सत्तर के दशक में निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म आई- अमर प्रेम. फिल्म में संगीत आरडी बर्मन था और गीतकार थे आनंद बक्षी. इस फिल्म के सभी गाने एक से बढ़कर एक हिट हुए थे. जिसमें ‘कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना’ भी शामिल था. इसी गाने में एक लाइन थी- कुछ रीत जगत की है ऐसी है हर एक सुबह की शाम हुई, तू कौन है तेरा नाम है क्या सीता भी यहां बदनाम हुई. यही रीत भारतीय क्रिकेट की भी है. भारतीय क्रिकेट इतिहास के महानतम खिलाड़ी भी आलोचना का शिकार हुए हैं. यहां तक कि इस देश ने जिस खिलाड़ी को क्रिकेट के भगवान का दर्जा दिया. उसी खिलाड़ी ने अपने करियर में सबसे ज्यादा आलोचना भी झेली.


इन दिनों आलोचना का शिकार हुए हैं कभी करिश्माई कप्तान कहे जाने वाले महेंद्र सिंह धोनी. धोनी की कप्तानी में टीम टी-20 वर्ल्ड चैंपियन बनी. 2011 में उसने विश्व कप जीता. टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक टीम का रूतबा मिला. एक समय में उन्हें विश्व के सबसे बेहतरीन ‘फिनिशर्स’ में गिना जाता था. वही धोनी आज तमाम लोगों को टीम पर बोझ लग रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया में अपनी बल्लेबाजी से उन्होंने ऐसे आलोचकों को करारा जवाब दिया है. अलग अलग परिस्थियों वाले मैच में लगातार तीन अर्धशतक लगाकर उन्होंने मैन ऑफ द सीरीज का खिताब जीता. सच ये है कि उन्हें अपना रोल बखूबी पता है. वो उसी के मुताबिक अपने खेल को ढालने में कामयाब हुए हैं.


27 और 37 का फर्क समझना होगा


धोनी के आलोचकों को 27 साल और 37 साल की उम्र के फर्क को समझना होगा. जब वो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में आए तो वो करीब 23 साल के थे. एक विध्वंसक बल्लेबाज के तौर पर पहचान बनाई तो उनकी उम्र 24-25 साल थी. फिर जब उनकी कप्तानी में टीम टी-20 विश्व कप जीती तो वो करीब 27 साल के थे. जब 2011 विश्व कप जीता तो वो करीब 30 के थे. इन दस सालों में धोनी एक खिलाड़ी के तौर पर बदले. उनका अंदाज बदला. उनके तेवर बदले. टेस्ट क्रिकेट से संन्यास और वनडे की कप्तानी छोड़ने के बाद उनका रोल भी बदला. शरीर भी बदला. ये बदलाव स्वाभाविक है. बावजूद इसके उनके आलोचको को 24-25 साल वाला ही धोनी चाहिए. जिसके लंबे लंबे बाल थे. जिसके बल्ले में जबरदस्त ताकत थी. जो खुश हो तो छक्का मारता था. नाराज हो तो छक्का मारता था. जो हेलीकॉप्टर शॉट्स लगाता था. जिसकी हर बात में एक ‘स्टाइल’ था. धोनी के आलोचक अगर पिछले 10 साल में अपने भीतर के बदलाव को समझ लें तो उन्हें आलोचना का अधिकार जाता हुआ दिखाई देगा. भूलिएगा नहीं इन 10 सालों में उन्होंने अपनी फिटनेस को लेकर कोई समझौता नहीं किया. धोनी आज भी कई भारतीय खिलाड़ियों के मुकाबले ज्यादा फिट हैं. उनकी रनिंग बिटवीन द विकेट अच्छे-अच्छे फील्डर्स के पसीने छुड़ा देती है.


विराट को धोनी से क्या चाहिए


दरअसल, सबसे बड़ी कहानी इसी सवाल में छिपी है. हिंदुस्तानी कहावत है मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी. अगर टीम इंडिया के कप्तान और कोच धोनी को लेकर ‘पॉजिटिव’ हैं तो आलोचना का कोई मतलब रह ही नहीं जाता. हां, ये चर्चा जरूर हो सकती है कि धोनी का 2019 की टीम में रोल क्या है. उससे पहले आलोचकों को अपने आप से कुछ सवाल पूछने चाहिए, जिस खिलाड़ी ने अपनी कप्तानी के समय यंगिस्तान का नारा लगाया हो, जिसपर सौरव, लक्ष्मण, द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों को नजरअंदाज करने का आरोप लगा हो वो खिलाड़ी क्या अपनी दुगर्ति कराएगा? जिस खिलाड़ी ने बिना किसी के कहे टेस्ट क्रिकेट छोड़ दिया हो, वनडे की कप्तानी छोड़ी हो वो क्या अपनी दुगर्ति कराएगा? इन दोनों सवालों का जवाब है- बिल्कुल नहीं. आप कप्तान विराट कोहली, कोच रवि शास्त्री और उपकप्तान रोहित शर्मा से धोनी को लेकर सवाल कीजिए. उनके जवाब आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए काफी हैं. विराट कहते हैं- धोनी मैदान में बहुत मददगार हैं. रोहित कहते हैं-वो गाइडिंग फोर्स हैं. शास्त्री कहते हैं अभी उनमें काफी क्रिकेट बची है. बाकी आलोचकों का क्या. आनंद बक्षी ने लिखा ही है- तू कौन है तेरा नाम है क्या सीता भी यहां बदनाम हुई.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)