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आम बजट तो लगता है कि एक फरवरी को ही पेश होगा!
देश का आम बजट केंद्र सरकार ही नहीं आम जनता की आकांक्षाओं और सपनों की उड़ान का विमान होता है. बजट से देश का हर वर्ग अपने लिए कुछ न कुछ राहत और मदद की उम्मीद रखता है. उम्मीदें पूरी न होने पर बजट की आलोचना भी होती है. लेकिन ‘आम बजट 2017’ अपने पेश करने की तारीख़ को लेकर आलोचना का शिकार हो गया है. कारण है इसका पांच राज्यों के घोषित विधानसभा चुनावों के बीच पेश किया जाना. विपक्षी दल इसलिए भी भन्ना रहे हैं कि संसद का बजट सत्र इस बार तय वक्तह से पहले क्यों पेश हो रहा है? यह पहला मौका है जब सरकार ने फरवरी के अंतिम दिन की बजाए एक फरवरी को बजट प्रस्तुत करने का फैसला किया है.
दिल्ली में संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीपीए) की बैठक मंगलवार को हुई. इसमें बजट सत्र का पहला चरण 31 जनवरी से शुरू करने पर फैसला किया गया. संसद का बजट सत्र इस बार 31 जनवरी से शुरू होकर 9 फरवरी तक चलेगा. 31 जनवरी को संसद में राष्ट्ररपति का अभिभाषण होगा और इसी दिन आर्थिक सर्वे पेश किया जाएगा. मालूम हो कि एक अप्रैल से पूरे देश में नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत होती है, इसलिए मोदी सरकार चाहती है कि बजट में जो भी योजनाएं शामिल हों, सरकार उन्हें लटकाने की बजाए इसी वित्तीय वर्ष में शुरू दे.
वैसे बजट की तारीख़ को चुनावी इरादों से भले ही जोड़ दिया जाए लेकिन पीएम मोदी इन तारीखों की घोषणा के बहुत पहले से ही कहते आ रहे थे कि बजट 28 फरवरी 28 से काफी पहले पेश होगा. उन्होंने बीते साल 26 अक्टूबर को राज्यों के सचिवों की एक बैठक में कहा था कि परियोजनाओं और योजनाओं का तेजी से क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय बजट को लगभग एक महीने पहले पेश किया जाएगा. मोदी सरकार का मानना है कि बजट की प्रक्रिया पूरी होते-होते वित्त वर्ष के पहले चंद महीने यूं ही बीत जाते हैं और योजनाओं पर निर्धारित राशि का थोड़ा हिस्सा भी ख़र्च होना शुरू नहीं होता. इससे परियोजनाओं पर असर पड़ता है. इसी के मद्देनजर कोशिश यह है कि 31 मार्च तक बजट की प्रक्रिया पूरी कर ली जाए और नए वित्त वर्ष के पहले दिन से ही, यानी फर्स्ट अप्रैल से परियोजनाओं पर ख़र्च शुरु कर दिया जाए.
हालांकि बजट तैयार करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है और और पेश करने की तारीख़ तय करना महामहिम राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है. ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया है जो आम बजट को फरवरी के अंतिम दिन पेश करने के लिए बाध्य करे. इसे महज एक परम्परा के तौर पर देखा जाता है. लोकसभा चलाने के तौर-तरीकों में नियम संख्या 204 में साफ तौर पर लिखा है कि राष्ट्रपति जिस तारीख को बजट पेश करने का निर्देश देंगे, उसी तारीख को बजट पेश होगा. दूसरी ओऱ संविधान की धारा 112 के तहत भी कहा गया है कि राष्ट्रपति की मंजूरी से ही सरकार खर्चों और आमदनी का सालाना लेखा-जोखा यानी बजट पेश करेगी. इन दोनों के आधार पर कहा जा सकता है कि बजट की तारीख तय करने के मामले में राष्ट्रपति की बात ही अंतिम मानी जाएगी.
लेकिन बजट की तारीख बदलने की मांग के पीछे विपक्ष के पास एक मजबूत नैतिक आधार है. याद कीजिए कि जब साल 2012 में यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के यही विधानसभा चुनाव होने जा रहे थे तो तत्कालीन यूपीए सरकार ने राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से आम बजट 16 मार्च को पेश करने की सिफारिश की थी और यही हुआ भी था. इरादा यह था कि यह संदेश न जाने पाए कि सरकार मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐन चुनाव के बीच बजट पेश कर रही है.
इसी तर्क के आधार पर यूपी सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम घोषित होते ही एक फरवरी को पेश होने वाले आम बजट पर सियासी कोहराम की जमीन तैयार हो गई है. विपक्षी दलों का कहना है कि अगर यूपीए सरकार बजट को टाल सकती थी तो एनडीए सरकार बजट को चुनाव के बाद क्यों नहीं प्रस्तुत कर सकती? इसी तर्क के बल पर कांग्रेस समेत कई दल चुनाव से ठीक पहले आम बजट पेश करने पर आपत्ति जताते हुए राष्ट्रपति भवन का दरवाजा खटखटा चुके हैं. विपक्ष ने अब चुनाव आयोग का रुख भी किया है. इनमें टीएमसी, बसपा, जेडीयू और राजद जैसी पार्टियां शामिल हैं. वहीं भाजपा के साथ हर मुद्दे पर टकराव की भूमिका निभाने वाली उसी की सहयोगी शिवसेना ने भी एक फरवरी को संसद में पेश होने वाले बजट को लेकर खुला विरोध किया है. उद्धव ठाकरे ने बुधवार को कहा कि पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है इसलिए चुनाव के दौरान संसद में आम बजट प्रस्ताव नहीं पेश किया जाना चाहिए, क्योंकि लोकलुभावन घोषणाएं करके सत्ताधारी दल इसका फायदा ले सकते हैं.
वह चुनाव के बाद की कोई तारीख़ निर्धारित करने के लिए राष्ट्रपति से विशेषाधिकार का प्रयोग करने की बात कर रहे हैं. लेकिन विपक्षी दल कितना भी हल्ला-गुल्ला क्यों न कर लें, मोदी सरकार टस से मस नहीं होने वाली. पीएम नरेंद्र मोदी की कार्यशैली ऐसी कभी नहीं रही कि उनकी सरकार विपक्ष के दबाव में अपना फैसला बदल देगी. राष्ट्रपति द्वारा विशेषाधिकार इस्तेमाल किए जाने का कोई औचित्य भी नहीं बनता. यह भी समझ में आ रहा है कि चूंकि आम बजट केंद्र सरकार का कार्यक्षेत्र है इसलिए इसे पेश किए जाने की तारीख़ को लेकर चुनाव आयोग कोई दखलंदाज़ी नहीं करने वाला.... और मोदी जी बजट की तारीख़ आगे बढ़ाने में कांग्रेस का अनुसरण करने से रहे! इतना ज़रूर हो सकता है कि वह चुनाव आयोग के लेवल प्लेइंग फील्ड मुहैया कराने के दिशानिर्देश का पालन करते हुए कोई लॉलीपॉप न पेश करे, लेकिन बजट तो लगता है कि एक फरवरी को ही पेश होगा.
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