बकरीद पर सोसाइटी में बरपा हंगामा, कोर्ट का फैसला और देशभर में बहस... उठ रहे ये 3 सवाल
मुंबई की दो हाईराइज सोसायटी में बुधवार 28 जून को बकरीद को लेकर हंगामा मचा. मीरा रोड की एक सोसायटी में मोहसिन नाम का व्यक्ति अपने लिए दो बकरे लेकर आया, जिसका सोसायटी के अधिकांश लोगों ने विरोध किया और काफी हो-हंगामे के बाद, पुलिस की दखल के बाद मोहसिन ने बकरों को सोसायटी से निकाला. इसी बीच मुंबई की ही एक दूसरी सोसाइटी नाथानी बिल्डिंग में भी बकरीद को लेकर मामला गरम हुआ था. सोसायटी में रहने वाले जैन समुदाय के लोगों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें बताया गया था कि बिल्डिंग में कुर्बानी के लिए 60 बकरे लाए गए हैं.
साथ ही जैन समुदाय के लोगों ने हाई कोर्ट से इस कुर्बानी पर रोक लगाने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने इस पर फैसला देते हुए कहा कि खुले में या बिना लाइसेंस वाली जगहों पर जानवरों को नहीं मारा जा सकता है. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि बिना इजाजत हाउसिंग सोसायटी में जानवरों को कत्ल करना पूरी तरह गलत है. वैसे, इससे पहले बीएमसी ने 7 हजार के करीब लाइसेंस भी केवल बकरीद के लिए जारी किए थे, लेकिन इस विवाद में आज सुबह सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर से लेकर पत्रकार तक कूद पड़े.
मजहब के नाम पर प्रतिक्रिया
मुंबई की खबर ब्रेक होते ही आरजे साएमा ने एक ट्वीट किया और किया और पूछा कि लोग क्या पागल हो गए हैं, जो किसी के पर्व-त्योहार में भी दखल दे रहे हैं? हालांकि, जब ट्विटर पर लोगों ने उनको
What? Has everyone lost it? Are these signs of a civilised society? The world would be laughing at us! Intolerance bordering on insanity! https://t.co/8VcmFE6UM9
— Sayema (@_sayema) June 28, 2023
वास्तविकता बताई और कहा कि वह कानून के खिलाफ कैसे बोल रही हैं, तो भी वह नहीं मानीं और दूसरे ट्वीट में उन्होंने पूछ लिया कि किसी को कैसे पता कि वह बकरे कुर्बानी के लिए ही मोहसिन ले जा रहा था और यह किस कानून में लिखा है कि आप बकरे फ्लैट तक नहीं ले जा सकते? पत्रकार आरफा खानम ने तो अपने ट्वीट में इसे भारत के मुसलमानों के लिए ही काला दिन बता दिया और कहा कि भारतीय
It is the darkest hour for India’s Muslims.
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) June 28, 2023
Their lives have become dangerously politicized to a point that they can not pray in peace or celebrate their festivals in peace.
Life of an Indian Muslims is a life without dignity, a second class citizenship in their own country.
मुसलमानों की जिंदगी बेइज्जती की है, दूसरे दर्जे के नागरिक की है. इसके साथ ही ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर बहुतेरे लोगों ने पक्ष-विपक्ष में प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी, लेकिन जरा ठहरकर अब इस मामले की तह में जाने की कोशिश करें.
कानून से समस्या क्यों है?
बड़ी बात यह है कि राह चलते आम लोगों ने ही नहीं, इंफ्लुएंसर्स ने भी केवल इस बात के लिए भारत को, अपने देश को ही गाली दे दी कि कानून उन्हें एक निश्चित जगह पर जानवर हलाल करने को कह रहा था. बीएमसी ने 7000 लाइसेंस पहले से निकाले हैं, यानी पूरी मुंबई में आपके पास पूरे 7 हजार विकल्प हैं, जहां आप जानवर हलाल कर सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद आपको उस सोसायटी में ही जानवर हलाल करना है, जहां "वास्तविक अल्पसंख्यक" यानी जैन समुदाय रहता है. यह पहला उदाहरण भी नहीं है. तमाम छोटी-बड़ी मस्जिदों के रहने के बावजूद सड़क पर नमाज पढ़ने की कौन सी जिद है, जिसकी मुसलमानों का पवित्र ग्रंथ भी इजाजत नहीं देता. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में भी यही कहा है कि जहां कहीं भी बीएमसी की अधिकृत जगह है, पशुओं को वहीं हलाल किया जाए.
यूरोप हो या अमेरिका, पश्चिमी देश हों या अरब के मुल्क, हरेक जगह कत्लगाहों और निर्देशित जगहों पर ही पशुओं को हलाल किया जाता है, जिसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि पशुओं को खुलेआम कत्ल करना, उनकी खाल छीलना वगैरह अन-हायजीनिक है औऱ कई तरह की बीमारियों को न्योता देता है. यह समाज की सुरक्षा के लिए ही है और इसका जबरन मुद्दा बनाना जायज नहीं कहा जा सकता है. उसी तरह खुले में नमाज की प्रैक्टिस को भी ठीक नहीं ठहराया जा सकता, ना ही किसी ऐसे संस्थान में जबरन हिजाब को थोपना, जो शैक्षणिक संस्थान है और निजी संस्थान हैं, वहां इस तरह की जिद को बेमानी ही कहा जाएगा.
'घेटो' मानसिकता और सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स जिम्मेदार
दरअसल, मुस्लिम समुदाय एक उम्मत के कॉन्सेप्ट में मानता है, उसके लिए देश की सीमाएं बहुत मायने नहीं रखतीं. उसके लिए मजहब कभी भी देश से बड़ा है, हरेक चीज से बड़ा है. इसीलिए आप वंदेमातरम् पर इतना बवाल देखते होंगे, क्योंकि उसमें भारतमां के सामने सर झुकाने की बात है, और सच्चा मुसलमान तो बस खुदा के सामने झुकेगा. बहरहाल, इसके साथ ही बहुसंख्य मुसलमानों के दिमाग में अभी भी ये फितूर कायम है कि वे इस देश के शासक हैं, क्योंकि मुगलों ने 300 साल (करीबन) इस देश पर राज किया था. आज भी, मुसलमान अपने बच्चों के नाम अकबर, तैमूर, जहांगीर, गाजी, बाबर, महमूद वगैरह रखते हैं तो उसके पीछे यही मानसिकता काम करती है.
दूसरे, हिंदुओं के साथ जो गुलामों वाला रिश्ता रहा और जिस तरह से जजिया वसूला गया, उनको दोयम दर्जे का नागरिक बना कर रखा गया, वही मानसिकता कहीं न कहीं मुसलमानों के एक बड़े वर्ग में जिंदा है. यही मानसिकता पाकिस्तान को पैदा करती है, यही मानसिकता किसी तरह के कानून को न मानने को कहती है औऱ चूंकि अधिकांश मुस्लिम समुदाय एक घेट्टो में रहता है, तो वह पल-पल बदलती दुनिया से वाकिफ भी नहीं हो पाता है. बहुत के लिए दुनिया अब भी चपटी है और सूरज ही पृथ्वी के चारों ओर घूमता है. उम्मत यानी समुदाय की एकता उसे यह भी ताकत देती है कि वह अकेला भी किसी से भिड़ जाता है, क्योंकि उसको पता है कि बाद में पूरी भीड़ तो जमा होगी ही.
क्या है समाधान?
इसका सीधा समाधान ये है कि मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद को बढ़ाया जाए. उनके भीतर से ऐसे कम्युनिटी लीडर्स पैदा किए जाएं, जो उन्हें जहालत से निकाल कर प्रोग्रेसिव बना सकें. जो उनको बता सकें कि मजहब का असल मतलब किसी दूसरे को तंग करना नहीं, बल्कि सबके साथ मिल-जुलकर रहना है. भले ही पहले क्रूसेड हुआ हो, 200 वर्षों तक लड़ाइयां चली हों, भले ही हमने विभाजन का दर्दनाक मंजर सहा है, लेकिन अब मिल-जुलकर रहने के सिवा कोई उपाय नहीं है. दिन ब दिन उनकी कट्टरता दुनिया को उनके लिए छोटा कर रही है. केवल भारत की ही बात नहीं है, यूरोप हो, अमेरिका हो, चीन हो या जापान हो, हरेक जगह उनकी कट्टता उनको पर्याप्त बदनामी दे चुकी है. उनका मजहब अपनी जगह ठीक हो सकता है, लेकिन इस दुनिया में वैसे दर्जन भर संप्रदाय और धर्म और भी हैं. दुनिया को एकरंगा करने की उनकी कोई भी तरकीब उनको औऱ भी अधिक हाशिए पर ही ले जाएगी, क्योंकि बागीचे में जितने तरह के फूल होंगे, दुनिया उतनी खूबसूरत होगी.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]