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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

ब्रिटिश जमाने का प्रेस कानून 'ऑनलाइन' के बहाने सख्त हो रहा है, बहस से दूर रहे विपक्षी सांसद

राज्यसभा में बिना शोरगुल के प्रेस पंजीयन का कानून ब्रिटिश जमाने के कई प्रावधानों को पीछे छोड़ दिया है और मीडिया पर केन्द्र के नियंत्रण को सख्त करने की व्यवस्था की गई है. यहां तक कि पत्र पत्रिकाओं को चलाने की स्वतंत्रता पर भी अंकुश बढ़ा है. मजे कि बात यह भी है कि इस विधेयक पर विमर्श में केवल उन्हीं दलों के प्रतिनिधियों ने सदन में हिस्सा लिया जो कि नरेन्द्र मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में एकजुट हुई हैं. 

प्रेस और नियत कालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक

केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार नए तरह के राष्ट्रवाद की आड़ में ब्रिटिश जमाने में बने कानूनों को बदल रही है. इनमें प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधिनियम 1867 को बदलने के प्रयास को शामिल माना जा सकता है. केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने राज्य सभा में नया 'प्रेस और नियत कालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023' प्रस्तुत करते हुए इसके तीन कारण बताए हैं. पहला बिंदु यह है कि हमें औपनिवेशिक मानस से बाहर निकल कर आना है.उस समय छोटी-छोटी गलतियों को भी अपराध मान कर किसी को जेल में डाल दिया जाता था, दंड दिए जाते थे. नए प्रयास के तहत इस कानून में आपराधिक दंड की व्यवस्था को खत्म करने के लिए उचित कदम उठाए हैं.

सूचना एवं प्रसारण मंत्री के अनुसार ब्रिटिश शासन के दौरान पांच ऐसे प्रावधान किए गए थे, जिसके तहत एक छोटी सी गलती भी हो जाती थी, तो फाइन के साथ-साथ आपको 6 महीने की जेल भी हो जाती थी.

अब केवल एक ही केस में ऐसा होता है, जहां आपने अगर बगैर अनुमति के प्रेस चलाई, पत्रिका निकाली, आप पब्लिशर बने और आपने सूचना नही दी, तो आपको नोटिस दिया जाता है कि 6 महीने के अंदर आप इसको बंद कीजिए, क्योंकि 6 महीने का समय पर्याप्त होता है. अगर उस समयावधि में उसे बंद नहीं किया जाता है, तब कार्यवाही करके जेल में डाला जा सकता है.

इसके साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने इस बात पर जोर दिया है कि मौजूदा कानून के तहत किसी पत्र पत्रिका को शुरु करने के लिए रजिस्ट्रार के समक्ष पत्र पत्रिका के शीर्षक और पंजीकरण के लिए आठ सीढियों से गुजरना पड़ता था. नए विधेयक में केवल एक बार में ही पूरी प्रक्रिया पूरी करने का ऑन लाइन प्रावधान किया गया है. 

चर्चा में सत्ताधारी खेमे के सदस्य ही हुए शामिल

राज्य सभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान दर्जन भर सदस्यों ने हिस्सा लिया. ये सारे सदस्य भारतीय जनता पार्टी के अलावा उन पार्टियों के हैं जो कि नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला लिया है और सत्ताधारी खेमे के साथ जुड़े हैं. 

इनमें सुलता देव बीजू जनता दल , वी विजयसाई रेड़ी   एवं एस नारायण रेड़्डी (वाईएसआर कॉग्रेस) नरेश बंसल, जी वी एल नरसिम्हा राव, सीमा दिववेदी, श्री पबित्र मार्गेरिटा ( भाजपा) एवं मनोनीत सदस्य राकेश सिंन्हा,जी के वासन( तमिल मनीला कॉग्रेस) , कनकमेडाला रवीन्द्र कुमार( तेलुगू देशम) और कार्तिकेय शर्मा ( हरियाणा) और डा. एम. थंबीदुरई ( एआईएडीएम के) शामिल है. मजे कि बात है कि सभी वक्ताओं ने इस विधेयक का एक दूसरे से बढ़ चढ़कर समर्थन किया. इसके साथ इस मौके का लाभ उठाते हुए प्रेस की आजादी के खिलाफ कॉग्रेस के रुख और दक्षिण पंथी विचारधारा की पत्र पत्रिकाओं एवं पत्रकारों की प्रेस की आजादी  के लिए संघर्षौं को प्रस्तुत किया. 

चर्चा में नए राजनीतिक प्रावधान पर ज़ोर नहीं

'प्रेस और नियत कालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023'  में पत्र पत्रिकाओं के शीर्षक के आवंटन और पंजीकरण के लिए ऑन लाइन करने की प्रक्रिया पर ही पूरी चर्चा केन्द्रित देखी गई. नए कानून में ऑनलाइन की नई तकनीक को स्वीकार करने के बजाय जो नए राजनीतिक प्रावधान किए गए हैं, उनपर चर्चा शून्य थी.

भारतीय गणतंत्र का राजनीतिक आधार नागरिक अधिकारो की स्वतंत्रता और केन्द्र राज्य संबंध है. इन दोनों ही राजनीतिक पहलू पर नए विधेयक में जो प्रावधान किए गए हैं, उन पर गौर करने के लिए देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों की भूमिका सामने नहीं आई.

जिला अधिकारियों की भूमिका गौण

भारत में पत्र पत्रिकाओं के कुल 1,64,285  शीर्षक स्वीकृत हैं इनमें 1,49,266 प्रकाशन पंजीकृत हैं.  नये विधेयक में राज्यों  में जिला अधिकारियों की भूमिका गौण की गई. राज्यों को केवल सूचना केन्द्र में तब्दील कर दिया गया है.  “डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के सामने ऑनलाइन प्रक्रिया करनी है, आरएनआई  में  भी ऑनलाइन करना है. अगर 60 दिन के अंदर डीएम ने जवाब नहीं दिया, तो आरएनआई  का जो हमारा रजिस्ट्रार जनरल है, प्रेस रजिस्ट्रार है, वह अपनी मर्जी से उनको अनुमति दे सकता है."

सूचना एवं प्रसारण मंत्री के अनुसार ब्रिटिश शसाकों की मंशा यह थी कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के माध्यम से ही कोई भी प्रेस चले. प्रेस हो या पब्लिशर हो, उन सबके ऊपर एक कंट्रोल बना कर रखने के लिए इस तरह का कानून बनाया गया था लेकिन आज राज करने की नहीं, बल्कि कर्तव्य निभाने की बात की जाती है. डी.एम. के रोल को थोड़ा कम किया गया है और उनका पत्र पत्रिकाओं के नाम और पंजीयन में रोल बहुत कम हुआ है,लेकिन उनके पास जो जानकारी जानी है, वह अभी भी पूरी जायेगी.

भारत में समाचार पत्रों के पंजीयक की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है. इस विधेयक में रजिस्ट्रार को जो अधिकार दिए गए हैं, उनके बारे में ,सूचना मंत्री ने सदन में जो जानकारी दी है, वह निम्न है:

  • मान लीजिए कि आपने दैनिक समाचार पत्र कहा, तो आपको 365 दिन छापने हैं. अगर आप 50 परसेंट, यानी उसके आधे दिन भी नहीं छापेंगे, तो वह आपके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, उसको बंद करने की कार्रवाई कर सकता है. इसी तरह से अगर आपने 15 दिन में एक बार छापना है और आप उसे नहीं छाप रहे हैं, तब भी प्रेस रजिस्ट्रार जनरल आपके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है.
  • सर्टिफिकेट को कैंसल कैसे करेगा, उसके बारे में भी जैसे मैंने कहा कि आप कहीं पर एक नाम से छाप रहे हैं, वह नाम उसी राज्य में किसी और के पास है या अन्य राज्य में किसी और के पास है, तब भी उसके पास यह अधिकार है कि वह उसको खत्म करे या किसी और भाषा  में भी किसी और राज्य में है, वैसा ही या मिलता-जुलता नाम है, तब भी उसको वह कैंसल कर सकता है.राज्य या यूनियन टेरिटरी कहीं पर भी हो. 
  • प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के पास यह पावर है कि वह किसी नियतकालिक  को पांच लाख रुपये तक की सजा भी दे सकता है, लेकिन वह बेहद गंभीर मामले में है, लेकिन शुरू में तो 10 हज़ार, 20 हज़ार तक पहली चूक के लिए  सज़ा है और अधिकतम गलतियां करने , अगर वह बार-बार गलतियां  करता है, तो उसको हम दो लाख रुपये तक करने जा रहे हैं. यह हमने पब्लिशर के लिए किया है.

ब्रिटिश जमाने के कानून से अलग नागरिकों को पत्र पत्रिकाएं निकालने से रोकने की जो व्यवस्था नहीं है वह नए विधेयक में की गई है. नए विधेयक में नागरिकों को पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशन से लिए रोकने के लिए जो प्रवाधान किए गए हैं उनमें यह भी शामिल है कि  मालिक प्रकाशक को कोई न्यायालय द्वारा सजा सुना दी जाती है , किसी  आतंकवादी कार्रवाई में या किसी ऐसी गतिविधि में, जो देश के खिलाफ हो, तब उसकी वजह से भी रजिस्ट्रार लाइसेंस को रद्द कर सकता हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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