तकरीबन 90 बरस तक गुलाम भारत पर राज करने वाले ब्रिटिश साम्राज्य ने कभी ये सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें अपने ही देश की राजनीति का ऐसा रंग भी देखने को मिलेगा. ब्रिटेन के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि पूरी शिद्दत व मेहनत के बाद चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाली महिला को महज़ 45 दिन के भीतर ही इस्तीफ़ा देने के लिए खुद उनकी ही पार्टी के सांसदों ने मजबूर कर दिया.
अपना इस्तीफ़ा देने से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने कहा था कि "मैं एक योद्धा हूं और पीएम पद को छोड़ने वाली नहीं हूं.'' लेक़िन महज़ चौबीस घंटे के भीतर ही उन्होंने पद की ताकत को ताक पर रखते हुए लड़ने की बजाय अपनी हार को कबूलना पसंद किया. उनके इस्तीफे को लेकर ब्रिटेन की राजनीति और मीडिया में तमाम तरह की बातें हो रही हैं. लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि लिज ट्रस ने इतना बड़ा फैसला लेकर राजनीति में ईमानदारी औऱ खुद्दारी की एक मिसाल पेश की है. इसका सबूत ये है कि अपने इस्तीफे का एलान करते ही उन्होंने साफगोई से कह डाला कि "मैंने संकट के समय ये पदभार संभाला था, लेकिन जनादेश पर अमल नहीं कर पाई."
उन्होंने ये भी कहा कि जिस दौर में उनका चुनाव प्रधानमंत्री के पद पर हुआ वो "आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अस्थिरता का दौर" था. मैं मानती हूं कि जिस तरह की स्थिति है उसमें कंज़र्वेटिव पार्टी ने जिस मैन्डेट के तहत मेरा चुनाव किया था, उसे मैं पूरा नहीं कर सकूंगी."
बता दें कि एक दिन पहले ही ब्रिटेन की गृहमंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने भी इस्तीफा दे दिया था जो भारतीय मूल की हैं. वे पीएम लिज़ ट्रस सरकार की नीतियों से नाराज़ थीं और इस बारे में उन्होंने खुलकर आवाज भी उठाई थी. लेकिन सच ये भी है कि ब्रिटेन में ही ऐसा मुमकिन है कि सरकार गृह मंत्री ही अपने पीएम के खिलाफ बोलने की हिम्मत करें.
हम अपने देश की राजनीति में शुचिता-ईमानदारी का तो खूब ढिंढोरा पिटते हैं लेकिन चिराग़ लेकर तलाशने से भी हमें पिछले 75 बरस से आज तक ऐसा कोई हुक्मरान नजर नहीं आयेगा जिसने जनादेश की उम्मीदों पर खरा न उतरने की वजह से खुद ही अपना पद छोड़ने का ऐलान किया हो. लेकिन महज़ डेढ़ महीने के भीतर ही अगर ब्रिटेन के पीएम को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा है तो उससे पता चलता है कि वहां लोकतंत्र की जड़ें न सिर्फ गहरी हैं बल्कि सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति भी जनता के प्रति उतना ही जवाबदेह है. यही कारण है कि अपनी पार्टी के चुनावी वादों को पूरा न कर पाने की जिम्मेदारी खुद पर लेते हुए वह कुर्सी से चिपके रहने को सबसे बड़ा अपमान समझता है और उससे बचने के लिए लिज़ ट्रस जैसी महिला ही सत्ता का मोह ठुकराने की हिम्मत जुटाती हैं.
जाहिर है कि ब्रिटेन में सियासी संकट पैदा हो गया है और अब सवाल ये है कि वहां अगला पीएम कौन होगा. हालांकि जब तक नया प्रधानमंत्री नहीं चुन लिया जाता है तब तक वो कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनी रहेंगी. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक ब्रिटेन में अब अगले हफ्ते प्रधानमंत्री का चुनाव हो सकता है. सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या अब वहां आम चुनाव होंगे. जानकारों के मुताबिक जब कोई प्रधानमंत्री अपना इस्तीफा देता है तो देश में अपने आप आम चुनाव नहीं हो जाते. उदाहरण के लिए, टेरेसा ने 2016 में जब डेविड कैमरन से प्रधानमंत्री का दायित्व संभाला था तो उन्होंने तत्काल चुनाव नहीं कराने का फैसला किया था. यदि नए प्रधानमंत्री तय समय से पहले चुनाव न कराने का निर्णय लेते हैं तो देश में जनवरी 2025 से पहले अगला चुनाव होने की संभावना नहीं है. हालांकि ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी की नेता कीर स्टारर ने अब आम चुनाव कराये जाने की मांग की है.
वैसे लिज ट्रस के इस्तीफा देते ही वहां नया लीडर चुनने की प्रतियोगिता शुरू हो गई है. नया पीएम बनने के दावेदारों ने पार्टी सांसदों से समर्थन पाने की कवायद शुरू कर दी है. बता दें कि पीएम बनने की रेस में भारतीय मूल के ऋषि सुनक का नाम सबसे आगे है. सुनक को हराकर ही लिज़ ट्रस प्रधानमंत्री बनी थीं. सुनक के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, पैनी मॉरडेंट, बेन वालेस के नाम की भी चर्चा में है. कहा जा रहा है कि सुनक अभी भी पार्टी के सांसदों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं. दरअसल कंजर्वेटिव पार्टी के नियमों में एक नए नेता को पीएम बनने के बाद कम से कम एक साल तक आधिकारिक प्रक्रियाओं के माध्यम से चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसलिए सांसदों ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के पत्र सौंपे हैं.
अगर इस तरह के बहुत सारे पत्र मिलते हैं तो 1922 समिति के अध्यक्ष- सर ग्राहम ब्रैडी- नेतृत्व चुनाव प्रक्रिया के नियमों को बदल सकते हैं, जिससे दो उम्मीदवारों की एक शॉर्टलिस्ट तैयार की जाएगी. फिर इन्हीं में से किसी एक को अगला प्रधानमंत्री बनना होगा. तब टोरी सांसद तय करेंगे कि पार्टी के सदस्यों की मदद के बिना कौन पीएम होगा और कौन डिप्टी पीएम होगा.
कुछ विदेशी मीडिया के मुताबिक, ये भी संभव है कि टोरी पार्लियामेंट्री पार्टी लीडरशिप के लिए एक ही उम्मीदवार को आगे लेकर आए. लेब और लिबरल डेमोक्रेट उस लिस्ट में शामिल हैं जो देश में जल्दी आम चुनाव चाहते हैं. हालांकि, सरकार जनवरी 2025 से पहले एक और चुनाव कराने के लिए बाध्य नहीं है.
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