मान लीजिये कि आप अपना कोई धंधा शुरु करना चाहते हैं और संबंधित उद्योग विभाग का ऑफिसर आपसे लाइसेंस जारी करने की एवज में पांच लाख रुपये की रिश्वत मांगता है. आप यह पैसा नहीं देना चाहते क्योंकि आप ईमानदारी के साथ अपना उद्योग शुरु करना चाहते हैं. अब आप उस रिश्वतखोर ऑफिसर का ट्रेप करवाना चाहते हैं लेकिन आपके पास तो रिश्वत देने के लिए पांच लाख रुपये भी नहीं है. आप पुलिस के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से संपर्क करते हैं लेकिन ब्यूरो कहता है कि हम उस ऑफिसर को ट्रैप भी कर लेंगे और रंगे हाथ गिरफ्तार भी कर लेंगे लेकिन रिश्वत देने के लिए पांच लाख रुपये की राशि का जुगाड़ आपको ही करना पड़ेगा. ऐसे में आप क्या करेंगे.


इस का जवाब हम आपको बाद में देंगे. अभी एक दूसरी परिस्थिति की बात करते हैं. आप के पास पांच लाख रुपए भी हैं. आप उस पैसे से भ्रष्ट ऑफिसर को फंसाना भी चाहते हैं जो आपसे उद्योग शुरु करने के लिए रिश्वत मांग रहा है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो आपका साथ भी दे रहा है. आपको भी पूरा यकीन है कि ब्यूरो ट्रेप करेगा और वह अधिकारी रंगे हाथ पकड़ा जाएगा लेकिन फिर भी आप हिचकिचा रहे हैं. क्योंकि वह ऑफिसर तो पकड़ा जाएगा लेकिन आपका पांच लाख रुपया फंस जाएगा. अदालत की संपत्ति हो जाएगा तब तक के लिए हो जाएगा जब तक कि आप के मामले का निपटारा नहीं होता. अब केस तो केस है और अदालत तो अदालत है न जाने कितने महीने , कितने साल चले. इस बीच ब्यूरो में ही ईमानदार ऑफिसर की जगह कोई बईमान ऑफिसर आ गया तो आपका केस किस दिशा में जाएगा तय नहीं.


दोनों ही स्थितियों में आप क्या करेंगे. पहले केस में पांच लाख रुपये नहीं होने के कारण आप मनमसोस कर रह जाएंगे, कोई दूसरा काम शुरु कर देंगे जहां रिश्वत इस पैमाने पर नहीं देनी पड़े. दूसरे केस में आप अपना पांच लाख रुपया लंबे समय तक के लिए अटकाना नहीं चाहते लिहाजा चुप हो जाएंगे. लेकिन अगर आपको भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो पांच लाख रुपये अपनी तरफ से दे तो आप क्या कहेंगे. आप फटाफट रुपये लेंगे, भ्रष्ट ऑफिसर को ट्रेप करवाएंगे और अपना उद्योग शुरु कर पाएंगे. दूसरे केस में अगर ब्यूरो आपसे कहे कि आप पांच लाख रुपए अपनी तरफ से रिश्वत दे दें और ट्रेपिंग के बाद जब पुलिस चालान पेश करेगी तो आपको आप का पैसा वापस मिल जाएगा. ( ब्यूरो आप का केस अदालत में लड़ती रहेगी ). यह पैसा ब्यूरो आपको खुद के फंड से देगी.


आप कहेंगे कि कमाल है. भ्रष्ट ऑफिसरों को पकड़ने की दिशा में ये सबसे अच्छी पहल है. तो यह काम किया है राजस्थान में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने. ब्यूरो के डीजी हैं वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बी एल सोनी. ब्यूरो ने इसके लिए एक करोड़ रुपये का रिवाल्विंग फंड बनाया है. अगर आप गरीब हैं और आपके पास ट्रैपिंग के लिए दी जानी वाली रिश्वत का पैसा नहीं है तो ब्यूरो आपको अपनी तरफ से पैसा देगा. इसी तरह अगर आप अपनी जेब से ट्रेपिंग के लिए रिश्वत के पैसे का इंतजाम करते हैं तो यह पैसा कोट केस डिसाइड होने तक फंसा नहीं रहेगा बल्कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो भ्रष्ट ऑफिसर के खिलाफ चालान पेश करने के साथ ही आपकी रकम लौटा देगा.


राजस्थान भ्रष्टाचार ब्यूरो के डीजी बी एल सोनी का कहना है कि एक करोड़ के इस तरह का फंड बनाने का प्रस्ताव उनकी तरफ से अशोक गहलोत सरकार को भेजा गया था जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है. अब ज्यादा बड़ी संख्या में भ्रष्टाचार से त्रस्त लोग सामने आ सकेंगे. खासतौर से ऐसे लोग जिनके पास रिश्वतखोर ऑफिसरों को ट्रेप कराने का पैसा ही नहीं रहता था. दरअसल एक ईमानदार आदमी की प्रगति की राह में सबसे बड़ी रुकावट भ्रष्टाचार ही है. यह भ्रष्टाचार एक ईमानदार आदमी के आगे बढ़ने के रास्ते को रोक लेता है, उसके भविष्य को बर्बाद कर डालता है, उसे कुछ नया करने से रोकता है , उसे आगे बढ़ने का मौका नहीं देता है. और यही भ्रष्टाचार एक भ्रष्ट को आपसे आगे ले जाता है , आप के हक को छीन कर वह आप पर ही हावी हो जाता है.


ऐसे में राजस्थान पुलिस के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के डीजी बी एल सोनी की नई पहल का स्वागत किया जाना चाहिए. दूसरे राज्यों की पुलिस भी इसका अनुसरण कर सकती है. दिलचस्प बात है कि एक करोड़ के रिवाल्विंग फंड के लिए बीएल सोनी को राजस्थान सरकार से पैसा मांगना भी नहीं पड़ा है. दरअसल ब्यूरो के पास करीब चार करोड़ रुपया सरकारी मालखाने में पड़ा है. एक करोड़ 12 लाख रुपये रंगेहाथ पकड़े गये अधिकारियों से मिले तो दो करोड़ अस्सी लाख रुपए घरों में छापेमारी और आकस्मिक जांच से मिले. यानि रिश्वत का पैसा ही रिश्वतखोरों को पकड़ने के काम आ रहा है.





(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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