Canada: पीएम मोदी की तारीफ़ करने वाले सिख नेता की हत्या का आखिर क्या है राज?
Ripu Daman Singh Shot Dead: हमारे देश में बढ़ती आबादी को लेकर मुस्लिमों को निशाना बनाते हुए नई बहस छिड़ी हुई है, तो वहीं कनाडा में एक ऐसे मशहूर सिख नेता की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई है, जिसने पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर उनकी खुलेआम तारीफ़ की थी. कनाडा में रह रहे भारतीय मूल के सिखों व पंजाबियों से लेकर इधर हमारे पंजाब में भी लोग इस हत्या से सकते में आ गए हैं.
इस हत्याकांड की हक़ीक़त तो जांच के बाद ही सामने आयेगी लेकिन फिलहाल सवाल ये उठ रहा है कि 'खालिस्तान' बनाने की वकालत करने वाली ताकतें क्या फिर से अपना सिर उठा रही हैं? और,अगर ऐसा है, तो ये फिर हमारे पंजाब समेत पूरे देश के लिए खतरे की एक बड़ी घंटी है. इसलिए कि शुरुआती जांच में इस हत्या के पीछे खालिस्तानी कट्टरपंथियों का ही हाथ माना जा रहा है, लिहाज़ा इसे सुनियोजित साजिश का एक शुरुआती इशारा माना जा रहा है कि जो कोई भी मोदी सरकार की तारीफ़ करेगा, उसका यहीं अंजाम होगा.
सरेआम गोली मारकर की गई हत्या
दरअसल, कनाडा के मशहूर सिख नेता और कारोबारी रिपु दमन सिंह की गुरुवार की सुबह ब्रिटिश कोलंबिया के सर्रे शहर में सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई. बेशक वे 1985 में एयर इंडिया के कनिष्क विमान में बम विस्फोट करने के मामले में एक आरोपी थे. लेकिन कनाडा की अदालत में सालों तक चले मुकदमे के बाद साल 2005 में उन्हें उस मामले से बरी कर दिया गया था.
हालांकि 22 जून 1985 को मॉन्ट्रियल से दिल्ली के लिए रवाना हुए एयर इंडिया के उस विमान को विस्फ़ोट के जरिये उड़ाने वाली वो ऐसी दिल दहलाने वाली घटना थी, जिसमें क्रू मेंबर समेत विमान में सवार सभी 329 यात्री मारे गए थे. उसी मामले में साल 2005 तक रिपुदमन सिंह कनाडा की जेल में कैद रहे लेकिन बाद में, वहां की उच्च अदालत ने सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया था.
अलगावादियों से दूर रहने की देते थे नसीहत
बता दें कि कनाडा में भारतीय मूल के सिखों व पंजाबियों की खासी आबादी है और वहां की संसद में भी उनका समुचित प्रतिनिधित्व है. वहां की कुछ संसदीय सीटें ऐसी हैं, जहां से सिख समुदाय के उम्मीदवार के अलावा कोई और चुनाव जीत ही नहीं पाता. कनाडा की सिख राजनीति को समझने वाले जानकार कहते हैं कि एक जमाना वो भी था, जब रिपुदमन सिंह खालिस्तान के हिमायती थे लेकिन वक्त बदलने के साथ उनकी विचारधारा भी बदल गई. वे अलग खालिस्तान बनाने की आवाज़ उठाने वाली ताकतों से इस कदर ख़फ़ा हो चुके थे कि अपनी आखिरी सांस तक वहां के सिख समुदाय को अलगावादी नेताओं से दूर रहने की नसीहत देने में जुटे हुए थे.
हालांकि वे कनाडा के एक सफल कारोबारी होने के साथ ही कई सिख संस्थाओं से जुड़े हुए थे, जिनका मकसद समुदाय को अपनी मातृभूमि यानी भारत से जोड़कर रखने का ही था. बताते हैं कि कनाडा में रहने वाली कुछ कट्टरपंथी ताकतें उनसे इसलिए भी नाराज़ थीं कि वो ऐसा अलख जगाकर पूरे समुदाय को उनकी विचारधारा के ख़िलाफ़ आखिर क्यों कर रहे हैं.
रिपुदमन सिंह मलिक ने की थी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की छपाई
कहते हैं कि रिपुदमन सिंह मलिक श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की छपाई करके भी सुर्खियों में आए थे. रिपुदमन और बलवंत सिंह की ओर से प्रकाशित पावन स्वरूपों के मुद्दे पर कनाडा की सिख संगत में भारी गुस्सा देखा गया था. पूरा मामला श्री अकाल तख्त साहिब तक भी पहुंचा, जिसके कारण रिपुदमन सिंह ने छपाई बंद कर दी थी और पावन स्वरूप शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सौंप दिए थे. इसलिये कि सिख धर्म की मर्यादा के मुताबिक कोई भी सिख श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरुप को अपनी इच्छानुसार प्रकाशित नहीं कर सकता है.
पीएम मोदी की कर चुके तारीफ
लेकिन कनाडा की सिख संगत से लेकर पंजाब के सियासी गलियारों में एक सवाल बेहद तेजी से उठा है कि रिपु दमन सिंह की हत्या क्या सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि वे पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की तारीफ़ करने वालों में सबसे आगे थे? हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रहे लेकिन हो सकता है कि सवाल उठाने वालों की बातों में कोई ठोस आधार हो और शायद ये सही भी साबित हो.
इसलिये कि साल की शुरुआत यानी जनवरी महीने में उन्होंने पीएम मोदी को भेजी एक चिट्ठी में लिखा था कि "आपकी सरकार ने सिख समुदाय के लिए ऐसे कई कदम उठाए हैं, जिनकी कोई मिसाल ही नहीं है. आपके ऐसे अभूतपूर्व और सकारात्मक कदमों के लिए मैं तहेदिल से आपका शुक्रगुजार हूं. आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास अल्फ़ाज़ ही नहीं हैं."
कनाडा में रहने वाले कई मित्र उनकी समाज सेवा से जुड़े किस्से सुनाते नहीं थकते लेकिन वे अफसोस भी जता रहे हैं कि आखिर उन्होंने ऐसा क्या किया कि उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया. उन्होंने कनाडा में न सिर्फ खालसा स्कूल की स्थापना की बल्कि खालसा क्रेडिट यूनियन के संस्थापक के तौर पर न जाने कितने जरूरतमंदों की मदद भी की. उनके बारे में एक तथ्य ये भी बताया जाता है कि अदालत से बरी होने के बाद भी उनका नाम भारत की काली सूची में था. लेकिन दावा किया जाता है कि मोदी सरकार ने उस काली सूची की समीक्षा करने के बाद उनका नाम उसमें से हटा दिया था और उसके बाद ही वे भारत आये थे.
उनकी हत्या भले ही कनाडा में हुई है लेकिन हमारी खुफिया व जांच एजेंसियो के लिए अब चिंता का बड़ा विषय ये बन गया है कि आखिर वे कौन-सी ताकत है, जो पंजाब को दोबारा आतंकवाद की आग में झोंकने के लिए तैयार बैठी हैं?
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