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पंजाब का किला बचाने के लिए 'कैप्टन' की मजबूरी बनेगा सुलह का फॉर्मूला?

आपसी कलह के चलते पिछले साल मध्य प्रदेश की सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस अगले साल पंजाब का किला नहीं खोना चाहती, लिहाज़ा सुलह कमिटी ने जो फॉर्मूला सुझाया है उसे मानना अब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मजबूरी है.

किसी भी तरह से अगर उनका अहंकार इसमें आड़े आता है, तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही पार्टी को टूटने से बचाना बेहद मुश्किल होगा. हालांकि कैप्टन बनाम पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की इस लड़ाई में सिद्धू का पलड़ा ही भारी रहने की संभावना है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता वाली सुलह कमिटी ने इस रिपोर्ट में सिद्धू को सरकार या संगठन में अहम स्थान देने की सिफारिश की है.

ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि सिद्धू को उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है लेकिन सूत्रों की मानें, तो वे पूरे चुनाव की कमान भी अपने हाथ में रखना चाहते हैं, इसीलिये वे चुनाव कैम्पेन कमिटी का प्रमुख भी होना चाहते हैं. ऐसे में इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष ही बना दिया जाये, ताकि पूरे चुनाव की कमान ही उनके हाथ में रहे.फिलहाल सुनील जाखड़ प्रदेश अध्यक्ष हैं जिन्हें कैप्टन का करीबी माना जाता है.

कैप्टन विरोधी खेमे के जो 21 विधायक आलाकमान से मिलने आये थे, उनकी एक प्रमुख मांग ये भी थी कि प्रदेश नेतृत्व में बदलाव किया जाए. वैसे सीएम अमरिंदर सिंह ने पिछले हफ़्ते दिल्ली आकर पार्टी आलाकमान को यही समझाया था कि अगर सीएम, डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष तीनों ही एक ही समुदाय से यानी सिख होंगे, तो इसका गलत संदेश जाएगा और हिन्दू वोट कांग्रेस से बिदक जाएगा, लिहाज़ा फार्मूला ऐसा हो जिसमें सामाजिक समीकरण का पूरा ख्याल रखा जाए.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, सुलह समिति ने कांग्रेस के प्रदेश संगठन में बदलाव के समय सभी क्षेत्रों और समाज के सभी वर्गों को जगह देने की पैरवी भी की है. इसलिये एक संभावना यह भी है कि अगर सिद्धू डिप्टी सीएम बनने के लिए राजी होते हैं,तब संतुलन बनाने के लिए किसी हिंदू दलित चेहरे को भी डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है.

गौरतलब है कि समिति ने हाल ही में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू, कई मंत्रियों, सांसदों और विधायकों समेत कांग्रेस के पंजाब से ताल्लुक रखने वाले सौ से अधिक नेताओं से उनकी राय ली थी.उसके बाद ही ये रिपोर्ट तैयार की गई जो आज पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी को सौंपी गई.

वैसे पंजाब में कांग्रेस के भीतर कलह की यह कोई नयी घटना नहीं है. अमरिंदर सिंह को पहले राजिंदर कौर भट्टल और बाद में राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा जैसे नेताओं के विरोधों का सामना करना पड़ा है. बाजवा अभी भी कैप्टन विरोधी गुट में बने हुए हैं. लेकिन अब इस खेमे के प्रमुख किरदार नवजोत सिद्धू बन गए हैं.

पंजाब में कांग्रेस के सत्ता में आने के बमुश्किल साल भर बाद ही कैप्टन और सिद्धू के बीच मतभेद शुरू हो गए थे. 2017 के विधानसभा चुनावों के पहले जब सिद्धू बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आये थे, तब उन्हें सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलने की उम्मीद थी.

लेकिन कैप्टन ने उन्हें पर्यटन और स्थानीय निकाय का मंत्रालय देकर एक तरह  साइडलाइन कर दिया.इससे खार खाये सिद्धू ने अपनी ही सरकार के खिलाफ विरोधाभासी बयानबाजी शुरु कर दी. इससे कैप्टन की नाराजगी बढ़ती चली गई और इन मतभेदों का नतीजा यह हुआ कि सिद्धू को जून 2019 में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा या देने के लिए मजबूर किया गया.

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