पिछले दिनों ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने इंग्लैंड में सभी विद्यार्थियों के लिए 18 वर्ष की आयु तक गणित का अध्ययन सुनिश्चित करने की अनिवार्यता पर जोर दिया और विशेषज्ञों की एक टीम बनाकर मौजूदा पाठ्यक्रम की समीक्षा की घोषणा की. उनकी योजना के तहत, गणितज्ञों, शिक्षाविदों और व्यापार प्रतिनिधियों से बना एक नया विशेषज्ञ समूह 16 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए आवश्यक मुख्य गणित सामग्री की पहचान करेगा और पढ़ाने की संभावना तलाशेगा.
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दन स्क्रीन अकादमी में एक भाषण देते हुए, सुनक ने कहा कि ब्रिटेन में गणित नहीं जानने के बारे में मज़ाक करना सामाजिक रूप से स्वीकार्य है, लेकिन अब इसे बदलना होगा. लंबी अवधि में यूके की अर्थव्यवस्था को विकसित करने की अपनी योजना का हवाला देते हुए सुनक ने कहा कि भविष्य का यूके खराब न्यूमरेसी की अनुमति नहीं दे सकता, जिससे अर्थव्यवस्था को एक वर्ष में ही दसियों अरब का नुकसान उठाना पड़े.



नस्ल के आधार पर खुद को सर्वश्रेष्ठ समझनेवाले समाज की कमजोर नब्ज टटोलकर उसका निदान बतानेवाला शख्स कोई और नहीं, भारत का ही एक सपूत है. यह उसी भारत का सपूत है जिसने दुनिया को शून्य का अनूठा वैज्ञानिक उपहार दिया. जब दुनिया बर्बरता के अंधेरे में भटक रही थी, उस समय भी भारत की गोद में विकसित सभ्यतायें अठखेलियां कर रही थीं और यहां के मनीषी ज्ञान, विज्ञान साहित्य और दर्शन के क्षेत्रों में साधनारत थे. यह उन्हीं साधनाओं का परिणाम है कि प्राचीन भारत ने गणित, विज्ञान, और दर्शन के क्षेत्रों में ऐसे ऐसे आविष्कार किये, जो मानव समाज के विकास में मील का पत्थर साबित हुए.


प्राचीन भारत के जिस मनीषी ने शून्य से दुनिया का परिचय कराया, वे थे 5वीं सदी के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री स्वनामधन्य आर्यभट्ट. शून्य की खोज के बाद ही गणित की अवधारणा समने आई. यह आर्यभट्ट के भगीरथ प्रयास का ही परिणाम था, जिससे जोड़, घटाव जैसी गणितीय क्रियाविधियां अस्तित्व में आईँ. शून्य की अवधारणा और स्थान मूल्य प्रणाली में इसके एकीकरण ने केवल दस प्रतीकों का उपयोग कर संख्याओं का लिखना मुमकिन बनाया, चाहे वह संख्या कितनी ही बड़ी क्यों ना हो.


इतना ही नहीं, आयर्भट्ट की अमर रचना आर्यभटीयम ने परंपरा में जकड़े तत्कालीन समाज के सामने एक क्रांतिकारी सिद्धांत का प्रतिपादन किया. यह सिद्धांत है---हीलियोसेंट्रिक थ्योरी. इसके मुताबिक धरती गोल है, जो अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चक्कर लगाती है, जबकि उस समय की पारंपरिक अवधारणा धरती को अचला और सूर्य को चलायमान बताती थी.



कहने का तात्पर्य ये है कि “White Man’s Burden” के स्वघोषित सिद्धांत से खुद को श्रेष्ठ माननेवालों को, हकीकत में ज्ञान विज्ञान की दुनिया के सबसे ज्येष्ठ देश के एक सपूत ने गणितीय सूत्रों के सहारे लक्ष्य संधान का गुरु मंत्र देने का जो बीड़ा उठाया है, वह अस्वाभाविक नहीं है. भारत सदियों से दुनिया का मार्गदर्शन करता रहा है, और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की यह पहल उसी श्रृंखला की अगली कड़ी प्रतीत होती है.



[े आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]