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बुलंदशहर का आंखों देखा हाल- हिंसा के वक्त से सुलग रहे हैं कुछ सवाल?

जो कुछ भी बुलंदशहर में हुआ उससे मुझे अधिक हैरानी नहीं हुई, बस दुख इस बात का है कि यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह समेत दो लोगों की जान इस बवाल में चली गई. जो तस्वीरें टीवी और सोशल मीडिया पर देखने को मिलीं वो डरा देने वाली हैं.

जो कुछ भी बुलंदशहर में हुआ उससे मुझे अधिक हैरानी नहीं हुई, बस दुख इस बात का है कि यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह समेत दो लोगों की जान इस बवाल में चली गई. जो तस्वीरें टीवी और सोशल मीडिया पर देखने को मिलीं वो डरा देने वाली हैं. बुलंदशहर का रहने वाला हूं तो दुख इस बात का भी है कि शहर का नाम गलत वजह से सुर्खियां बना.

रविवार की सुबह मैं बुलंदशहर के लिए निकला था. निकलने से पहले मेरी बात मेरठ के स्थानीय पत्रकार नरेंद्र प्रताप से हुई जो बुलंदशहर में ही किसी खबर की कवरेज के लिए मौजूद थे. उन्होंने बताया कि मेरठ से बुलंदशहर आने में उन्हें साढ़े पांच घंटे का वक्त लगा. उन्होंने कहा कि भीड़ बहुत है, मत आओ. लेकिन मैं खुद देखना चाहता था कि भीड़ आखिर है कितनी?

दरअसल बुलंदशहर में करीब 15 लाख मुसलमान जमा थे जो दुनिया भर से आए थे. दिवाली से भी पहले से इस कार्यक्रम की तैयारियां हो रही थीं. इसे इत्जिमा कहा जाता है. इसमें मुसलमान धर्म संबंधित चर्चा करते हैं. चर्चा इस बात की भी थी कि ये कार्यक्रम भोपाल में होना था लेकिन वहां चुनाव थे जिसके कारण इसे बुलंदशहर में किया गया.

बुलंदशहर का आंखों देखा हाल- हिंसा के वक्त से सुलग रहे हैं कुछ सवाल?

मैं सोच रहा था कि शहर बहुत छोटा है और ऐसे में ये 20 लाख लोग कहां समाएंगे. साथ ही 2019 में होने वाले चुनावों के मद्देनजर भी ये कार्यक्रम महत्वपूर्ण लग रहा था. आंकलन ये भी करना था कि इस कार्यक्रम के सियासी मायने क्या हो सकते हैं? मैं जब नोएडा से बुलंदशहर के लिए चला तो ये क्लियर था कि बहुत भीड़ है लेकिन आगे मैंने जो देखा उसने मुझे हैरान कर दिया.

मैं नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे से परीचौक पहुंचा. वहां भारी संख्या में बुलंदशहर जा रहे मुसलमान जमा थे. परीचौक से दनकौर तक काफी भीड़ थी. अमूमन इस सड़क पर ट्रैफिक काफी स्मूद होता है लेकिन हर गाड़ी पर इज्तिमा का पोस्टर चस्पा था जिससे साफ था कि आगे और भी भीड़ होगी. मैं दनकौर तिराहे पर पहुंचा तो मैंने ककोड़ होते हुए बुलंदशहर जाने का फैसला किया.

मुझे लग रहा था कि सिकंदराबाद होते हुए बुलंदशहर पहुंचना कठिन होगा. मैं ककोड़ पहुंचा तो वहां पर इज्तिमा के काफी वॉलंटियर मिले जिनके हाथों में तिरंगे थे. अब इसी रास्ते होते मुझे करीब 11 किलोमीटर और आगे जाना था. आमतौर पर मुसलमान इस तरह की धार्मिक सभाओं में हरे झंडे का इस्तेमाल करते हैं, जिस पर चांद-तारा बना होता है लेकिन वो धार्मिक झंडा मुझे कहीं नहीं दिखा.

बुलंदशहर का आंखों देखा हाल- हिंसा के वक्त से सुलग रहे हैं कुछ सवाल?

वॉलेंटीयर्स लोगों को अपनी लेन में रहने को कह रहे थे, पार्किंग करा रहे थे, खाना और पानी बांट रहे थे. हर ओर से मुसलमानों का हुजूम शहर की तरफ बढ़ रहा था. सब कुछ ठीक से मैनेज था. कहीं कहीं पुलिस भी थी. थोड़ी देर में ही मैं बुलंदशहर पहुंच गया. दरअसल इज्तिमा के वॉलेंटियर्स ने सब कुछ इतने बेहतर से मैनेज किया हुआ था कि किसी को कोई परेशानी नहीं हो रही थी.

शहर में ऐसी चर्चाएं थीं कि चावल खत्म हो गए हैं, सब्जियां और फल भी नहीं हैं. सभी कुछ इज्तिमा वालों ने खरीद लिया है. हालांकि मंडी के लोगों ने इस बात से इंकार किया कि किसी भी चीज की कोई कमी है. मैं अपने एक दोस्त के साथ शहर का मुआयना करने निकला. हर तरफ भीड़ थी हालांकि दोपहिया वाहन चलाए जा रहे थे. सब कुछ सामान्य ही था. हालांकि कुछ लोगों का ये भी कहना था कि अयोध्या के कार्यक्रम को मीडिया ने दिन रात दिखाया लेकिन इस धर्मसभा को लेकर मीडिया क्यों खामोश है?

सोमवार सुबह मैंने वापस लौटने का निर्णय लिया. करीब 10 बजे मैं बुलंदशहर से नोएडा के लिए वापस चल पड़ा. जैसे ही मैं भूड़ चौराहे पर पहुंचा भारी भीड़ थी. एक वॉलेंटियर ने कहा कि आप खुर्जा होकर निकल जाओ आज 'दुआ' है, निकल नहीं पाओगे. मैं खुर्जा के लिए चल पड़ा. खुर्जा अलीगढ़ वाले रास्ते पर पॉटरी उद्योग के लिए प्रसिद्ध एक कस्बा है. मैंने खुर्जा से सिकंदराबाद वाली सड़क पकड़ी और बढ़ने लगा.

बुलंदशहर का आंखों देखा हाल- हिंसा के वक्त से सुलग रहे हैं कुछ सवाल?

हर तरफ भीड़ थी. बाइक पर तीन-तीन सवारी थी जिन्होंने हेलमेट नहीं लगाए थे. जब टोल रोड शुरु हुई तो वहां एक पोस्टर लगा था कि इज्तिमे वाले इस लेन से जाएं. उस लेन को टोल फ्री किया हुआ था. बादलपुर के पास और लालकुआं के पास भी जाम की स्थिति थी लेकिन फिर भी सब सामान्य-सा ही था. केवल भीड़ ही थी जो बेहद शांत और अनुशासन में चल रही थी. जब मैं घर पहुंचा और वाई-फाई शुरु किया तो एक के बाद एक मैसेज आने लगे.

पता चला कि बुलंदशहर के स्याना इलाके में कथित गोरक्षकों ने बवाल कर दिया है. इस बवाल में कई वाहनों को फूंक दिया गया है और इंस्पेक्टर को गोली मार दी गई है. मैंने तुरंत फोटो और वीडियो मांगे. जैसी तस्वीरें सामने आईं, वे खौफनाक थीं. कथित गोरक्षकों का ऐसा रूप देखने को मिलेगा, ऐसी कल्पना मैंने नहीं की थी. मैंने हंगामे की ढेर सारी खबरों की कवरेज की हैं. टायर जलाए जाते हैं लेकिन वाहनों और चौकी को फूंक देने का पहला मामला देखा.

ये इलाका शहर से करीब 40 किलोमीटर है. जहां बवाल हुआ है, उससे करीब 18 किलोमीटर दूर गंगा नदी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से अक्सर गौ-वंश मुक्त कराए जाने जैसी खबरें सामने आती हैं. कई बार पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन भी होते हैं लेकिन ये प्रदर्शन हिंसक हो जाएगा भला किसने सोचा था?

बुलंदशहर का आंखों देखा हाल- हिंसा के वक्त से सुलग रहे हैं कुछ सवाल?

सवाल घटना की टाइमिंग पर भी थे. जिस वक्त शहर में लाखों मुसलमान जमा हों, उसी वक्त गाय के अवशेष मिले, उसी वक्त हिंसा हुई और उसी वक्त कर्फ्यू जैसे हालात पैदा हो गए. कैसे? 12 घंटे पहले तक ये खबर चल रही थी कि बुलंदशहर में मंदिरों के दरवाजे भी नमाज के लिए खोल दिए गए हैं लेकिन 12 घंटे बाद अचानक गोवंश का मांस बरामद हुआ. कथित गोरक्षकों ने पथराव और आगजनी की. पुलिस वाले घायल हुए, एक इंस्पेक्टर शहीद हो गए. पुलिस की कार्रवाई में एक ग्रामीण की भी मौत हो गई.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खाने एक बड़ी समस्या हैं. कई बार बवाल भी होता है लेकिन इस बार मामला थोड़ा गड़बड़ लगा. 40 किलोमीटर का फासला जरूर था लेकिन अगर जरा सी भी चिंगारी भड़कती तो हिंसा की आग बुझा पाना बेहद कठिन होता. मुसलमान इज्तिमा में से लौट कर घर जा रहे थे और अगर ऐसे में गोकशी को लेकर हिंसा होती तो शायद बवाल बहुत बड़ा हो जाता. समझने की कोशिश करिए- 15 लाख मुसलमानों की भीड़, गोकशी, हिंदूवादी संगठनों का प्रदर्शन और फिर हिंसा. कल्पना से ही डर लगता है.

शहीद इंस्पेक्टर सुबोध सिंह राठौर और स्थानीय युवक सुमित की मौत का जिम्मेदार आखिर कौन है? गोकशी का जिम्मेदार कौन है? गोकशी के नाम पर हुई हिंसा का जिम्मेदार कौन है. इन सवालों का जवाब तो अब पुलिस जांच में ही मिलेंगे लेकिन अब सवाल तो सूबे की कानून व्यवस्था पर भी हैं और पुलिस के इकबाल पर भी हैं.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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