मुंगावली के मोदी ग्राउंड पर चल रही सभा में बीजेपी के नेता और इलाके के महाराज मानें जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब कहा कि 'हां कमलनाथ जी मैं कुत्ता हूं' मगर मेरा मालिक, मेरा भगवान, मेरी जनता है. ''हां कमलनाथ जी मैं कुत्ता हूं. मगर कुत्ता अपने मालिक की रक्षा करता है. हां कमलनाथ जी मैं कुत्ता' हूं. मगर कुत्ते के मालिक को कोई धमकाता है तो कुत्ता काटता है.'' महाराज के मुंह से ये 'कुत्ता' पुराण सुनकर जनता ने जोश में भले ही तालियां पीटी हों मगर चुनावी भाषणों का ये गिरता स्तर डरा गया.


कुछ दिनों पहले सिंधिया ने ऐसी ही किसी सभा में अपने को 'कौआ' भी कहा था, मैं काला 'कौआ' हूं आऊंगा और जब गलत होगा चिल्लाऊंगा. उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पीछे नहीं हैं. वह भी इन चुनावों में अपने आपको 'भूखा नंगा' कहकर प्रचारित कर ही रहे हैं. कांग्रेस के एक नेता ने तो उनको एक बार ही ऐसा कहा मगर बीजेपी के नेता तो उनको ये कहने की हिम्मत कर ही नहीं सकते. मगर शिवराज जी स्वयं अपने आपको सभाओं में 'भूखा नंगा' कहकर उसे जनता को भूलने भी नहीं दे रहे.


मध्यप्रदेश में तीन तारीख को होने वाले उपचुनावों के लिए इस प्रकार की सहानुभूति बटोरने वाला प्रचार पहली बार देखने को मिल रहा है. दरअसल ये गुजरात मार्का चुनाव प्रचार है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महारत हासिल है. मोदी अपने प्रचार का यही तरीका अपनाते हैं और इसमें उनको तीन विधानसभा चुनाव और दो लोकसभा चुनावों में भारी सफलता मिली है. अपने को लेकर सामने वाले की कही बुरी बात को उठाओ और उसे इतना फैलाओ कि बोलने वाला ग्लानि में आ जाए, या फिर सामने वाले ने जो बोला है उसे भले ही कम लोगों ने सुना है मगर खुद बोलकर इतने लोगों को सुना दो कि हर आदमी सुन ले.


पिछले तीन विधानसभा चुनावों में मैं गुजरात में घूमा हूं. वहां चुनाव धीमी गति से शुरू होता है उसमें शुरूआती बढ़त विपक्षी पार्टी को मिलती है फिर धीरे से नरेंद्र मोदी उतरते हैं अपने खास अंदाज और अदा के साथ. कुछ दिनों तक वह विकास की बात करते हैं. इस बीच में विपक्षी दल की तरफ से कोई ना कोई उन पर व्यक्तिगत टिप्पणी कर ही देता है और फिर मोदी धुआंधार प्रचार कर देते हैं. हम सबको याद है सोनिया का 2013 में कहा गया ‘मौत का सौदागर’ का जुमला जिसने पूरा चुनाव ही पलट दिया था. इस बार के चुनाव में रही सही कसर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने 'नीच राजनीति' बोलकर पूरी कर दी थी. तब राजनीति शब्द खो गया था और 'नीच' शब्द चल गया. बस फिर क्या था संचार के महारथी मोदी जी ने सभाओं में जनता से पूछ-पूछ कर कांग्रेस की बैंड बजा दी और हार पक्की कर दी थी.


ऐसा ही कुछ अब मध्यप्रदेश के इन चुनावों में देखने को मिल रहा है. मुख्यमंत्री शिवराज इससे पहले तक अपने हर चुनाव में अपने किए गए कामों की बातें करते थे मगर इन चुनाव में वह भी सहानुभूति वोट बटोरने की कोशिश में कांग्रेसी नेता दिनेश गुर्जर के भूखे नंगे जुमले को ले उड़े. बीजेपी दफ्तर में हुई पत्रकार वार्ता में उन्होंने जब यह दोहराया कि हां कमलनाथ जी मैं 'भूखा नंगा' हूं, तो इसे इतनी बार बोला कि लगा कि अब ये जुमला चुनाव की दिशा बदल देगा. शिवराज अपनी सभाओं में अब कमलनाथ को सेठ और अपने को भूखा नंगा बताकर माहौल बना रहे हैं. शिवराज को लेकर जनता में सहानुभूति तो है मगर ये सहानुभूति उनके महिलाओं और गरीबों को लेकर किए गए काम को लेकर ज्यादा है.


मध्यप्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. उनकी छवि और ‘कॉमन मैन’ चीफ मिनिस्टर की इमेज ने उनको पिछले दो विधानसभा चुनाव जितवाए मगर पिछला विधानसभा चुनाव वह हारे हैं. इसलिए इस चुनौती वाले और सरकार बचाने वाले चुनाव में वो मोदी मार्का प्रचार कर रहे हैं. मजा ये है कि कांग्रेस में रहकर हमेशा विरोधियों पर गरजने वाले महाराज भी शिवराज स्टाइल में ऐसे ही सहानुभूति वोट बटोरेंगे सोचा नहीं था.


चुनावों पर गहरी समझ रखने वाले पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि ये मुद्दा विहीन चुनाव है इसलिए नेता अपने ऊपर लगे आरोप-प्रत्यारोप को ही ढाल बनाकर मैदान में उतरे हैं. कभी यह दोधारी तलवार चल जाती है कभी नहीं. इस चुनाव में असल मुद्दा यही है कि जनता 25 विधायकों का दलबदल स्वीकार करेगी या नहीं?


सच तो यही है कि मध्यावधि चुनावों सरीखे हो रहे इन चुनावों में कमलनाथ अपनी पंद्रह महीनों की सरकार की क्या उपलब्धि गिनाते तो वहीं शिवराज अपनी पांच महीने की सरकार के कितने गुणगान करते? 2018 के चुनावों में शिवराज ने पंद्रह साल की सरकार का हिसाब दे ही दिया था और उस पर उठाये कांग्रेस के सवालों पर जनता ने अपना मत देकर सत्ता उसे सौंपी थी मगर कांग्रेस की कमियों ने बीजेपी को सत्ता में वापसी का सुनहरा मौका दिया है.


इसलिए 'कुत्ता', 'बिल्ली', 'कौआ' अमीर गरीब, 'सेठ' , 'साहूकार' और 'उद्योगपति' कहकर एक दूसरे नेता को उकसाया जा रहा है. जिस पर जनता ताली तो पीट रही है वोट देगी या नहीं ये पक्का नहीं है. मगर मध्यप्रदेश में जॉर्ज ऑरवेल के कालजयी उपन्यास ‘एनिमल फार्म’ सरीखी हो रही ये राजनीति नई है. एनिमल फार्म का एक खास जुमला है कि सब जानवर समान हैं लेकिन कुछ जानवर दूसरों से ज्यादा समान हैं. इसे याद रखिए और इसके प्रकाश में ‘मैं कुत्ता हूं’ ‘मैं कौआ हूं’ ‘मैं भूखा नंगा’ याद करिए. और सोचिए ये मंच से भाषण देने वाले जो अपने को कह रहे हैं क्या ये वहीं है और यदि ये वहीं हैं तो आप कौन हैं?


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)