जिसे अंग्रेजी में कहते हैं, एक एक करके कंगाल अल्मारी से बाहर निकल रहे हैं. यानी वे बातें, जो अब तक छिपी हुई थीं- धीरे-धीरे लोगों को पता चल रही हैं. चेन्नई के टॉप स्कूलों का ऐसा सच, जिसके बारे में मासूम बच्चों और धूर्त-चालाक स्कूल प्रशासन के अलावा कोई नहीं जानता था कि कैसे स्कूल के टीचर बच्चों का यौन शोषण किया करते थे, पर स्कूल पीड़ित बच्चों को चुप रहने की हिदायत देता था.
इस हफ्ते की शुरुआत में चेन्नई के पद्म श्रेषाद्रि बाल भवन स्कूल के एक टीचर को पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया. उस पर अपनी ग्यारहवीं और बारहवीं की स्टूडेंट्स के साथ यौन शोषण का आरोप है. एक पूर्व स्टूडेंट ने इंस्टाग्राम पर अपने बुरे अनुभवों को साझा किया तो उसकी कई साथियों ने उसकी बात पर सहमति जताई और अपने-अपने तजुर्बों के बारे में सोशल मीडिया पर बताया. इसके बाद टीचर को धरा गया लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं हुई.
चेन्नई के दूसरे कई स्कूलों की पूर्व स्टूडेंट्स ने भी अपने टीचर्स पर ऐसे ही आरोप लगाए. साथ ही यह भी बताया कि उनके स्कूलों को इस बात की पूरी जानकारी थी पर वे उन्हें चुप रहने का आदेश देते थे. कई बार टीचरों की माली हालत का जिक्र करके, उनके साथ सहानुभूति दर्शाते थे. कई बार यह भी कहते थे कि स्टूडेंट्स ओवररिएक्ट कर रही हैं. चूंकि वे समझ नहीं पा रहीं कि यह इतनी असामान्य बात नहीं है.
लेकिन आरोप इतने सामान्य नहीं थे. स्टूडेंट्स ने टीचर्स के खिलाफ जो शिकायतें दर्ज कराई थीं उनमें शारीरिक शोषण से लेकर मौखिक उत्पीड़न तक शामिल है. जैसे गलत तरीके से छूना, स्लट शेमिंग, लड़कियों को अनुचित समय पर बुलाना, उनकी शारीरिक बनावट पर अश्लील टिप्पणियां करना, ऑनलाइन क्लास में बिना शर्ट के बैठ जाना और स्टूडेंट्स को पोर्नोग्राफिक लिंक भेजना. यह बर्ताव किसी के लिए भी उचित नहीं है, और टीचर्स के लिए... वह तो शर्मसार करने वाला है.
क्योंकि टीचर और स्कूल हमारे लिए सबसे सुरक्षित माने जाते हैं
कई साल पहले हैशटैग मीटू के दौरान यूनिवर्सिटीज़ में टीचर्स के गैरमुनासिब व्यवहार की खूब खबरें आई थीं. कॉलेज और विश्वविद्यालयों की लड़कियों ने बताया था कि कैसे नामी-गिरामी शिक्षक उनके साथ गलत बर्ताव करते रहे हैं. तब स्कूलों के बारे में यह नहीं सोचा गया था. स्कूल तो बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित जगह माने जाते हैं. जहां बच्चों को भेजकर लोग निश्चिंत हो जाते हैं. घर और स्कूल- इनसे महफूज कौन सी जगह हो सकती है. फिर गुरु को हमारे यहां ईश्वरतुल्य माना जाता है. शिक्षकों की अक्सर यह शिकायत रहती है कि बच्चों का व्यवहार अब अच्छा नहीं रहा. वे टीचर्स को कुछ समझते ही नहीं. क्या ऐसी घटनाओं से बच्चों और उनके माता-पिता का मनोबल गिरता नहीं? सेफ स्पेस की अवधारणा चूर चूर नहीं होती. इस लिहाज से चेन्नई की ये घटनाएं बहुत गंभीर हैं, जिनके लिए स्कूली प्रशासन को सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
स्कूल प्रशासन ही पूरी तरह से जवाबदेह
स्कूल चलाना, हमारे देश का एक सबसे चोखा धंधा माना जाता है. आंकड़े बताते हैं कि देश के 12 करोड़ स्टूडेंट्स (यानी स्कूलों में पढ़ने वाले करीब 50 प्रतिशत बच्चे) प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. हालांकि सरकार कहती है कि स्कूल चलाना बिजनेस नहीं है. इसीलिए किंडरगार्टन से लेकर 12 वीं तक की शिक्षा देने वाले स्कूलों के लिए एक ट्रस्ट बनाना जरूरी है. सिर्फ नॉन प्रॉफिट ट्रस्ट स्कूल चला सकते हैं और ट्रस्ट में सरप्लस होता है तो उसे स्कूल में ही निवेश करना पड़ता है. कम से कम कागजों में तो ऐसा ही होता है. लेकिन कानून को धता बताकर स्कूल अच्छा खासा मुनाफा कमा लेते हैं. देश में प्राइवेट स्कूलों की संख्या चार लाख से ज्यादा है, और देश के कुल स्कूलों में इनका हिस्सा 25 प्रतिशत के करीब है.
दिलचस्प यह है कि इन सबके बावजूद अकसर स्कूल बच्चों की जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं. 2017 में गुरुग्राम में एक निजी स्कूल में पढ़ने वाले 7 साल के बच्चे की हत्या हुई थी. इस हत्या का आरोपी था, स्कूल की बस का कंटडक्टर. तब एक आरटीआई से पता चला था कि स्कूल ने अपने बस ऑपरेटरों का कोई वैरिफिकेशन नहीं किया गया था. इस संबंध में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 2013 में सुरक्षित स्कूल वाहन नीति बनाई थी लेकिन स्कूल इसका पालन नहीं करता था.
इस घटना के बाद भी स्कूल प्रशासन को जवाबदेह नहीं बनाया जा सका. ऐसे ही पॉक्सो के तहत सीबीएसई ने एक सर्कुलर जारी किया था. इस सर्कुलर में कहा गया था कि स्कूलों में शिकायत समिति बनाई जाए जिसमें प्रिंसिपल या वाइस प्रिंसिपल, एक मेल और एक फीमेल टीचर, एक मेल और एक फीमेल स्टूडेंट और एक नॉन टीचिंग स्टाफ मेंबर होगा. यह समिति शिकायत निवारण संस्था के तौर पर काम करेगी. बुरे बर्ताव के मामलों पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी. हर स्कूल में शिकायत या सुझाव पेटी लगाई जाएगी, जिसमें बच्चे लिखित शिकायत दर्ज करा सकें.
यौन शोषण की किसी भी शिकायत पर जल्द से जल्द कार्रवाई की जाएगी. चेतावनी के रूप में स्कूल परिसर में सभी जगहों पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए जाएंगे. पर अधिकतर स्कूल इन हिदायतों पर ध्यान नहीं देते.
ताकतवर मर्द जब अपनी ताकत का दुरुपयोग शुरू कर देते हैं
दरअसल समाज में ताकत के बंटवारे में वह पलड़ा अधिक भारी होता है, जिस तरफ पद और प्रतिष्ठा रखे होतें. इन पलड़ों पर अधिकतर पुरुषों का ही कब्जा होता है. चेन्नई के स्कूलों के मामलों की तरह दूसरे कई मामलों में भी ताकतवर पुरुषों का कानूनन कुछ नहीं बिगड़ा. हैशगैट मीटू मूवमेंट के दौरान बराबर इस बात का एहसास हुआ है. स्ट्रक्चर ऑफ पावर को ऐसे कायम किया गया है कि अक्सर शोषण करने वालों को ही फायदा होता है. अभी हाल के एक मामले में एक पूर्व पत्रकार को आरोपों से बरी कर दिया गया क्योंकि शिकायतकर्ता लड़की के बयानों में अदालत को विसंगतियां नजर आई थीं.
वैसे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में कई तरह के सुधारों की मांग की गई है, पर फिर भी कुछ बातें अब भी चर्चा से दूर हैं. जैसे यौन हिंसा के सर्वाइवर्स और पीड़ितों की क्षतिपूर्ति, स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण पर कम ध्यान दिया जाता है- अपराधी को गिरफ्तार करने पर ज्यादा. चेन्नई वाले मामले में भी एक टीचर गिरफ्तार हो चुका है. अब जरूरत इस बात की है कि सर्वाइवर्स की मेंटल हेल्थ के बारे में बात की जाए. किशोर बच्चे-बच्चियों को फिलहाल इसकी बहुत जरूरत है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)