दशहरा रैली की इजाज़त देकर क्या न्यायपालिका ने नहीं दे दिया निष्पक्ष व बेख़ौफ़ होने का सबूत?
मुंबई के शिवाजी पार्क में दशहरा रैली करने की अनुमति मिलने के बाद शिव सेना का खुश होना वाज़िब बनता है. लेकिन बॉम्बे हाइकोर्ट का ये फैसला देश को बहुत बड़ा संदेश भी देता है और वो ये कि इस देश की न्यायपालिका न डरती है, न झुकती है और न ही बिकती है. इस फैसले को हमें इसलिये ज्यादा महत्वपूर्ण मानना होगा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के गुट वाली शिव सेना की तरफ से दायर याचिका को ठुकराते हुए हाईकोर्ट ने ये साफ कर दिया कि वह किसी राज्य या केंद्र की सरकार की इच्छा के मुताबिक नहीं चलती, बल्कि बेंच के सामने पेश किये गए तथ्यों व सबूतों के आधार पर ही कोई फैसला देती है. इसलिये, राजनीति में शामिल कोई गुट भले ही इससे नाराज़ होता रहे लेकिन इस फैसले ने पूरे देश की जनता में न्यायपालिका के प्रति ये भरोसा पैदा किया है कि इस देश में इंसाफ़ अभी भी जिंदा है. इसीलिये बॉम्बे हाइकोर्ट के दिये इस फैसले की देश में चौतरफा तारीफ भी हो रही है.
दरअसल, पिछले कुछ सालों में आये कुछ चुनिंदा फैसलों के बाद देश की आम जनता में ये धारणा बनने लगी थी कि हमारे यहां हर वस्तु व इंसान की एक कीमत है, जिसे चुकाकर आसानी से खरीदा जा सकता है. इसलिये मानवाधिकार से जुड़े संगठनों ने न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाना शुरु कर दिये थे. लेकिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने और अब बॉम्बे हाइकोर्ट ने इस निर्णय के जरिये उन तमाम लोगों को ये संदेश दिया है कि हमारे देश की न्यायपालिका आज भी पूरी तरह से निष्पक्ष है, जो कार्यपालिका की तरह से किसी भी तरह के राजनीतिक प्रभाव में नहीं आती है. और, ये मिसाल है लोकतंत्र के उन चार स्तंभों को जिंदा रखने की जिनमें से एक हमारे देश की न्यायपालिका है.
रही बात कि उद्धव ठाकरे वाली शिव सेना के पक्ष में ही कोर्ट ने अपना फैसला क्यों दिया तो उसके लिए ये जानना जरूरी है कि शिवसेना की स्थापना यानी 1966 से ही शिवाजी पार्क में दशहरा रैली का आयोजन होता आया है. तब से लेकर अपनी सेहत तंदरूस्त रहने तक शिव सेना सुप्रीमो दिवंगत बाला साहेब ठाकरे इसी मैदान से हर दशहरे पर अपने शिव सैनिकों को दिये भाषण से उनमें एक नई हुंकार भरते रहे हैं. नवंबर 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद से उनके बेटे उद्धव ठाकरे लगातार इस परंपरा को निभाते आये हैं. सिर्फ कोरोना काल में ऐसा नहीं हो सका. इसीलिये ठाकरे गुट के वकील उस इतिहास का जिक्र करते हुए कोर्ट को ये समझाने में भी कामयाब हुए कि इस अवसर पर कभी आज तक कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. लेकिन बृहन मुंबई नगरपालिका यानी बीएमसी, मुंबई पुलिस की एक ऐसी काल्पनिक रिपोर्ट का सहारा लेकर अनुमति देने से इनकार कर रही है. जाहिर है कि मुंबई पुलिस राज्य सरकार के तहत है इसलिये उसके इशारे पर ही ये रिपोर्ट तैयार की गई है.
दरअसल, सरकार किसी भी पार्टी की हो लेकिन उनके रहनुमाओं को सबसे बड़ी गलतफहमी ये भी होती है कि वे अपने विभाग के जरिये कोई भी अधकचरी रिपोर्ट पेश कर के माननीय न्यायाधीशों को प्रभावित करके अपने हक में फैसला करवा सकते हैं. कुछ यही कोशिश बीएमसी के अधिकारियों ने भी की थी लेकिन हाइकोर्ट ने उनके वकीलों को जिस अंदाज में लताड़ लगाई है उसके बाद तो देश के हर सरकारी विभाग में बैठे अफसरों को ये समझ आ जाना चाहिये कि वे जिन आकाओं के कहने पर ये सब करते हैं उनका तो शायद ही कुछ बिगड़े लेकिन अगर वे एक बार न्यायपालिका के लपेटे में आ गए तो नौकरी बरकरार रहना तो दूर रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन से भी हाथ धो बैठेंगे. इसलिये मुंबई हाइकोर्ट का ये फैसला देश के उन सारे सरकारी मुलाजिमों के लिये भी आंख खोलने वाला है कि सच का साथ न देने की सजा भले ही जल्दी न मिले लेकिन मिलती तो है.
इसीलिये बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीएमसी को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि इतने वर्षों से ये आयोजन हो रहा है और अब तक कोई अप्रिय घटना नहीं हुई. फिर आपने कैसे तय कर लिया कि इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ जायेगी? कोर्ट ने कहा कि हमारे
पास इसका भी उपाय है. रैली करने की इजाजत देते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में कह दिया कि पूरे समारोह की वीडियो रिकॉर्डिंग की जायेगी. अगर यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता किसी भी तरह से कानून और व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली स्थिति पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं तो यह भविष्य में उनकी अनुमति को प्रभावित करेगा.
कोर्ट के आदेश की इस गंभीरता को देखते हुए ही उद्धव ठाकरे ने कहा कि हर शिव सैनिक दशहरा रैली में उत्साह के साथ मौजूदगी दर्ज कराएं. लेकिन रैली की परंपरा में कोई कालिख न लगे, इसका कार्यकर्ताओं को खास ध्यान रखना होगा. आपको याद होगा कि कुछ साल पहले तक प्रियंका चतुर्वेदी कांग्रेस की मुखर प्रवक्ता थीं लेकिन शिव सेना का दामन थामने के बाद वे कुछ ज्यादा ही आक्रामक तेवर में अपनी बात रखती हैं.
हालांकि वे पार्टी से राज्यसभा की सदस्य भी हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद प्रियंका चतुर्वेदी ने कुछ अलग अंदाज में ही अपने ट्वीट में लिखा- " पार्टी का एक नेता, एक शिवसेना, एक शिवतीर्थ, एक ही दशहरा सभा, 5 अक्टूबर को बाघ की दहाड़ सुनाई देगी." वहीं दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा- " डॉक्टर की सलाह- पूरे महाराष्ट्र कैबिनेट के लिए तत्काल सेलाइन ड्रिप." अब भला ये बताने की कोई जरुरत है कि बॉम्बे हाइकोर्ट का ये फैसला एक 'ताकतवर' मुख्यमंत्री के लिए कितना बड़ा झटका है?
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