नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए के लिए सरकार ने चार साल के बाद नोटिफिकेशन कर दिया है.पूरे देश में ये कानून लागू हो गया है.दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पाकिस्तान और पाकिस्तानी कहकर इसका विरोध कर रहे हैं.केजरीवाल के मुताबिक ये कानून देश के लिए ठीक नहीं है.इसके बाद पाकिस्तान से आए हिंदू  शरणार्थियों ने उनके सरकारी आवास के पास आकर प्रदर्शन भी किया. सीएए को संप्रदायिकता का रंग भी दिया जा रहा है. वैसे, कुछ विश्लेषक इसे विपक्ष की एक सोची-समझी चाल बताते हैं. पूरे विपक्ष को राहुल गांधी लीड कर रहे हैं. दिल्ली में केजरीवाल इसका शोर मचा रहे हैं. दोनों ही पाकिस्तान की बात कर रहे हैं. तो सीएए अब एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है. 


विपक्ष का आरोप, मुस्लिमों के खिलाफ सीएए


विपक्ष का कहना है कि मुस्लिम शरणार्थियों को सीएए की श्रेणी में क्यों नहीं रखा. जो मुद्दा ये लोग ला रहे हैं वो कानून की दृष्टि से देखें तो वो संविधान के अनुच्छेद 40 और अनुच्छेद 15 का प्रावधान उनको देखना चाहिए. संविधान का अनुच्छेद 15 ये कहता है कि किसी तरह का भेदभाव केवल धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर नहीं किया जा सकता. इसको ये लोग अंडर जस्टिस की बात कह रहे हैं. संविधान की धारा का गलत अर्थ निकालकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं. सरकार भी अंडर जस्टिस की बात कह रही है. इसके अंतर्गत कुछ लोगों को ऐसे क्यों छोड़ा गया है, जो सांप्रदायिकता का पुराना तमगा ये लोग 2014 के पहले से जो मोदी पर लगाते हैं, वो एक बार फिर से लगाने की कोशिश कर रहे हैं. ये एक तरह की चुनावी साजिश है.



अभी हाल में ही एक पाकिस्तान के हिंदू क्रिकेटर दिनेश कानेरिया का बयान आया है. जिसमें वो पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सीएए के लिए बधाई दे रहे हैं. उनका कहना है कि उनकी सरकार ने ये कानून लाकर बहुत ही बेहतरीन कदम उठाया है, लेकिन अनुच्छेद 14 और 15 की बात करें तो विपक्ष एक्सक्लूजन यानी बहिष्करण की बात कर रहा है. सीएए के सिद्धांत और की बात करें तो उसमें जितने भी शोषित, जितने भी अल्पसंख्यक हैं, चाहें वो अफगानिस्तान, पाकिस्तान चाहें दूसरे राष्ट्र के हों, उनको लाने की बात की गई है. जो विपक्ष मुद्दा उठा रहा है कि उसमें मुस्लिम को क्यों नहीं जोड़ा गया है. जहां तक सरकार का स्टैंड है कि पाकिस्तान या बांग्लादेश एक मुस्लिम राष्ट्र हैं, घोषित मुस्लिम राष्ट्र हैं, वहां पर मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं, न ही शोषित-पीड़ित हैं.


पाकिस्तानी वोट बैंक और बीजेपी  


अरविंद केजरीवाल का कहना है कि बीजेपी जान-बूझकर करीब एक से डेढ़ करोड़ पाकिस्तानियों को भारत बुला रही है. वो किसी भी समुदाय का नाम नहीं ले रहे हैं. सिख, बौद्ध, ईसाई, हिंदू आदि को भारत की नागरिकता मिलनी है. लेकिन इसका भी एक गाइडलाइन तय किया गया है जिसमें 2014 तक समय तक गया है. केजरीवाल इनमें से किसी का नाम नहीं ले रहे हैं, वो सिर्फ एक से डेढ़ करोड़ पाकिस्तानी की बात करते है कि बीजेपी उनको लाकर अपना वोटबैंक बना रही है. जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान में हाजरा और अहमदिया समुदाय भी अल्पसंख्यक हैं. पाकिस्तान की हालत बहुत दयनीय है. हाजरा और अहमदिया पर पाकिस्तान में अत्याचार होते रहा है. उनको प्रताड़ित किया गया है. भारत सरकार का कहना है कि हाजरा और अहमदिया को भी पाकिस्तान में उत्पीड़ित किया गया है, जो सुन्नी मस्लिम है और जो मूल नागरिक हैं  उन पर कोई उत्पीड़न नहीं है.


जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यक है.वहां पर बहुसंख्यक वाले अत्याचार करते हैं. विपक्ष एक्सक्लूजन की बात करते हैं जबकि हमारे यहां संविधान में 1947 का फॉरेनर एक्ट है. 1955 में पहली बार सिटिजनशिप का एक्ट आया था. उसके बाद 1986 में राजीव गांधी ने भी इस संदर्भ में बात की लेकिन ये स्पष्ट नहीं हुआ कि क्यों श्रीलंका के तमिल को भारत शरण नहीं दी गई. शायद अब तमिलों को भी भारत में शरण दी जाए. कोलंबो और दिल्ली में जो राजीव गांधी के वक्त नया समझौता हुआ, उसके बाद राजीव गांधी की हत्या कर दी गई.  तो ऐसी कई चीजें हैं जिसको उछालने का प्रयत्न अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी भी कर रहे हैं. जहां तक सांप्रदायिकता की बात है तो धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता े भारत में कभी जन्म ही नहीं लिया. ये पश्चिमी सभ्यता में हैं चाहें वो इंग्लैंड हो या अन्य कहीं. कुल मिलाकर देखे तो यह उधार मांगा हुआ कान्सेप्ट है जिसके दम पर बीजेपी पर निशाना साधा जा रहा है.


दूसरे देशों को बोलने का नहीं अधिकार


इन सब बातों को लेकर प्रेस में कई बातें आ रही हैं. इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश हो रही है. हालांकि, अभी तक किसी विदेशी मीडिया ने सीएए और एनआरसी को लेकर कोई कठोर प्रतिक्रिया नहीं दी है. भारत की किसी पॉलिसी पर किसी मीडिया ने कोई कड़ा प्रहार अभी तक नहीं किए गए हैं. कुछ राष्ट्रों की ओपिनियन को अंतरराष्ट्रीय राजनीति के तौर पर भी देख सकते हैं. अब फ्रांस को ही देखें तो भविष्य में भारत से उसके संबंध बहुत अच्छा रहने वाला है. वहां के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने साफ तौर पर कहा है कि सीएए और एनआरसी भारत का आंतरिक मामला है. इस पर किसी को बोलने से बचना चाहिए. उनकी देश के पीएम मोदी के साथ अच्छी केमेस्ट्री रही है. फ्रांस ने कहा है कि भारत ने अच्छा कदम उठाया है, इसके लिए स्वागत है.


कुछ राष्ट्र ऐसे हैं जिसमें एक मालदीव भी है. जब मालदीव में अहमद नसीद ने कहा था कि ये इंटरनल मैटर है इस पर कुछ नहीं बोलेंगे, लेकिन सीएए जो हैं उसके परिधि को बढ़ृाया जाए और जो भेदभाव है, गैर-मुस्लिमों के साथ वो नहीं होना चाहिए. इंडोनेशिया के मातिर मोहम्मद ने कड़ा हस्तक्षेप किया है कि भारत भेदभावकारी नीति को आगे ला रहा है. अगर शरणार्थियों को शरण देनी ही है तो इसमें मुस्लिम को भी लाया जाए. इसका भारत के एमईए ने इसका विरोध किया है और कहा है कि ये भारत का आंतरिक मामला है इस पर कोई टिप्पणी नहीं होनी चाहिए. जो संप्रभुता की बात होती है अगर उसके तहत देखा जाए तो भारत के आंतरिक मामलों पर किसी को कुछ बोलने का हक नहीं होना है. यह आंतरिक मामला ही नहीं बल्कि आंतरिक सुरक्षा की भी बात है. यह काफी संवेदनशील बात है. तो इस पर किसी भी राष्ट्र को बोलने का हक नहीं है. भारत भी पड़ोसी देशों या किसी अन्य देशों के आंतरिक मामलों में पब्लिक फोरम में आकर नहीं बात करता है. तो, भारत के आंतरिक मामलों में किसी को नहीं बोलना चाहिए. जो कुछ राष्ट्र बोले हैं उनका विरोध विदेश मंत्रालय लगातार कर रहा है.


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