मुंबई में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की ड्रग्स केस में गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर से बॉलीवुड और ड्रग्स की काली दुनिया के बीच नापाक रिश्ते की चर्चा शुरू हो गई है. ऐसा नहीं है कि ड्रग्स सिर्फ बॉलीवुड की समस्या है और समाज के बाकी वर्गों का ड्रग्स से कोई लेना देना नहीं है. ये समस्या हर जगह है. ये जरूर है कि जब बॉलीवुड से जुड़े लोगों का इसमें नाम आ जाता है तभी इस मुद्दे पर जमकर चर्चा हो जाती है. पिछले साल सुशांत केस के दौरान भी हमने ऐसा ही देखा था. बॉलीवुड में ड्रग्स की समस्या नई नहीं है. संजय दत्त, कंगना रनौत, फरदीन खान, प्रतीक बब्बर जैसे कई फिल्मी सितारे ड्रग्स के चंगुल में फंसने की कहानी दुनिया को बता चुके हैं. हर बार की तरह इस बार भी कुछ दिन तो ये मुद्दा सुर्खियों में रहेगा, लेकिन इसके बाद बात आई-गई हो जाएगी. दरअसल फिल्मी सितारों को अपना आदर्श मानने वाले देश के कई युवा अक्सर नशे के चंगुल में अक्सर फंस जाते हैं. बड़ा सवाल ये है कि ड्रग्स की तरफ युवा आकर्षित क्यों हो रहे हैं और इससे निपटा कैसे जाए?


दरअसल शुरू-शुरू में नशे से मोहब्बत शौकिया होती है, लेकिन शौक को मजबूरी बनते और मजबूरी को मौत बनते देर नहीं लगती. नशे की खेती करने वाले ये बात बहुत अच्छी तरह से समझते हैं. वो जानते हैं कि चोट वहीं करनी चाहिए जहां नस कमजोर हो. बेरोजगारी और तनाव से भारत ही नहीं, दुनिया का लगभग हर देश जूझ रहा है. यही नौजवानों की कमजोर नस है. पहले तो उन्हें फर्जी सब्जबाग दिखाओ, पलायन की लत लगाओ और फिर दम मारो दम, मिट जाए गम जैसे झूठ दोहराकर हमेशा के लिए ड्रग्स का शिकार बना लो.


पिछले कुछ सालों में जब भी ड्रग्स को लेकर चर्चा हुई है, उसमें पंजाब का नाम सबसे पहले आता है, लेकिन सच्चाई ये है कि मुंबई में भी ड्रग्स एक व्यापक समस्या है. मुंबई में ड्रग्स की सप्लाई देश और विदेश के कई रास्तों से होती है. यहां पर इनकी जबर्दस्त खपत है. पिछले साल नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के एक अधिकारी ने अनुमान लगाया था कि मुंबई और उसके आस पास के इलाकों में हर महीने औसतन 500 किलोग्राम मारिजुआना की खपत होती है और ड्रग माफिया हर महीने करीब 500 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं. जाहिर है इसमें सिर्फ बॉलीवुड शामिल नहीं है बल्कि दूसरे लोग भी शामिल हैं. शायद यही वजह है कि मुंबई को भारत की रिटेल ड्रग कैपिटल भी कहा जाता है. 


मुंबई के नवा शेवा पोर्ट पर हर साल करोड़ों रुपए के ड्रग्स बरामद किया जाते हैं. जाहिर है ये नशे का सामान देश के बाहर से आ रहा है. ये कोई पहेली नहीं है कि भारत में ड्रग्स अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते आता है. पिछले साल अगस्त में मुंबई में नवा शेवा पोर्ट पर एक हजार करोड़ रुपए के ड्रग्स पकड़े गए थे. ये खेप अफगानिस्तान से मुलेठी कह कर लाई गई थी. 


इसी तरह इस साल सितंबर के महीने में गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 3 हजार किलो हेरोइन बरामद की गई है. ये खेप देश में पकड़ी गई देश की सबसे बड़ी खेप थी. ये खेप भी अफगनिस्तान से टैल्कम पाउडर कह कर लाई गई थी. इसकी कीमत करीब 21 हजार करोड़ रुपए आंकी गई है. 


भारत के पश्चिमी तट पर इतनी बड़ी संख्या में ड्रग्स पकड़े जाने का मतलब है कि मुंबई के अलावा गोवा, गुजरात के तटीय शहरों में इनकी जबर्दस्त डिमांड है. यहां से ये देश के दूसरे इलाकों में भी सप्लाई की जाती है. एनसीबी के मुताबिक ड्रग डीलर्स को मुंबई इसलिए ज्यादा पसंद है क्योंकि यहां पर उनका माल दूसरे शहरों के मुकाबले ज्यादा कीमत पर बिकता है. पिछले साल एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि मुंबई में एक ग्राम कोकीन की कीमत 5 हजार रुपये हो चुकी है जो कि गोवा की तुलना में लगभग दोगुनी है. जहां तक बात एक किलो हेरोइन की है तो इसकी कीमत करीब 5 करोड़ रुपए है. इन्हें छोटे-छोटे पैकेट्स में रिटेल सप्लाई किया जाता है. मुंबई में कॉलेज स्टूडेंट्स से लेकर नौकरी करने वाले युवा पीढ़ी के लोग इनके बड़े क्लाइंट माने जाते हैं.  


भारत समेत पूरी दुनिया में जितने भी तरह के नशे के सामान आज बिक रहे हैं उनका कहीं न कहीं कनेक्शन अफगानिस्तान से जरूर मिलेगा. भारत में भी मिलने वाले ड्रग्स का बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान से ही आता है. जो लोग इसका धंधा करते हैं वो रातों-रात मालामाल हो जाते हैं इसीलिए इसे काला सोना कहा जाता है. युनाइटेड नेशंस ऑफ़िस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम्स के मुताबिक़ अफ़ीम का सबसे बड़ा उत्पादक देश अफ़ग़ानिस्तान है. दुनिया भर में अफ़ीम के कुल उत्पादन का 80 फीसदी से ज़्यादा हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान में होता है. अफ़ीम की प्रोसेसिंग कर ही हेरोइन जैसे ड्रग्स तैयार होते हैं जिसका नशा अफीम से भी ज्यादा होता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक ग़ैरक़ानूनी ढंग से ड्रग्स के कारोबार से तालिबान को कम से कम 100 से 400 मिलियन डॉलर यानी 750 करोड़ से से 3 हजार करोड़ रुपए के बीच सालाना आमदनी होती है.


भारत सरकार की Directorate of Revenue Intelligence के मुताबिक ड्रग्स तस्कर अक्सर अपने जान-माल की हिफाजत के लिए घुमावदार रास्तों से सफर करते हैं. भारत में भी जो ड्रग्स ड्र्ग्स भेजे जाते हैं उनमें हवाई अड्डों से ज्यादा समुद्री रास्तों का इस्तेमाल होता है. DRI के मुताबिक अफगानिस्तान से सड़क के रास्ते हेरोइन पाकिस्तान के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर लाई जाती है. इसके बाद पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट और आस-पास के इलाकों से छोटी-छोटी नौकाओं से ये ड्रग्स समुद्री रास्ते से अफ्रीकी देश मोजाम्बिक के तट पर पहुंचते है. इसके बाद वहां से दक्षिण अफ्रीका जैसे दूसरे अफ्रीकी देशों में पहुंचते हैं. इसके बाद इन अफ्रीकी देशों से ये तस्कर पश्चिम एशियाई देश कतर के रास्ते ड्रग्स को भारत लाते हैं. भारत में लैंड करने के बाद ये ड्रग्स मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, बैंगलूरू जैसे शहरों में भेजी जाती है. इसके बाद भारत के रास्ते ये ड्रग्स थाईलैंड, म्यांमार जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया तक सल्पाई की जाती है. इस पूरी ड्रग चेन में भले ही ड्रग्स का सोर्स अफगानिस्तान हो लेकिन पकड़े अक्सर अफ्रीकी ड्रग कार्टेल के लोग ही जाते हैं. उदहारण के तौर पर हाल ही में मुंबई एयरपोर्ट पर दक्षिण अफ्रीका से आई एक मां-बेटी दोहा के रास्ते भारत में ड्रग्स लाते हुए पकड़ी गई थीं. उनके पास से सुरक्षा एजेंसियों ने 25 करोड़ रुपए के ड्रग्स बरामद की थी.


अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद भारत में ड्रग्स का व्यापार बढ़ने की आशंका है क्योंकि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत की नसों में जहर उतारने के लिए ताक लगाए बैठी थी. ISI अफगानिस्तान में लंबे समय से मौजूद हैं. बरसों से अफगानिस्तान से वो कश्मीर के टेरर नेटवर्क के जरिए भारत में ड्रग्स भिजवाती है. जब भारत में वो ड्रग्स बिक जाते हैं तो उसी पैसे से ये लोग हथियार और गोला बारूद खरीदते हैं, आतंकी और जिहादी खरीदते हैं औऱ इन सबको भारत की तरफ रवाना कर देते हैं. 


एबीपी न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान की सरकार बनने के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते 6 रूट से ड्रग्स भारत भेजे जाने की साजिश चल रही है. ये ड्रग्स मुंबई, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और गुजरात के अलग-अलग इलाकों में लैंड कराने की योजना है. इसलिए अफगानिस्तान से होनेवाली टेरर फाइनेंसिंग को रोकने के लिए ड्रग रैकेट की कमर तोड़ना बहुत जरूरी है.


भारत में मुंबई के अलावा दिल्ली, गोवा, नॉर्थ-ईस्ट और पंजाब के युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रखा है. पंजाब में साल 2019 में 460 किलो हेरोइन बरामद की गई थी. लेकिन साल 2020 में 759 किलो हेरोइन बरामद की गई जिसने सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए. ये ट्रेंड काफी खतरनाक नजर आ रहा है.


ड्रग्स समस्या है, समाधान नहीं, प्रॉबलम है, सॉल्यूशन नहीं. ये जरा सी बात समझना क्या इतना मुश्किल है? अपने आस पास देखिए, क्या कहीं ऐसी एक मिसाल है जहां कोई ड्रग लेकर बर्बाद न हुआ हो? मैं और आप सिर्फ एक व्यक्ति नहीं हैं, हम भारत के वो कंधे हैं जिनपर देश को आगे बढ़ाने की उम्मीद टिकी है. इसीलिए ड्रग्स के खिलाफ बिना समझौता किए एक बड़ी लड़ाई लड़नी होगी. ऐसा होने पर ही हम एक गौरवशाली भविष्य की ओर बढ़ सकेंगे.


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