिसमें ईंधन होता है और जो इसे ऑर्बिट में भेजने के लिए जरूरी फोर्स देता है, काम पूरा होने का बाद अक्सर इन्हें बेकार समझ कर छोड़ दिया जाता है. लेकिन, SpaceX एकमात्र ऐसा संगठन है जो इसे लॉन्चिंग पैड पर सुरक्षित रूप से वापस लाता है और इसका दोबारा इस्तेमाल करता है.


SpaceX ने दुनिया में सबसे बड़ी क्षमता वाले रॉकेट भी विकसित किए हैं. और उनके पास मंगल ग्रह पर एक जहाज पर 100 टन वजन ले जाने में सक्षम होने की रणनीति भी है. इसका मतलब है कि जुलाई 2020 के बाद अगस्त 2022 में जब पृथ्वी और मंगल एक-दूसरे के सबसे करीब होंगे तो और भी ज्यादा मिशन भेजे जाने की संभावना है और हो सकता है मिशन में किसी इंसान को भी साथ भेजा जाए.


ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि मंगल पर अधिकार किसका होगा ? किसी देश का, किसी कंपनी का या सभी मानव प्रजाति का? इसका जवाब आने वाले समये में देना होगा क्योंकि फिलहाल इस क्षेत्र में हो रही प्रगति को कोई नहीं रोक सकता.


अब जबकि ये सब इतना रोमांचक है तो जाहिर है कि इससे पृथ्वी पर भी बदलाव होगा. अब जरा सोचिए कि कोई इंसान मंगल पर खड़ा होकर पृथ्वी को देखे तो उसे अंतरिक्ष में केवल एक नीली बिंदी दिखेगी, तब वो किसी देश, धर्म या फिर किसी और वर्ग के बारे में सोचेगा ? SpaceX ने पिछले साल एक विशाल रॉकेट लॉन्च किया था, तो उस पर पेलोड एक इलेक्ट्रिक कार थी, जिसे उन्होंने मंगल की कक्षा में भेजा था. शायद लाखों सालों में कोई एलियन इसे देखे. इस कार पर एक संदेश लिखा है- 'मानव द्वारा पृथ्वी पर निर्मित'.