BLOG: मर्दानगी का डंका पीटती रहीं 2019 की टॉप हिंदी फिल्में
बॉलीवुड के लिए यह साल एकदम अलग रहा है. पिछले साल यहां मीटू की धूम थी, लेकिन एक बार फिर बॉलीवुड अपने पुराने ट्रैक पर लौट आया है.
बॉलीवुड में 2019 पिछले साल की तुलना में एकदम अलग रहा. पिछले साल वहां मीटू की धूम थी, इस साल बॉलीवुड अपने पुराने ट्रैक पर लौट आया. वही ट्रैक जो पिछले पचासों साल से हावी रहा है. मर्दानगी का वर्चस्व और हीरो का हीरोइज्म. स्त्रियां यहां सेकेंडरी रहती हैं और सिर्फ मेल गेज की वस्तु. 2019 की सभी टॉप ग्रॉसर्स में हीरो ही हीरो दिखाई दिए- औरतें उनकी मददगार रहीं, रास्ते का रोड़ा या दमन की शिकार. हैरानी की बात यह है कि महिला सशक्तीकरण की बात करते नहीं थकने वाला बॉलीवुड परदे पर भयानक मिसॉजनिस्ट हो जाता है.
इस साल बॉलीवुड की पहली सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म रही ऋतिक रोशन- टाइगर श्राफ की 'वॉर'. फिल्म ने 500 करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया. यह फिल्म दो रॉ एजेंट्स के आपसी रिश्तों की कहानी थी जो एक दूसरे से भिड़ते रहते हैं. इसकी एकमात्र हीरोइन वाणी कपूर ने तो खुद को फिल्म की मिस्टर इंडिया तक कह दिया था- यानी फिल्म में होकर भी वह फिल्म में कहीं नहीं थीं. उनकी कुल कमाई फिल्म का एक हिट गाना- घुंघरू था.
साल की दूसरी सबसे बड़ी हिट थी 'कबीर सिंह'. इसके बारे में आप जितना बताएं, कम ही है. यह फिल्म ऐलान करती थी कि औरतें मर्दों की बपौती हैं. 172 मिनट की मिसॉजनी...सिनेमा में स्त्री विरोधी तेवर कोई नई बात नहीं, पर कबीर सिंह इससे आगे निकल जाती है. वह औरतों के ऑब्जेक्टिफिकेशन को जायज भी ठहराती है. ऐसी दुनिया में विचरण करती है जहां औरतों के प्रति मर्दों की कोई जवाबदेही नहीं. दुखद यह था कि फिल्म के डायरेक्टर संदीप वांगा रेड्डी ने रिश्तों में हिंसात्मक हो जाने को लिबर्टी से जोड़ा और कहा कि इतनी लिबर्टी न मिले तो रिश्ते मजबूत कैसे होंगे. जाहिर सी बात है, यह लिबर्टी औरतों को कभी नहीं मिल पाती. पर जैसे कि निर्देशक अनुराग कश्यप ने कहा था- फिल्म को क्रिटिसाइज करने से क्या हासिल होगा क्योंकि भारतीय समाज ऐसे मर्दों से भरा पड़ा है जोकि कबीर सिंह जैसे ही सोचते हैं.
इस साल की तीसरी हिट 'उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक' 2016 में एलओसी पर आतंकवादी कैंपों पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर केंद्रित थी. फिल्म ने सत्तारूढ़ पार्टी की लोकप्रियता में चार चांद लगाए और साढ़े तीन सौ करोड़ से ज्यादा कमाए. हालांकि डेब्यूडेंट डायरेक्टर आदित्य धर ने फिल्म की दोनों महिला कैरेक्टर्स पल्लवी (यमी गौतम) और सीरत (कीर्ति कुल्हरी) के साथ कोई बुरा व्यवहार नहीं किया लेकिन वे सिर्फ नायक विहान (विकी कौशल) की मददगार रहीं. ऐसा ही 'भारत' में हुआ. 200 करोड़ से ज्यादा कमाने वाली 'भारत' विभाजन और पिता-पुत्र की कहानी थी. फिल्म में कैटरीना कैफ भी थीं और दिशा पटानी भी लेकिन सलमान खान की मौजूदगी में सिर्फ सलमान ही चमकते हैं.
2019 की कुल 13 टॉप ग्रॉसर्स में एक ही फिल्म महिला प्रधान थी- मिशन मंगल. मार्स ऑर्बिटर और इसरो के अभियान पर केंद्रित इस फिल्म की मजबूरी थी-औरतों को फिल्म में रखना. चूंकि यह मुख्य रूप से महिला वैज्ञानिकों का अभियान था. लेकिन फिर भी फिल्म में अक्षय कुमार आ गए. उनके आने के बाद- विद्या बालन, सोनाक्षी सिन्हा, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हरी... सब बेकार हो गईं. अक्षय कुमार ने एक बनाम पांच की रेस में सबको पछाड़ दिया. तापसी ने तो एक पत्रकार वार्ता में यहां तक कह दिया था कि अगर पांच महिला किरदार फिल्म में न होते तो भी फिल्म अक्षय कुमार के स्टार पावर के कारण अच्छा परफॉर्म करती. इसके बाद हाउसफुल 4, केसरी, टोटल धमाल, छिछोरे और सुपर थर्टी, सभी ने डेढ़ करोड़ से ज्यादा कमाए. केसरी और टोटल धमाल, अलग-अलग जॉनर की थीं. दोनों में नायिकाएं नायकों की हेल्पर्स ही थीं. छिछोरे में छह कॉलेज ब्वॉयज के साथ एक ही गर्ल थी- श्रद्धा कपूर. टाइटिल की तरह फिल्म में डबल मीनिंग डायलॉग्स और सेक्सिएस्ट जोक्स थे.
इनसे अलग सुपर 30, बिहार में कोचिंग इंस्टीट्यूट चलाने वाले आनंद कुमार पर बेस्ड थी. इसके डायरेक्टर विकास बहल पिछले साल मीटू की आंधी में बह गए थे. यौन शोषण का आरोप लगने के बाद उनकी पूरी टीम टूट गई थी. उन्होंने फिल्म में अपना जस्टिफिकेशन देने वाला सीन भी रखा, जब ऋतिक रोशन पर एक लड़की झूठा आरोप लगाती है. पर यह जस्टिफिकेशन विकास बहल के लिए फिजूल ही साबित हुआ था. उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, पर विकास को हिट बना दिया. दर्शक विकास के अतीत को भूल गए. बाकी की तीन फिल्मों में गली ब्वॉय और ड्रीम गर्ल भी नायकों की फिल्में थीं. ड्रीम गर्ल में तो हीरो आयुष्मान खुराना ही सबकी ड्रीम गर्ल बनते दिखते हैं. किसी हीरोइन की जरूरत ही नहीं. इसीलिए नुसरत भरुचा जैसी हीरोइन के लिए फिल्म में नाच-गाने और सजने-संवरने के अलावा कुछ नहीं था. गली ब्वॉय में कल्कि और आलिया की मौजूदगी के बावजूद पूरी फिल्म रणवीर सिंह के नाम थी.
इस लीग में 'साहो' जैसी फिल्म भी शामिल थी जिसके तमिल, मलयालम और तेलुगू वर्जन भी साथ ही साथ रिलीज किए गए थे. फिल्म प्रभास जैसे ऐक्टर की हिंदी सिनेमा में डेब्यू थी. यह नायक प्रधान फिल्म तो थी लेकिन इसमें एक बात बहुत आपत्तिजनक थी. फिल्म के नायक अशोक के लिए नायिका अमृता शुरुआत से ही ऑब्जेक्ट ऑफ डिजायर बनी रहती थी. पुलिस ऑफिसर समझा जाने वाला नायक एक महिला सहकर्मी अमृता को सिर्फ इसलिए काम पर रखता है क्योंकि वह सुंदर दिखती है. जब वे एक क्राइम सीन पर मिलते हैं तो अशोक मेल कलीग्स की बजाय जानबूझकर अमृता की मदद लेता है. असल जिंदगी में यह वर्कप्लेस पर सेक्सुअल हैरेसमेंट के बराबर होता है. पर फिल्म में नायक की इस हरकत पर कोई पुलिसवाला आपत्ति नहीं करता. यह खबर बहुत अच्छी है कि पिछले साल श्री रेड्डी जैसी नायिका के विरोध करने पर तेलुगू फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स ने सभी प्रोडक्शन हाउसेज़ के लिए कार्यस्थल पर यौन शोषण को नियंत्रित करने के लिए आईसी (इंटरनल कमिटी) बनाने का आदेश दिया है. वॉयस ऑफ विमेन नाम की एक संस्था भी बनी है जोकि हीरोइनों को सेक्सुअल हैरेसमेंट में बचाने का काम करेगी. पर रील लाइफ, रियल लाइफ से कभी प्रेरणा नहीं लेती.
तकलीफदेह फिल्म के कथानक नहीं, इनका सबसे ज्यादा कमाई करना है. जाहिर सी बात है, पिछले साल मीटू अभियान को ज्यादातर लोग भूल चुके हैं. ऐसी फिल्में बनाकर, बॉलीवुड बता रहा है कि दर्शकों को कितना नीचे घसीटा जा सकता है. यह दर्शकों के इम्तेहान का साल था और 2019 ने साबित किया है कि दर्शकों को फिर से रिविजन की जरूरत है.