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सबरीमाला की सीढ़ियों को भी औरतों के लिए आजाद कीजिए

सबरीमाला मंदिर केरल का मशहूर मंदिर है. यहां भगवान अयप्पा की पूजा के लिए श्रद्दालु आते हैं. लेकिन इस मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. 2006 में इस वर्जना के खिलाफ पुप्रीम कोर्ट में पीआईएल डाली गयी. अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संविधान पीठ को भेज दिया है.

हमें मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे या गिरिजाघर से कोई काम नहीं. हमारी ज़ात को हर जगह एक- दूसरे से भेदभाव का सामना करना पड़ता है. हम औरत ज़ात हैं. अपने आसपास खींचे गए वृत्त में बंधी गाय की तरह हमारी सीमाएं तय हैं. फिर भी हम खुश हैं कि देश की सबसे बड़ी अदालत हमारी बात सुनने को तैयार है. केरल के सबरीमाला मंदिर में हमारे दाखिले पर वह विचार कर रहा है. अब उसने इस मामले को संविधान पीठ को भेज दिया है.

1500 साल पुरानी परंपरा के खिलाफ आवाज 

सबरीमाला मंदिर केरल का बहुत मशहूर मंदिर है. यह पेरियर टाइगर रिजर्व के भीतर स्थित है और यहां देश विदेश से लेकर अपने देश के लाखों धर्मनिष्ठ लोग भगवान अयप्पा की पूजा करने के लिए आते हैं. लोग मतलब अधिकतर मर्द क्योंकि उनमें 10 से 50 साल के बीच की औरतें शामिल नहीं होतीं. इस साल मार्च में कांग्रेस की केरल इकाई के नेता एम.एम हसन ने कहा था कि मेनस्ट्रुएशन (मासिक धर्म) इनप्योर होता है और इसीलिए पीरियड्स होने का कारण औरतों को पूजा स्थलों में नहीं जाना चाहिए. तो, सबरीमाला के मंदिर प्रशासन का भी यही मानना है. 1500 सालों से यही परंपरा है और हम उसे मान रहे हैं. 2006 में केरल के यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने औरतों के इस बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की थी. करीब 10 साल से यह मामला कोर्ट में लटका हुआ है. पिछले साल नवंबर में केरल की एलडीएफ सरकार ने कहा था कि वह मंदिर में हर उम्र की औरतों के दाखिल होने का समर्थन करती है. अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संविधान पीठ को भेज दिया है.

बैन करना भेदभाव नहीं तो क्या ?

औरतों पर कई दूसरे पूजा स्थलों में भी दाखिल होने पर बैन है. केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर, राजस्थान में पुष्कर के कार्तिकेय मंदिर और रणकपुर के प्रसिद्ध जैन मंदिर, नासिक के त्रयंबकेश्वर मंदिर में वे नहीं जा सकतीं. असम के पटबौसी सत्र मंदिर में जेबी पटनायक के हस्तक्षेप के बाद कुछ औरतों को जाने दिया गया लेकिन इसके बाद फिर से पाबंदी लगा दी गई. धार्मिक स्थलों का अपना ट्रेडिशन है. उसे कौन चुनौती देगा, ट्रेडिशन को तोड़ना हमें पसंद नहीं भले ही इससे हमारे संवैधानिक अधिकार का हनन क्यों न होता हो. सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने संविधान पीठ के लिए जो सवाल तैयार किए हैं उसमें भी इस हक की बात की है. संविधान पीठ इस सवाल पर विचार करेगी कि क्या औरतों पर बैन लगाने से उनके खिलाफ भेदभाव होता है? वैसे इसके लिए किस बहस की जरूरत है, हमें बैन करने का मतलब ही हमारे साथ भेदभाव है.

बैन की शिकार लड़कियां

बैन भेदभाव का ही दूसरा रूप है. अंग्रेज लगाते थे, तो हम आंदोलन करते हुए देशभक्त कहलाते थे और आज बेशर्म कहलाते हैं. लड़कियां इस बैन का हर दूसरे दिन शिकार होती हैं. बैन है इसलिए देर रात तक बाहर मत रहो, बैन है इसलिए चुस्त कपड़े मत पहनो, बैन है इसलिए स्कूल के बाद घर पर बैठ जाओ, बैन के बीच उनकी जिंदगी किसी तरह खिसट जाती है. बैन घर परिवार से होता हुआ ही मंदिरों मस्जिदों में पहुंचता है. घरों से ही समाज बनता है. समाज जिस चश्मे से देखता है, घर भी उसी इमेज को अपने कमरों में फिट करता है. घरों में पीरियड्स के दिनों में लड़कियां किनारे बैठा दी जाती हैं. अचार मत छुओ, तुलसी में पानी मत डालो, किचन में घुसना भी नहीं, फ्रिज मत छू देना, पूजा के कमरे के पास मत फटकना.

पक्ष-विपक्ष में बुलंद होती आवाजें

सबरीमाला मंदिर में भी औरतों का फटकना मना है. पढ़ते हैं कि मंदिर में पथीनेत्तम पथी नाम की 18 ‘पवित्र’ सीढ़ियां हैं जिन्हें चढ़ने के बाद मंदिर के प्रांगण में पहुंचा जा सकता है. जब-जब इस पथी को कोई ‘अपवित्र’ करता है तो मंदिर का तंत्री प्योरिफिकेशन सेरेमनी करता है. दिसंबर 2011 में 35 साल की एक औरत ने जब चोरी-चोरी इन सीढ़ियों को पार कर लिया था तो तंत्री को यह सेरेमनी करनी पड़ी थी. आंध्र प्रदेश की उस महिला को रैपिड एक्शन फोर्स वालों ने मंदिर से बाहर निकाला था. 2006 में एस्ट्रोलॉजर पी उन्नीकृष्णनन पन्निकर ने मंदिर में देवाप्रसन्नम किया था और पता लगाया था कि ‘मंदिर में औरतों के दाखिल होने के संकेत हैं.‘ इसीलिए मंदिर को मैनेज करने वाले ट्रांवणकोर देवस्वम बोर्ड के प्रेजिडेंट ने सिक्योरिटी टाइट करने की बात कही थी. फिर मुस्कुरा कर कहा था कि आजकल हथियार पता लगाने की स्कैनिंग मशीन बन गई हैं. औरतें मंदिर में जा सकती हैं, अगर उनके पीरियड्स का पता लगाने वाली कोई स्कैनिंग मशीन बन जाए. तब केरल की औरतों ने ‘हैप्पी टू ब्लीड’ नाम का कैंपेन चलाया था. यानी पीरियड्स को लेकर हम खुश हैं. इसके खिलाफ ‘रेडी टू वेट’ कैंपेन चला, मतलब बहुत सी औरतों ने कहा कि मेनोपॉज तक हम मंदिर में जाने के लिए इंतजार कर सकती हैं. इसे चलाने वाले एक मशहूर मीडियाकर्मी थे. बदले में कुछ ने इसकी पैरोडी चलाई, ‘हैप्पी टू डाय’. इसमें पदमावती नाम की औरत सती होने की वकालत करती है और कहती है ‘वेस्टर्न थॉट वाले राजा राम मोहन राय को क्या हक था, सती को खत्म करने का.’’ इस मीम को चलाने वाली इंटरनेशनल चालू यूनियन थी. हम इस पर हंस सकते हैं इसके अलावा गुस्सा होने का विकल्प भी है.

औरतों के हिस्से सिर्फ इंतजार क्यों

गुस्सा करिए क्योंकि सिर्फ गरबा देखने की इच्छा के चलते आणंद में 21 साल के एक दलित लड़के को पीट-पीटकर मार दिया जाता है. हमीरपुर में 90 साल के एक बुजुर्ग को मंदिर जाने की इच्छा रखने पर जिंदा जला दिया जाता है. दलितों का मंदिर में जाना बैन है ठीक इसी तरह औरतों पर भी बैन है. हां, फर्क इतना है कि दलितों के साथ भेदभाव करने पर कानूनी धाराएं हैं और औरतों पर रिचुअल के नाम पर कितने भी बैन लगाए जा सकते हैं. वह चुपचाप बैन हटने का इंतजार करती रहेंगी.  इन बैन्स को हटाए जाने की मिसाल भी सामने है. कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर, शिंगणापुर के शनि मंदिर और मुंबई की हाजी अली दरगाह में औरतें जा पा रही हैं. तो, अब सबरीमाला की सीढ़ियों को भी आजाद कर दीजिए.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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