दो बार की आईपीएल चैंपियन कोलकाता नाइटराइडर्स की टीम दूसरे क्वालीफायर में मुंबई इंडियंस के खिलाफ एक स्कूली टीम की तरह खेली. पूरे मैच के दौरान कभी भी ऐसा नहीं लगा कि मुंबई इंडियंस एक ऐसी टीम के खिलाफ मैदान में उतरी है जिसने दो बार इस खिताब पर कब्जा किया है.


कोलकाता के फैंस के चेहरे पर जो कुछ मिनटों के लिए मुस्कान आई वो पीयूष चावला लेकर आए लेकिन वो मुस्कान कुछ मिनटों के लिए ही थी. शुक्रवार रात खेले गए इस अहम मैच में मुंबई इंडियंस ने टॉस जीता और कोलकाता नाइट राइडर्स को पहले बल्लेबाजी का न्यौता दिया. मुंबई के पास जिस तरह का मजबूत बैटिंग लाइन अप है उससे ये फैसला स्वाभाविक भी था.


कुछ अस्वाभाविक था तो कोलकाता के बल्लेबाजों का रवैया. क्रिस लिन के आउट होने के साथ विकेटों के गिरने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो रूका ही नहीं. पूरे सीजन में एक ‘ सफल प्रयोग’ के तौर पर इस्तेमाल किए गए सुनील नारायण इतने अहम मैच में कुछ जल्दबादी में दिखे. यही हाल बाकि बल्लेबाजों का भी रहा. इसका नतीजा ये हुआ कि इतने बड़े मैच में कोलकाता की टीम पूरे बीस ओवर खेल तक नहीं पाई.

सबसे बड़ी ताकत बनी सबसे बड़ी कमजोरी


इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि गौतम गंभीर कोलकाता की टीम की सबसे बड़ी ताकत हैं. आईपीएल के शुरूआती सीजन की नाकामी के बाद कोलकाता को कामयाबी के रास्ते पर लाने वाले कप्तान वही हैं. उन्होंने ही कोलकाता को जीतना सिखाया वरना उससे पहले केकेआर सितारों से सजी टीम भर थी.


गौतम गंभीर ने टीम की जरूरतों को हमेशा समझा और उसे प्राथमिकता पर रखा. उन्होंने अपने बैटिंग ऑर्डर तक को बदलने में देर नहीं की लेकिन कल कोलकाता की सबसे बड़ी ताकत ही उसकी कमजोरी बन गई. मुंबई के खिलाफ अहम मैच में गौतम गंभीर जब क्रीज पर आए तो उनकी टीम को एक संभली हुई बड़ी पारी की जरूरत थी लेकिन गंभीर स्पिनर कर्ण शर्मा के झांसे में आ गए.


बावजूद इसके कि गौतम गंभीर स्पिन के अच्छे बल्लेबाज हैं. गंभीर पारी के सातवें ओवर में कर्ण शर्मा को एक चौका भी लगा चुके थे. इसके बाद भी वो कर्ण शर्मा के खिलाफ असहज ही थे. जिस गेंद पर गंभीर आउट हुए उससे पहली वाली गेंद पर वो ‘बीट’ हुए थे. वो गेंद पूरी तरह स्टंप पर नहीं थी वरना गंभीर को आउट करार दिया गया होता.


अगली ही गेंद पर गंभीर ने दबाव को कम करने के लिए ‘अगेन्स्ट द स्पिन’ शॉट खेला. उस शॉट में थोड़ा और ताकत की जरूरत थी. गौतम गंभीर ने ‘रूम’ बनाकर शॉट तो खेल दिया लेकिन गेंद डीप मिडविकेट पर सीधे हार्दिक पांड्या के हाथ में गई. किसी ‘कैचिंग प्रैक्टिस सेशन’ की तरह. इसके साथ ही गंभीर सिर्फ 12 रन बनाकर पवेलियन लौट गए. नतीजा पूरी की पूरी कोलकाता की टीम 18.5 ओवर में 107 बनाकर ही आउट हो गई.


कप्तानी भी रही बेअसर


यूं तो हार के बाद कमियां निकालना आसान होता है लेकिन शुक्रवार को बड़े मैच में गौतम गंभीर की कप्तानी बिल्कुल औसत रही. कोलकाता की टीम की सबसे बड़ी खासियत थी उसके स्पिन गेंदबाज. स्पिन गेंदबाजों की जितनी ‘वेराइटी’ कोलकाता के पास थी उतनी किसी भी टीम के पास नहीं. 108 रन के लक्ष्य को ‘डिफेंड’ करने के लिए जरूरी था कि पहले 6 ओवर में मुंबई के कम से कम 3-4 बल्लेबाजों को पवेलियन भेज दिया जाए.


पारी के दूसरे ही ओवर में पीयूष चावला ने सिमंस को पवेलियन भेज भी दिया था. उनकी गेंदें मुंबई के बल्लेबाजों को लगातार परेशान कर रही थीं. वो किफायती भी थे. बावजूद इसके गंभीर ने दूसरे छोर से उमेश यादव को लगाए रखा. उमेश यादव ने टीम को दूसरी सफलता जरूर दिलाई लेकिन उनके ओवर में चौके भी पड़ते रहे. जिस ओवर में उमेश यादव ने पार्थिव पटेल को आउट किया उसमें भी उन्हें दो चौके पड़ चुके थे. बेहतर होता अगर गौतम गंभीर ने उस वक्त सुनील नारायण को ले आए होते. नारायण को जब गंभीर ने पांचवां ओवर सौंपा तो उन्होंने उस ओवर में सिर्फ 2 रन दिए. जिसका असर ये था कि अगले ही ओवर में बल्लेबाजों पर रन बनाने के दबाव का फायदा पीयूष चावला को मिला.


पीयूष चावला ने अंबाती रायडू को आउट कर दिया. यही वक्त था जब विकेट के दोनों छोर से गंभीर अगर गेंदबाजों की इसी जोड़ी को लगाए रखते और एक-दो कामयाबी और मिल जाती तो मैच में कोलकाता की वापसी हो सकती थी लेकिन गंभीर ने ऐसा नहीं किया. नतीजा पारंपरिक गेंदबाजी चलती रही और मुंबई ने पंद्रहवें ओवर में ही मैच जीत लिया.